महेश दीक्षित
बड़बोले, खोजी निगाहें, स्निग्ध मुस्कान, गोरांग, सामान्य सी कद-काठी। जब तक कुछ बोले नहीं, तब तक उनके व्यक्तित्व की थाह पाना मुश्किल ही होता है। दिखने में बेहद सरल, लेकिन भीतर से बेहद संजीदा, खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी। उसकी वजह है अपने भीतर विचारों का, योजनाओं का, सपनों का, जज्बातों का सैलाव संभाले रहते हैं। हम बात कर रहे हैं भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश द्विवेदी की। उन्होंने पत्रकारिता में बेहद कम समय ही अपनी अलग पहचान स्थापित की है। एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले 47 वर्षीय जगदीश ने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही पत्रकारिता में कुछ कर गुजरने का सपना खुली आंखों से देखना शुरू कर दिया था। वे 1991 में भोपाल आए ही थे, कि उन्हें दैनिक जागरण में बतौर ट्रेनी रिपोर्टर काम करने का मौका मिल गया। बस फिर क्या था, जागरण में ही लंबी पारी खेलते हुए 1996 में उन्हें अपराध रिपोर्टिंग का प्रभारी बना दिया गया। इसके बाद उन्होंने लगातार अपराध जगत की कई खोजपरक और अकादमिक स्पेशल स्टोरीज से क्राइम रिपोर्टिंग में कई नए प्रतिमान स्थापित किए। परंपरागत क्राइम रिपेार्टिंग करने वाले रिपोर्टरों को बताया कि क्राइम रिपोर्टिंग ऐसी भी हो सकती है। इसके बाद उनकी खूबियों और काबिलियत को देखते हुए प्रबंधन ने उन्हें प्रोविंसियल हेड के साथ जागरण की लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका सत्यकथा का प्रभारी बनाया। सत्यकथा को उन्होंने अपनी श्रेष्ठ पत्रकारिता के जरिए नई ऊंचाईयां दी। इसमें द्विवेदी ने उस समय के चंबल बीहड़ों के कुख्यात डकैत निर्भय गुर्जर, राजू तोमर और दस्यु मलखान के इंटरव्यू किए। जो पत्रकारिता जगत में काफी चर्चित रहे। उनके इन इंटरव्यू को पत्रकारिता में मील का पत्थर कहा गया। क्योंकि जिन डकैतों को तलाशने में सरकार की पुलिस रात-दिन एक किए हुए थे, उस समय द्विवेदी ने उनके इंटरव्यू किए। इसके बाद जागरण गु्रप ने द्विवेदी को बतौर राजनीतिक संपादक प्रमोट किया। जिसका निर्वाह करते हुए उन्होंने कई सक्सेस और चर्चित स्टोरीज की। इनमें-साधना सिंह को बोले गए संवादों ने छीन ली लालबत्ती, संगठन में कंवारों को मिलेगी जगह, शादी-शुदाओं की होगी छुट्टी जैसी कई स्टोरीज बेहद सुर्खियों में रहीं। द्विवेदी वर्तमान में शाम के अखबार प्रदेश टुडे में ब्यूरो चीफ हैं। द्विवेदी ने क्रिमनोलॉजी एंड फोरेंसिक साइंस और अंग्रेजी विषय में एमए, एलएलबी किया है। द्विवेदी कहते हैं कि पत्रकारिता में अभी तो यह पड़ाव है, मुझे बहुत दूर जाना है, कुछ कर दिखाना है। द्विवेदी को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए कई सम्मान, पुरस्कार मिल चुके हैं। लेकिन वे इनका जिक्र नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि किसी भी मान-सम्मान से कहीं ज्यादा जरूरी है, जीवन में निरंतरता, कठोर परिश्रम, खोजी दृष्टि, अपने पेशे को लेकर सजगता और ईमानदार होना। यदि आपके जीवन में यह पांच तत्व हैं, तो फिर आपको आगे बढऩे से कोई ताकत नहीं रोक सकती है।[बिच्छू डॉट कॉम]