मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ स्थागित धरना फिर शुरू
shivpuri patrkar dharna

अपारदर्शी लोह कपाट तोड़ेगी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

शिवपुरी में मीडिया कवरेज पर प्रतिबंध लगाने के लिए मीडिया को व्यवस्था के नाम पर रोकने वाली प्रभारी कलेक्टर की कार्यशैली के खिलाफ 11 दिन से चल रहा विरोध और स्थागित धरना फिर शुरू होने वाला है। वरिष्ठ पत्रकारों ने स्थगित धरने के निर्णय को अनुचित ठहराते हुए धरना पुन: शुरू करने का निर्णय ले लिया है। रूप रेखा और तय नीति पर धरना देने के लिए तैयार पत्रकारों ने दमदारी से कहा है कि मीडिया पर पहरे लगाकर प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या अपारदर्शिता के जो लोह कपाट लगा रही हैं उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तोड़कर रहेगी। पत्रकारों ने प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या की कार्यशैली और मनमाने अंदाज में लिए गए निर्णय को पत्रकारिता की स्वतंत्रता के खिलाफ माना है। सनद रहे! प्रभारी कलेक्टर ने पीआरओ (सरकारी पत्रकार) को प्लेग्राउण्ड में गणतंत्र पर्व की व्यवस्था के नाम पर पत्रकारों की उपस्थिति(कवरेज) को लेकर जिस अंदाज में बेईज्जत (नौकरी खा जाऊंगी)किया ,वह पत्रकारों की साख पर सीधा हमला था। उन्होंने अस्पताल में  जो पास सिस्टम लागू करने का मन बनाया और प्रशिक्षु आईएएस अंकित अष्ठाना ने जो उसका प्रचार किया वह पत्रकारों के लिए विरोध करने का सशक्त कारण था और भी कई कारण हैं जो पत्रकारों के 11 दिनी विरोध को उचित ठहराते हैं। जिस अंदाज में जिस वजह से पत्रकारों ने धरना प्रदर्शन बंद किया है वह पत्रकारों के लिए सम्मान जनक नहीं है पत्रकारों अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। एक कदम हम फिर बढ़ायेंगे। हमें कसम है हम पत्रकारिता की लाज बचायेंगे। आज से हिम्मती हौंसलों के साथ हम अपनी कलम की ताकत से हुक्मरानों को यह बता देंगे कि आप लोकतंत्र में व्यवस्था का हिस्सा हो न कि स्वयं में व्यवस्था। 

उपलब्धि और योग्यता कभी एक दूसरे के पूरक पूरी तरह नहीं रहे हैं। यही बजह है कि कई मर्तवा उपलब्धि प्राप्त चेहरे (प्रसंगवंश नेहा मारव्या) योग्य (मीडिया) व्यक्तियों को आगे बढऩे से रोकने का काम करने लगते हैं। यह पूर्वाग्राही और आत्मकेन्द्रित होने की निशानी है। दुर्भाग्य जनक सत्य यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था विषाक्त है और इसका प्रमाण यह है कि वह नेहा मारव्या जैसे अधिकारी उत्पन्न कर रही है। जो अधिकार संपन्न होने के बाद लिए जाने वाले अपने निर्णयों से लोकतंत्र के पवित्र नाद लोकमंगल को खुली चुनौती दे रहीं हैं। उनके द्वारा लिए गए एक-एक निर्णय (जो सामने आ गए) में उनका जो मिजाज (तेवर) दिखाई दे रहा है वह  घोषित तौर पर तानाशाहों जैसा है। वह पूरी व्यवस्था को खुद में केन्द्रित करना चाहती हैं जो उनके अनुसार चलने को तैयार नहीं हैं। वह उनके आक्रोश का और उनके द्वारा तय की गई सीमाओं का शिकार तत्काल हो जाता है। उन्होंने प्लेग्राउण्ड में पुलिस के साथ जो व्यवहार 25 जनवरी को प्लेग्राउण्ड में किया वह उनके व्यवहार की एक वानगी भर है जिसका नतीजा यह निकला कि उनके व्यवहार से आहत पुलिस उन्हें प्लेग्राउण्ड में छोड़कर सामूहिक तौर पर निकल गई। पुलिस अनुशासित है और उसका मौन विरोध (चुपचाप चले जाना) बहुत हद तक अनुशासित था लेकिन लोकतंत्र और मौजूदा दौर में मीडिया मुखर है। मीडिया पर जब प्रतिबंध लगाए जाने के प्रारंभिक प्रयास किए गए तो मीडिया ने खौलकर प्रभारी कलेक्टर की कार्यशैली का विरोध करना शुरू कर दिया। 11 दिन तक विरोध चला तत्पश्चात न समझ में आने वाली सुलह से धरना स्थागित हो गया जिसे पत्रकारों का समर्थन नहीं मिला और धरना फिर शुरू होने जा रहा है। पत्रकारों ने तय किया है कि हम प्रभारी कलेक्टर नेहा मारव्या से संवाद कायम करेंगे और उन्हें बतायेंगे कि आपके निर्णय लोकतंत्र के प्राण तत्व पारदर्शिता का गला घोंटने वाले हैं। पत्रकार किसी तानाशाही तेवर के अधिकारी की कार्यशैली कोचुपचाप सहन नहीं करेंगे हम आपके निर्णयों के खिलाफ तर्क तथ्य और प्रमाण देंगे। संवाद और लेखनी हमारी ताकत है। 

पत्रकारों को करो कॉपरेट:प्रभारी मंत्री

सर्किट हाउस में प्रभारी मंत्री रूस्तम सिंह ने कलेक्टर की पत्रकारों को लेकर अपनाई जहा रही कार्यशैली पर नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा कि लोकतंत्र में पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनसे हमें सटीक सूचनायें प्राप्त होती है। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार सेमुअल दास की मौके पर तारीफ करते हुए नेहा मारव्या से कहा कि मुझे इन्होंने कई महत्वपूर्ण सूचनायें दी हैं। यह (पत्रकार)जैसा चाहते हैं वैसा कॉपरेट करो। 

प्रशासन और पत्रकारों के द्वंद में संवाद जरूरी

प्रशासन और पत्रकारों के बीच चल रहे मतभेद पूर्ण द्वंद में संवाद महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ पत्रकारों ने संवाद की महत्वता को स्वीकार करते हुए कहा है कि हम शीघ्र ही प्रभारी कलेक्टर से उनकी कार्यशैली और उनसे प्रभावित हो रही मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर संवाद कायम करेंगे। अधिकांश पत्रकारों ने कहा है कि संवाद से किसी भी समस्या का हल संभव है और लड़ाई व्यक्तिगत न होकर व्यवस्थागत हैं।  

Dakhal News 6 February 2017

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