Dakhal News
21 November 2024संस्कार-सरोकारों का लेखन जिनकी पहचान
महेश दीक्षित
भगवान उपाध्याय पत्र लेखन में स्कूल लाइफ से ही जुड़ गए थे, इसलिए भाषा पर पकड़ बनाने में कोई परेशानी नहीं हुई। अखबारों में नौकरी करने से पहले ही उनके सम-सामयिक विषय-परक आलेख और रिपोर्ताज धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, सरिता, रीडर्स डायजेस्ट, कादम्बिनी, नईदुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे थे। पिताजी रमेश प्रसाद उपाध्याय हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत के शिक्षक थे। तीनों विषयों में एमए के साथ साहित्य रत्न और वैद्य विशारद थे।। उनका ही असर रहा कि इन तीनों विषयों में भगवान के 90 प्रतिशत से कम अंक कभी नहीं आए।
भाषा पर अच्छी पकड़ रही। भगवान ने साप्ताहिक और शाम के अखबारों से पत्रकारिता का ककहरा सीखने के बाद 1990 में देशबंधु, भोपाल में अपराध की रिपोर्टिंग से असल स्कूल शुरू हुआ। मायाराम सुरजन जैसे सुप्रसिद्ध पत्रकार के सामने बैठकर पत्रकारिता के आदर्श, अनुशासन और सबक सीखे। राज भारद्वाज के टिप्स और गिरजाशंकर के मार्गदर्शन मेें कलम की धार तराशी। कुछ साल मशहूर पत्रकार स्वामी त्रिवेदी के अखबार से भी जुड़े। वर्ष 1994 से मार्च 2000 तक दैनिक जागरण, भोपाल में रहे। एक अप्रैल, 2000 से अब तक दैनिक भास्कर से जुड़े हैं।
वर्तमान में भोपाल, इंदौर और ग्वालियर सैटेलाइट का जिम्मा संभाल रहे हैं। भगवानजी को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए माधवराव सप्रे संग्रहालय का राजेंद्र नूतन सम्मान और सत्यनारायण तिवारी स्मृति सम्मान के साथ कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। भगवानजी का कहना है, पत्रकारिता धैर्य और संयम का पेशा है। इसमें जल्दबाजी में लिए गए फैसले घातक हो सकते हैं। चंद ज्यादा पैसे और बड़े पद के प्रलोभन में आकर लिए गए फैसले घातक ही नहीं बल्कि आत्मघाती हो सकते हैं। इस पेशे में पुरानी पीढी़ ने जितनी चुनौतियां झेली होंगी, उसका अंदाजा नई पीढी़ को नहीं होगा। लेकिन तब जितना सम्मान पत्रकारों का था, आज उतना नहीं दिखाई देता। आज सबकुछ पका-पकाया मिलने लगा है। मेहनत करने की आदत छूटती जा रही है। संबंध और संपर्क मोबाइल फोन और नेट तक सीमित रह गए हैं। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का माहौल निराशाजनक नहीं है। यहां अपार संभावनाएं हैं। बदलते परिवेश में नए पत्रकारों में से जिन्होंने संस्कारों और सरोकारों की राह पकडी़, वे सफलता की सीढिय़ां चढ़ रहे हैं।
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9 October 2016
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