ज़रा देखें मुख्यमंत्री जी किसके पास है आपका पी आर...
प्रवीण दुबे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जितनी ख़बरें टी वी पर आती हैं उतनी किसी भी राज्य के मुख्य मंत्री के खिलाफ नहीं आतीं. इसकी वजह ये नहीं है कि शिवराज सारा ही काम उलटा-पुल्टा करते हैं बल्कि वजह ये है कि एम् पी सरकार का जनसंपर्क विभाग मुख्य धारा के पत्रकारों से सरोकार ही नहीं रखता. शिवराज बहुत अच्छी छवि वाले नेता हैं लेकिन उसे तराशने वाला विभाग पूरी तरह से उदासीन है.सबसे बड़ा उदाहरण है पिछले दिनों मुख्य मंत्री शिवराज सिंग चौहान के गृह ग्राम जैत में दलितों के साथ भेदभाव की ख़बरों का . ये खबर बाहर ही नहीं आती यदि मुख्यमंत्री के अधीन काम करने वाला जनसंपर्क विभाग, जो सरकार की छवि बनाने का ही वेतन लेता है यदि थोड़ा सजग होता तो.किसी भी राज्य में सरकार के खिलाफ होने वाली गतिविधियाँ चाहे वो विरोधी दल या पार्टी के विरोधियों की ही क्यों न हो, इस पर नज़र इंटेलिजेंस रखता है. इसी तरह मीडिया सरकार के बारे में किस दिशा में सोचता है ये नज़र इंटेलिजेंस की तरह ही रखना जन संपर्क विभाग का काम है. मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में यदि रविन्द्र पंडया,लाजपत आहूजा,रामू माकोड़े,सुरेश तिवारी और मंगला मिश्रा को छोड़ दें तो एक भी अधिकारी मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद ही नहीं रखते. उनके पास चंदाखोर पत्रकारों की भीड़ बैठी रहती है और कई तरह के लाभ में लगी रहती है लेकिन जो असल पत्रकार हैं उनसे संपर्क ही न्यूनतम है. ज़ाहिर है ऐसे हालात में जन संपर्क को ये पता चलने से रहा कि असल पत्रकार सरकार के खिलाफ कौन सी ख़बरें पका रहे हैं. गोर करने लायक बात ये है कि जो पत्रकार जनसंपर्क के अधिकारियों के पास चापलूसी में लगे रहते हैं उनके पास या तो दो पन्ने का अखबार है या फिर कोई चन्दा मांगने वाला टीवी. वे ना तो ख़बरों को चला सकते हैं और ना ही रुकवा सकते हैं. जैत की घटना को ही उदाहरण बतौर सामने रखिये. इंटेलिजेंस को पता था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी जैत जा रहे हैं लेकिन जनसंपर्क विभाग को भनक भी नहीं थी कि भोपाल से कौन कौन से पत्रकार जैत जा रहे हैं इस स्टोरी को करने के लिए. जनसंपर्क विभाग ऐसी ख़बरों को बेशक छपने या दिखने से नहीं रोक सकता क्योंकि जो चंदाखोर, मुफ्तखोर पत्रकार नहीं हैं वे भला जनसंपर्क के कहने पर क्यों चलेंगे. लेकिन इतना तय है कि ऐसी ख़बरों को डायलूट करना या इसका तोड़ निकालना जनसंपर्क का ही काम था.जैसे ही ये खबर बाहर आई इसी विभाग को सलाह देना था कि.......सर पचोरी या मीडिया के पहुँचने के पहले दलितों को मंदिर में बैठा कर कोई पूजा या धार्मिक आयोजन करवा सकते हैं. जब मीडिया या पचोरी जैत पहुँचते और देखते कि मंदिर में दलित बैठे पूजा कर रहे हैं तो मीडिया के लिए खबर मर जाती और पचौरी के लिए मुद्दा...... लेकिन दिक्कत ये है कि जब विभाग के अधिकारियों को ये पता नहीं कि आज मीडिया जैत में ज़मा हो रहा है तो भला उन्हें कैसे इसका तोड़ पता होता. किसी तरह सीहोर कलेक्टर ने जाकर हालात को संभाला लेकिन तब तय तो रायता फ़ैल चुका था.ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क विभाग का बजट बहुत कम है या उसके पास अधिकारी कम है..पूरा भरा हुआ अमला है जो चाटुकारों से घिरा हुआ है. हर साल का बजट देखिये पत्रकारों के नाम पर समितियों में चहेतों को रखकर उन्हें करोड़ों रूपये काम देकर ये अधिकारी सरकार को कागजों में इत्मीनान कराते रहते हैं कि उनका पत्रकारों से जीवंत संपर्क है जबकि देखा जाए तो अंगुली में गिने जाने लायक मुख्य धारा के प्रिंट और टीवी के पत्रकार हैं जो वाकई वेतनभोगी पत्रकार हैं सरकारी सुविधा भोगी नहीं, उन तक विभाग की पहुँच ही नहीं है.होना ये चाहिए कि जनसंपर्क के किसी न अधिकारी की रोज़ पत्रकारों से बातचीत होती रहे ताकि पता चलता रहे कि क्या पक रहा है मीडिया में लेकिन जनसंपर्क वाले सिर्फ उन्हें ही पत्रकार मानते हैं जो या तो दलाली करते हो या चिरोरी.ज़ाहिर है ऐसे व्यक्ति से मीडिया की सोच का भला क्या ख़ाक पता चलेगा? इस क्रम में बेशक पंडया जी और मंगला मिश्रा की सोच अपने काम के प्रति समर्पित दिखती है क्योंकि वे मुख्यमंत्री और सरकार के खिलाफ चल रही मीडिया के कदमताल को बखूबी भांप लेते हैं. नए जनसंपर्क आयुक्त को समझना चाहिए कि उनके विभाग में दरअसल हो क्या रहा है.....मुख्यमंत्री को भी इस विभाग के समीक्षा समय समय पर करते रहना चाहिए कि ये विभाग वाकई अपने काम में इमानदार है भी या नहीं. उन्हें पता चल जाएगा कि कमीसन वाली डोक्युमेंट्री बनवाने के अलावा विभाग ने कब सरकार की ढाल बनने की कोशिश की है. जिक्र बेशक जनसंपर्क विभाग के न्यूज़ सेक्सन का भी होना चाहिए, इस शाखा को भी ख़बरों से जुड़े मसलों पर मुख्य धारा के पत्रकारों से संवाद रखना चाहिए. सरकार का दुर्भाग्य ही है कि जनसंपर्क विभाग के फोन अक्सर इसी बात को लेकर असल पत्रकारों के पास आते हैं कि....."माननीय मुख्यमंत्री जी आज शाम को इलेक्ट्रोनिक मीडिया से इतने बजे वल्लभ भवन में या सी एम् हाउस में बात करेंगे..." यदि सिर्फ इतना ही काम जनसंपर्क विभाग का है तो मेरी तो मुफ्त की सलाह है सरकार को कि आउट सोर्सिंग करवा लीजिये. इतना मेसेज और प्रेस कोंफ्रेस तो आराम से कोई भी इवेंट मेनेजमेंट कम्पनी अरेंज कर सकती है. अकारण इतना बड़ा अमला खडा करके उस पर हर साल करोड़ों रूपये क्यूँ खर्चे जाएँ....? (दखल)(लेखक प्रवीण दुबे NEWS 24 के प्रदेश हेड हैं)