महेश दीक्षित
वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया सामाजिक सरोकारों के साथ ज्वलंत मुद्दों के लिए खबरनवीसी करने वाले देश के ऐसे पत्रकारों में शुमार हैं, जिन्हें सिर्फ खबर से सरोकार और खबरनवीसों से अनुराग है। वे स्वभाव से जितने विनम्र हैं, काम में उतने ही अक्खड़ हैं। 38 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
1978 में छतरपुर से आंचलिक पत्रकारिता से शुरुआत की। इसके बाद प्रदेश के तमाम समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए खबरनवीसी के साथ टेलीविजन के लिए भी काम किया। प्रदेश के वे ऐसे पहले पत्रकार हैं जिन्होंने 1980 में समाचार पत्र खबरों का स्त्रोत बताने के लिए बाध्य हैं या नहीं, इस मुद्दे को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी। इसे पत्रकारिता के इतिहास में छतरपुर कांड से जाना गया। इसमें पटैरिया नायक की भूमिका में रहे। पटैरिया ने इस छतरपुर कांड को संघर्ष गाथा शीर्षक से किताब बद्ध किया है।
श्री पटैरिया वर्तमान में महाराष्ट्र से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र लोकमत के मप्र ब्यूरो प्रमुख हैं। श्री पटैरिया इसके पहले नईदुनिया इंदौर, जनसत्ता मुंबई, चौथा संसार, संडेमेल, जन्मभूमि और दैनिक नईदुनिया भोपाल में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी कलम के जौहर दिखा चुके हैं। पत्रकारिता के साथ अब तक 25 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। इनमें व्यवस्था के खिलाफ बंदूक, मप्र में पत्रकारिता का इतिहास, बिन पानी सब सून उनकी चर्चित किताबों में हैं। अकेले समाचार पत्र और पत्रकारिता विषय पर उनकी नौ किताबें प्रकाशित हैं। इसके साथ पटैरिया दूरदर्शन के लिए दस्तक शीर्षक से 13 डाक्यूमेंट्रीज का निर्माण कर चुके हैं।
पटैरिया को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए फैलोशिप के साथ कई सम्मान भी मिले हैं। इनमें माखनलाल चतुर्वेदी आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार, मेन आफॅ द मीडिया और सत्यनारायण तिवारी लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान प्रमुख हैं। इसके साथ उन्हें राजेंद्र माथुर फैलोशिप और माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि द्वारा मप्र के पत्रकारिता इतिहास पर शोध फैलोशिप प्रदान की गई। श्री पटैरिया का कहना है कि श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए पत्रकार का सतत सक्रिय, जुझारू और खबर के प्रति ईमानदार होना आवश्यक है। यदि स्टोरी में कोई मुद्दा रेस किया है, तो फिर उसका समापन करके ही पत्रकार को दम लेना चाहिए। यही उसकी कमाई और थाती है। वे कहते हैं कि पत्रकार में सामाजिक सरोकार होना चाहिए। जो देखो, वह कहने और लिखने की कोशिश होनी चाहिए, यदि कहीं कोई मजबूरी भी है, तो भी बिकाऊ तो कतई नहीं होना चाहिए।