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21 November 2024लम्बी फेहरिश्त है ऐसे पत्रकारों की ,पत्रकारिता का विद्यालय जैसा स्वदेश
डॉ राकेश पाठक
दैनिक स्वदेश ग्वालियर के बारे में पिछली पोस्ट पर स्वस्थ विमर्श हुआ।कुछ बिंदु स्पष्ट करना ज़रूरी है।
1.स्वदेश घोषित तौर पर एक विचारधारा विशेष से सम्बद्ध है।इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
2.विचारधारा से जुड़े होने के कारण स्वदेश को जो भी हानि लाभ होता है वो उसके खाते में।
3.अन्य विचारधारों से सम्बद्ध अखबार भी तो आखिर निकल ही रहे हैं जैसे कांग्रेस से सम्बद्ध नवजीवन, नेशनल हेराल्ड, सीपीएम के लोकलहर, पीपुल्स डेमोक्रेसी, सीपीआई का न्यू एज, मुक्ति संघर्ष आदि आदि भी प्रकाशित होते हैं।
लेकिन विचारधारा से बंधे अख़बार कभी भी व्यापक प्रसार प्रचार पाने में सफल नहीं होते।
4.स्वदेश भी इसी विडंबना का शिकार हुआ। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के काडर तक ने अख़बार की चिंता नहीं की।
5.फिर भी किसी भी विचार समूह को प्रकाशनों के जरिये अपने विचार को प्रचारित, प्रसारित करने का अधिकार तो है ही । होना भी चाहिए।
विशेष विचार से सम्बद्ध होने के बावजूद 'स्वदेश' ने देश को अनगिनत पत्रकार दिए हैं।
पहली किश्त में बताया था कि अटलबिहारी बाजपेयी और मामा माणिकचन्द बाजपेयी जैसे मूर्धन्य लोग स्वदेश के संपादक रहे।
सिर्फ ग्वालियर की ही बात करें तो स्वदेश,ग्वालियर एक समय पत्रकारिता का विद्यालय हुआ करता था।
राजेन्द्र शर्मा, जयकिशन शर्मा संपादक रहे तो बलदेवभाई शर्मा भी यहीं से निकले।बलदेवभाई बाद में 'पांचजन्य' के संपादक बने और इन दिनों राष्ट्रीय पुस्तक न्यास NBT के अध्यक्ष हैं।
राजेन्द्र शर्मा मप्र की पत्रकारिता में विशिष्ट स्थान रखते हैं। जयकिशन शर्मा मप्र के सूचना आयुक्त पद पर रहे।
महेश खरे स्वदेश से ही आगे बढ़े और नवभारत टाइम्स,भास्कर में संपादक रहे। हरीश पाठक जैसे जुझारू पत्रकार स्वदेश से निकल कर धर्मयुग में पहुंचे और बाद में हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा जैसे अखबारों में संपादक रहे। हरीश जाने माने कथाकार भी हैं।
हरिमोहन शर्मा स्वदेश से निकल कर दैनिक भास्कर , पीपुल्स समाचार ,राज एक्सप्रेस आदि में वर्षों संपादक रहे। इसी पीढ़ी के प्रभात झा स्वदेश में पत्रकारिता के झंडे गाड़ने के बाद राजनीति में आये और आज बीजपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य हैं।
डॉ तानसेन तिवारी भी इसी दौर का खास नाम हैं। वे लंबे समय स्वदेश में रहे और बाद में भास्कर का हिस्सा बने।
आजकल डॉ तिवारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय हैं।
इसी पीढ़ी के बच्चन बिहारी कई साल स्वदेश में रहे और आजकल आचरण के संपादक हैं।
देश मे अपनी विशिष्ट शैली के लिए विख्यात रहे आलोक तोमर(अब स्मृति शेष) भी स्वदेश से निकल कर जनसत्ता में पहुंचे थे और धूम मचा दी थी।
बालेंद्र मिश्र स्वदेश ग्वालियर में लंबे समय रहे और कालांतर में नवस्वदेश सतना और परिवार टुडे आदि अखबारों में संपादक बने।नई पीढ़ी में भी तमाम नाम ऐसे हैं जो स्वदेश से पत्रकारिता की बारहखड़ी सीख कर निकले और आज देश में नाम कमा रहे हैं।
भूपेंद्र चतुर्वेदी(अब स्मृति शेष) स्वदेश के बाद मुम्बई नवभारत के संपादक रहे।
लोकेंद्र पाराशर संपादक रहे और अब बीजपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं।इसी पीढ़ी के अनुराग उपाध्याय भोपाल पहुंचे और कई साल इंडिया टीवी के ब्यूरो चीफ रहने के बाद आजकल डीएनएन चैनल के संपादक हैं। अतुल तारे लगभग तीन दशक से स्वदेश में ही हैं और अब प्रधान संपादक का दायित्व निभा रहे हैं।
जबर खबरनवीस प्रमोद भारद्वाज स्वदेश के बाद जनसत्ता,दैनिक भास्कर, अमर उजाला में संपादक रहे और अब हरिभूमि भोपाल में संपादक हैं।
प्रदीप मांढरे स्वदेश से निकल कर भास्कर में गए और अब अपना खुद का अखबार ग्वालियर हलचल निकालते हैं। अनिल कौशिक भी स्वदेश से ही अपनी पारी शुरू कर नवभारत टाइम्स में पहुंचे।
चंद्रवेश पांडेय ने स्वदेश से पत्रकारिता शुरू की फिर नवभारत, नईदुनिया में रहने के बाद आजकल प्रदेश टुडे में संपादक हैं।
प्रखर पत्रकार हिमांशु द्विवेदी स्वदेश के बाद नवभारत और भास्कर में रहे और आजकल हरिभूमि के प्रधान संपादक हैं।
अभिमन्यु शितोले ने मुम्बई की राह पकड़ी और बाल ठाकरे के
अखबार सामना और 'दोपहर का सामना' में काम किया। अब वे नवभारत टाइम्स मुंबई में राजनैतिक संपादक हैं। फिरोज खान भी स्वदेश से सीख कर आगे बढ़े।नवभारत, भास्कर में रहे और आजकल मुंबई नवभारत टाइम्स में चीफ कॉपी एडिटर हैं।
देश के शीर्ष कार्टूनिस्ट में शुमार इरफ़ान भी स्वदेश ग्वालियर में ही आड़ी टेढी रेखाएं खींचते हुए जनसत्ता जैसे अखबार में पहुंचे और आज भी धूम मचाते हैं। हरिओम तिवारी भी स्वदेश में ही कार्टूनिस्ट थे। बाद में भास्कर, पत्रिका आदि में रहे और अब हरिभूमि भोपाल में हैं।
के के उपाध्याय और मनोज पमार भी स्वदेश से निकले और आज हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रीय अखबार में संपादक हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मनोज मनु आज एक सुपरिचित नाम है। मनोज आजकल 'सहारा' मप्र चैनल के हेड हैं।वे भी ग्वालियर स्वदेश से ही निकले हैं।
भोपाल के तमाम चैनलों में काम कर चुके अजय त्रिपाठी भी स्वदेश में ही थे। आजकल अजय आईबीसी चैनल में हैं।
इंदौर के प्रतिष्ठित पत्रकार प्रतीक श्रीवास्तव भी स्वदेश में काम कर चुके हैं। प्रतीक चौथा संसार के संपादक रहे और आजकल साधना चैनल के ब्यूरो प्रमुख हैं।
कई लोग ऐसे भी हैं जो स्वदेश में रहने के बाद अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हुए उनमें से सुधीर फड़नीस का नाम प्रमुख है। सुधीर लंबे समय पत्रकार रहने के बाद अब स्वामी चिन्मयानंद मिशन में बड़ी जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं।
ब्रजेश पूजा त्रिपाठी पत्रकारिता छोड़ सरकारी नौकरी में गए और आजकल महिला बाल विकास में अधिकारी हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव नरेंद्र पांडेय भी स्वदेश में रहे हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विसुवविद्यालय में प्राध्यापक व लेखक लोकेंद्र सिंह लोकेन्द्र सिंह ने भी स्वदेश से ही पत्रकारिता शुरू की। बाद में जागरण, भास्कर व पत्रिका में भी रहे।
अभय सरवटे स्वदेश में ही प्रबंधन में थे और आजकल अमर उजाला उत्तर प्रदेश में क्लस्टर हेड हैं।[डॉ राकेश पाठक की वॉल से ]
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24 March 2018
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