शिवराज गाय लाये ,करेला बाहर फेंका
विजय कुमार दास मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इकबाल सिंह बैंस से नाराज नहीं थे और उनकी कार्यशैली उन्हें इतनी पसंद थी कि वे कभी चाहकर भी उन पर नाराजगी नहीं जताते फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री के सचिव पद से मुक्त करने का अंतत: फैसला क्यों ले लिया यह आज राजधानी की नहीं बल्कि समूचे मध्यप्रदेश की नौकरशाही में खोज का विषय बन गया है? एक ओर विधान सभा का सत्र दूसरी और मुख्य सचिव अवनि वैश्य की बेटी का विवाह और तीसरी तरफ पुलिस महानिदेशक एस. के. राऊत के बेटे का विवाहोत्सव यूं कहें मंडप से लेकर सड़क तक चारों तरफ केवल यही चर्चा गर्म रही कि इकबाल सिंह बैंस ने आखिर मुख्यमंत्री का क्या बिगाड़ा? बिगाड़ा भले ही कुछ ना हो परंतु भारतीय जनता पार्टीं का सत्तारूढ़ राजनीतिक दंगल यह मान रहा है कि मुख्यमंत्री ने अपने इस होनहार सर्वगुण संपन्न सचिव को हटाया नहीं बल्कि अपने आपको बचाया। यूं कहा जाए कि मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने भी अपने आपको बचाने में सफलता प्राप्त कर ली है तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। बचाने का तात्पर्य हैं बैंस की वजह से मुख्यमंत्री पर लगते रहे लगातार आरोपों से बचाव। आरोप थे कि श्री बैंस, पार्टी के विधायकों सांसदों और यहां तक कि मंत्रिमण्डल के वरिष्ठ सदस्यों के सुझावों की परवाह नहीं करते थे। इसी के चलते मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान के कान पक गए थे। बावजूद इसके वह जानते थे कि इकबाल सिंह बैंस कही गलत नहीं है। सूत्रों के अनुसार 'आग में घी उस समय डल जाता जब मुख्य सचिव अवनि वैश्य भी कामों के रूकने और फाईलों के लटकने में श्री बैंस को दोषी ठहरा देते। बताते है कि वैश्य तो यहां तक कह देते कि 'लाजिस्टिक्स राज्य ऐसे में कहां से बना पाएंगे। मामला यहीं तक नहीं था बताया जाता है कि मुख्यमंत्री से मिलने वाले देशभर के जितने भी प्रभावशाली लोग है उन्हें पहले इकबाल सिंह बैंस को प्रभावित करना पड़ता वरना उनकी दाल नहीं गलती थी। यह बात सच है कि श्री बैंस के स्थान पर आने वाला वरिष्ठ आए.ए.एस. अधिकारी निहायत 'गाय की तरह सीधा-साधा इंसान है जबकि बैंस 'करेले की तरह व्यवहार करने में नहीं चूकते थे। श्री बैंस कहते थे सच-सच बोलो साफ-साफ मना करों, इसी में स्वास्थ्य ठीक रहता है। किसी को झुलाने से क्या फायदा-शायद इसी आचरण का उन्हें शिकार भी होना पड़ा है। सच क्या है, अंर्तकथा क्या है कोई नहीं जानता सब यही मान रहे है कि मुख्य सचिव के साथ श्री बैंस की नहीं पट रही थी इसलिये मुख्यमंत्री के पास उन्हें वहां से विदा करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। जबकि पार्टी के सूत्र कहते हैं चाहे श्री बैंस हो या फिर और कोई बड़ा से बड़ा नौकरशाह, वे अपने मुख्यमंत्री को कर्नाटक के 'यादुरप्पा की तरह मुख्यमंत्री और बौना आदमी नहीं बनने देंगे। सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान कद से आगे बहुत बड़े होने होने वाले राजनीतिज्ञ है, लेकिन नौकरशाह की इसी तरह की बाधाओं ने उन्हें दो कदम आगे बढऩे से हमेशा रोका है। ऐसे कई फैसले, जिसे मुख्यमंत्री करना चाहते थे शायद इकबाल सिंह बैंस ने नहीं करने दिया यह कह कर कि मेसेज गलत जायेगा। हो सकता है श्री बैंस सही रहे हों परंतु पार्टी का एक वर्ग इस बात को नहीं मानता। सूत्रों कहते है कि श्री बैंस को प्रशासनिक सत्ता के जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिये संघ का भी दबाव आया, हालांकि मुख्यमंत्री ने ऐसा कभी अहसास नहीं होने दिया। परंतु जब मुख्य सचिव और बैंस के रिश्तों में सीमा से अधिक खटास का आभास हुआ तो शायद उन्होंने यही बेहतर समझा कि सत्ता में बने रहो, लेकिन लोगों में कड़वाहट पनपे इसकी गुंजाइश बिल्कुल ना हो। इसी के चलते यह कहा जा रहा है कि बैंस को मुख्यमंत्री ने हटाया नहीं है बल्कि अपने ऊपर पार्टी के जनप्रतिनिधियों का लगातार जो आरोप लग रहा था उससे बचने के लिए एक सुगम रास्ता ढूंढा हैं, तो इसमें किसी को आश्चर्य चकित नहीं होना चाहिए। हालांकि यह भी सच है मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार अपने ही कार्यकाल में किसी मुख्यमंत्री ने अपने सचिव को विदा करने की जहमत उठाई है।[दखल ]पत्रकार विजय दास का यह लेख राष्ट्रीय हिंदी मेल से साभार इस विषय पर पत्रकार और कवि अनुराग उपाध्याय ने भी सन २००८ में कवितायेँ लिखी थी ,सुधि पाठकों के लिए उसके कुछ अंश भोले उठ काम कर।वल्लभ भवन जासोते अफसरों को जगा।.....भोले राज चला।बक बक मतकरपेड़ गिरा, पत्ते मत हिला।.....भोले राज इक "बाल" हैउसे हटासरकार की खालमत खराब करवा [दखल]