एंकर सेहत के लिए ये तो हानिकारक है
tv एंकर

अरशद अली खान

 एक जमाना था, जब दूरदर्शन ही था, तब प्रतिमा पुरी, मुक्ता श्रीवास्तव, सलमा सुलतान और जेवी रमन ही खबर वाचन किया करते थे। वे ही एंकर होते थे, वे ही वाचक होते थे। उनके चेहरे हमेशा खबर देने की जिम्मेदारी के प्रति एकदम सजग दिखते और अंत में मुस्कुरा कर विदा लेते। जब निजी खबर चैनल आए तब भी दो हजार सात आठ तक एंकर खबर देते, चरचा कराते। इनमें एक अनुशासन रहता। एनडीटीवी में बरखा दत्ता का ‘‘वी द पीपल’ या विक्रम चंद्रा का ‘‘बिग फाइट’ तीखी बहसें कराते, लेकिन एंकर संतुलित और संयोजक की भूमिका में ही रहते।लेकिन जब अन्ना आंदोलन दिन-रात कवर हुआ, रामदेव का अनशन लाइव चौबीस बाई सात के भाव से कवर हुआ, जब निर्भया कवरेज हुआ तो एंकरों की मुखमुद्रा बदलने लगी। वे दिन भर बैठते। फील्ड से आतीं रपटों को कंट्रोल करते। बहसें कराते और अांदोलनकर्ता के भाव में आ जाते, आह्वानकर्ता बनने लगते। जनता से कहने लगते कि निकल पड़ो। चुप मत बैठो। कब तक सहोगे। जनता जवाब मांगती है। लाइनें खुली हैं। आप बताइए कि क्या करना है? यह चैनल और एंकरों और रिपोर्टरों के ‘‘एक्टिविस्ट’ ‘‘विजिलांत’ होने की शुरुआत थी। पगार पर काम करने वाले एंकरों और रिपोर्टरों को लगने लगा कि वे चाहें तो ‘‘एक धरने’ को आंदोलन बना सकते हैं। सरकार को मजबूर कर सकते हैं। वे चाहें तो एक बर्बर बलात्कार को एक राष्ट्रीय आंदोलन बना सकते हैं। वे समाज का ‘‘आईना’ बनने की जगह उसे ‘‘हांकने वाले’ बन गए! तब भी एंकरों के चेहरे उतने क्रुद्ध नहीं दिखते थे, जितने आज दिखते हैं जबकि आज एंकर किसी आंदोलन को हवा न देकर सिर्फ विपक्ष का एक्सपोजे ज्यादा कर रहे हैं। तब वे किस बात पर इतने नाराज, इतने भड़के हुए, इतने कुपित, इतने आक्रामक नजर आते हैं? तीन लाख से पचास लाख की पगार लेने वालों को इतना गुस्सा क्यों आता है? हमें दो-तीन कारण नजर आते हैं: एक : यह वह दौर है जिसमें ‘‘बदतमीज’ और ‘‘बदमिजाज’ की कीमत है (सौजन्य : सोशल मीडिया); दूसरा : एंकर और उनके चैनल अपनी खास आवाज, अपनी खबर की प्रस्तुति शैली की जगह अपने क्षुब्ध और क्रुद्ध चेहरे को ही अपना ब्रांड समझते हैं। तीसरा : अस्थायी और ठेके की नौकरी की अस्थिरता, कभी भी नोकरी जाने का डर, एंकरों व रिपोर्टरों को दिन-रात ‘‘अंतस्फोट’ की स्थिति में पहुंचाते रहते हैं। इसलिए भी वे गुर्राते दिखते हैं। कारण जो भी हो, एक-दो घंटे तक ऐसा गुर्राना अगर अभिनय भी है, तो भी सेहत के लिए तो हानिकारक हो ही सकता है। 

Dakhal News 19 June 2017

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