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सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा खुफिया तौर पर ऐसे पत्रकारों के संबंध में जानकारी एकत्रित की जा रही है जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है परंतु राज्य मुख्यालय की मान्यता प्राप्त करके लोक भवन एवं सचिवालय के प्रेस रूम में बैठकर ऊंट पटांग और ऊलजलूल व्याख्यान में लगे रहते हैं लेखन शैली से ना तो उनका कोई संबंध है और ना ही कोई खबरों से ताल्लुक केवल अपनी भाषा शैली और ऊंची आवाज में बोलकर साथी पत्रकारों को प्रभावित करके परिवार के नाम से दर्जनों अखबार निकाल कर दुकान चलाई जा रही है एक तरफ जहां मीडिया क्षेत्र में खांटी पत्रकारों के लिए आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है वही ऐसे तथाकथित पत्रकार जिनके द्वारा अपने परिवार के नाम पर दर्जनों समाचार पत्र का प्रकाशन किया जा रहा है उनके विज्ञापन के लिए सुबह से लोक भवन एवं सूचना निदेशक के कक्ष के बाहर तंबू गाड़ दिया जाता है और उनके अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों के सम्मुख ऊंची आवाज में बकलोल करने का कार्य शुरू कर दिया जाता है जिसके चलते अभी हाल ही में सूचना निदेशक को अप्रिय घटना का सामना करना पड़ा और एक खास बकलोल टाइप के पत्रकार जिन्होंने अभी हाल ही में जेल की यात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास लिखा है अपनी बकलोल के चलते सूचना विभाग के निदेशक को शर्मसार कर दिया यही नहीं भोजपुरी फिल्मों के निर्माता निर्देशक का परिवार आए दिन सूचना परिसर और लोकभवन परिसर में अपनी बकलोल के चलते ख्याति प्राप्त है उच्च अधिकारियों के सम्मुख दंडवत प्रणाम करने वाला यह बकलोल पत्रकार कमरे के बाहर निकलते ही बड़ी-बड़ी डींगें हांकने लगता है और ऊंची आवाज में साथी पत्रकारों को अपशब्द भी बोलते सुना जाता है एवं सूचना विभाग कर अधिकारियों को दलाल बताने लगता है जिसके डर से सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारी कर्मचारी इसके समाचार पत्र को विज्ञापन ही नहीं देते बल्कि नियम विरुद्ध इसके पूरे परिवार की राज्य मुख्यालय की मान्यता प्रदान की गई है ऐसे बकलोल पत्रकारों कि राज्य मुख्यालय की मान्यता समाप्त नहीं की गई तो आने वाले वक्त में बकलोल पत्रकारों की मांग बढ़ाते जाएगी और उनकी देखा देखी अन्य पत्रकार भी बकलोल करने पर उतारू हो जाएंगे बकलोल कोई शिक्षित परिवार या किसी संस्कारी परिवार के गुण नहीं होते बल्कि सड़क छाप आम बाजरो चलन की भाषा शैली है और समाज से तिरस्कृत,अपेक्षित ही बकलोल करता दिखाई देता है । पूर्व में एक अनपढ़ पत्रकार की बकलोल के किस्से प्रेस रूम में विख्यात है जिसके द्वारा अपनी बकलोल के माध्यम से अधिकारियों को डरा धमका कर समाजवादी सरकार में लाखों करोड़ों का विज्ञापन का व्यापार किया गया और उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल करके अपना डर का माहौल व्याप्त कर दिया था परंतु इस हकीकत को कोई झूठ नहीं सकता कि आज दुनिया से जाने के बाद ना तो वह दौलत काम आयी और ना ही उस बकलोल का कोई साथी झांकने गया और ना ही कोई आखिरी वक्त में बाराती दिखाई देते है
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