ग्रेटर भोपाल होने की राह पर राजधानी
ग्रेटर भोपाल होने की राह पर राजधानी
मनोज सिंह मीकनिम्न एवं मध्यम आय वर्ग में डेलवपर बड़ा बाजार देखने लगा है । उसे मकान या फ्लेट की कीमत को संतुलित रखना आवश्यक है जो सिर्फ कम मूल्य की भूमि पर ही संभव है । कीमतें आसमान पर :- भूमि के बढ़ते भावों ने शहर को केन्द्र से कई किलोमीटर तक फैला लिया है । सामान्य गति से बढ़ता शहर और कीमतें अब बेकाबू हैं । पिछले कुछ दशकों पहले ६-८ प्रतिशत की वृद्धि विगत दशक में ३५-४० तक पहुँच चुकी थी, जो अब यहाँ से ८० प्रतिशत तक पहुंचती जान पड़ती है । जमीन की कीमतों में यह तेजी डेवलपर्स न्यूनतम लाभ संजोए ग्राहक को शहर से दूर जाने को मजबूर कर रहे हैं । भोपाल जैसे टीयर-३ शहरों में वैसे भी डेवलपर न्यूनतम लाभ पर काम कर रहा है, ऐसे में एक प्रोजेक्ट पूरा करके वह सामान्य लोकेशन पर उतनी ही जमीन खरीदने में अक्षम प्रतीत होता है और फिर प्राइज बैंड बढ़ जाने के कारण अनुपातिक रूप से बायर नजर नहीं आता । मजबूरन शहर से दूर जाकर अपेक्षाकृत सस्ती जमीन पर योजना को मूर्त रूप देना उसे उचित मालूम होता है क्योंकि किसी भी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में भूमि का मूल्य मुख्य घटक है । विकास व व्यय शहर की किसी भी लोकेशन पर लगभग एक समान रहता है । निम्न एवं मध्यम आय वर्ग में डेवलपर बड़ा बाजार देखने लगा है । अतः उसे मकान या फ्लेट की कीमत को संतुलित रखना आवश्यक है, जो सिर्फ कम मूल्य की भूमि पर ही संभव है । स्वतंत्र मकानों एवं रो-हाउस के दिन भी इसी बढ़ते भूमि भाव के कारण तद गए हैं । एक एकड़ में जितने स्वतंत्र मकान बनते थे, उससे लगभग दोगुना फ्लेट बन जाते हैं, जो भूमि की कीमत को आधा कर देने में सहायक सिद्ध होते हैं । निर्माण व विकास खर्च में विशेष अंतर नहीं होने के कारण दिनोंदिन हाई राइज प्रोजेक्ट बाजार में उतर रहे हैं । बचतों पर ध्यान :- मकान की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए डेवलपर्स ने निर्माण की नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल तेज कर दिया है । छोटी-छोटी बचत की ओर बड़ा ध्यान दिया जाने लगा है । स्टील की बढ़ती कीमतों के चलते स्ट्रक्चर में उपयोग हो रहे स्टील की ओवरलेपिंग में व्यर्थ होने वाले स्टील की बचत पर भी डेवलपर्स का ध्यान जाने लगा है । साइट पर बिल्डिंग मटेरियल के अपव्यय एवं दुरूपयोग को नियंत्रित किया जाने लगा है । स्टोर एवं निर्माण स्थल पर ऑनलाइन कैमरे लगाए जाने लगे हैं । इन्वेंट्री व परचेसिंग के लिए ईआरपी जैसे आधुनिक सॉफ्टवेयर का उपयोग भी शुरू हुआ है । सीमेंट, रेत, गिट्टी का अपव्यय रोकने व गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए आरएमसी रेडी मिक्स कांक्रीट का उपयोग प्रारंभ हुआ है । भाड़ा, चेली, लिफ्ट व मानव श्रम पर व्यय नियंत्रित किया जा रहा है । बचत व गुणवत्ता के लिहाज से पीएमसी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट तैनात होते हैं । मार्केटिंग व्यय को कम कर अधिक रूझान कैसे पैदा किया जाए, इसके लिए ऑर्गेनाइज्ड रियल एस्टेट प्रोफेशनल को यह दायित्व आउटसोर्स किए जाने का नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है । प्रिंट मीडिया के अलावा कम बजट वाले प्रभावशाली मीडिया की तरफ प्रोजेक्ट के विज्ञापन का रूप दिखाई देने लगा है । कारपेट एरिया :- जमीन पर ज्यादा खर्च करने की बजाय डेवलपर प्रोजेक्ट की डिजाइन, सोंदर्य एवं ग्राहक की संतुष्टि पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं । समान्तर अर्थव्यवस्था वाले हमारे देश में एक सुखद परिवर्तन देखने को मिल रहा है कि रियल एस्टेट में अधिकतर लेन-देन चेक के जरिए होने लगा है । हमारे प्रदेश में स्टाम्प ड्यूटी सर्वाधिक होने के कारण यह प्रचलन अपेक्षाकृत कम उत्साहजनक है । सुपर बिल्टअप, बिल्डअप के अलावा डेवलपर पारदर्शिता बरतते हुए कारपेट एरिया भी दर्शाने लगे हैं । जिस बिल्डिंग मटेरियल या फिनिशिंग मटेरियल पर डेवलपर को गारंटी-वारंटी मिल रही है, वह ग्राहक तक पहुँचाने में पारदर्शिता बरती जा रही है ।प्लॉटेड प्रोजेक्ट्स :- महंगी जमीनों की मांग में काफी गिरावट देखने को मिल रही है । दुनिया के तीसरे बड़े रेसिडेंशियल बाजार मुम्बई में भी बिग-टिकट लेंड डील में भारी सुस्ती है, कीमतों को लेकर भूमि स्वामियों की अपेक्षाएं काफी ऊंची हैं। इसके चलते डेवलपर सतर्क होकर खरीदी कर रहे हैं । मार्केट में लैंड डील लगभग हॉल्ट पर है । डेवलपर जमीन की कीमतों के नीचे आने के इंतजार में वेट एंड वॉच की स्थिति में आ गए हैं । बने हुए मकानों की खरीद-फरोख्त सामान्य से नीचे है । इसके चलते प्लॉटेड डेवलपर ने जोर पकड़ा है, ताकि मकान बनाने की इच्छा रखने वाला बायर पहले प्लॉट खरीद सके, ताकि बढ़ते भूमि मूल्य की मार उस पर न पड़े । फिर क्रमबद्ध रीके से अपने मकान का निर्माण सुविधानुसार करा सके । देश के सभी भागों में बढ़ती कीमतों से बचने के लिए प्लॉट खरीदने का यानी प्लॉटेड डेवलपमेंट का मॉडल तेजी से लोकप्रिय हुआ है । अब इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स में भी सभी प्रकार की एमिनिटीज, सुविधाओं, सुरक्षा का खासा ख्याल रखा जाना है । निवेशकों के साथ-साथ कम बजट के लोगों के लिए प्लॉटेड डेवलपमेंट का मॉडल मध्यम या दीर्घ अवधि योजना के लिए कारगर सिद्ध हुआ है । इसके चलते बड़े साइज के प्लॉट्स भी उपलब्ध होने लगे हैं, ताकि सभी वर्ग के लोग अपनी पसंद का घर बनाने के सपने को साकार कर सकें । सर्वाधिक चर्चित प्लॉट साइज ६०० से १२०० वर्गफीट हुआ करता था, जो बढ़कर २४०० से १०,००० वर्गफीट तक जा पहुंचा है । विगत कई वर्षो से बड़े प्लॉट साइज उपलब्ध न होने के कारण यह मांग तेजी से उभरी है । जमीन खरीदकर प्रोजेक्ट करने के बजाय जॉइंट वेंचर प्रोजेक्ट डेवलपमेंट जैसे शब्द आम होने लगे हैं । लोकल बिल्डर्स, इस क्षेत्र के बड़े ब्रांड तथा नेशनल लेवल के रियल एस्टेट प्लेयर्स के पेशवराना अंदाज को भांपकर खुद को तेजी से बदल रहे हैं । अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के बड़े ब्रांड्स ने शहरों के प्रमुख ब्रांड्स के साथ जुड़ना प्रारंभ कर दिया है, ताकि टियर-२, टियर-३ शहरों में भी अपनी ठोस उपस्थिति दर्ज करा सके । छोटे शहरों के डेवलपर्स के लिए यह अच्छा मौका है कि वे बड़े ब्रांड्स से जड़कर अपना स्केल बढ़ा सके और वर्क कल्चर में सुधार कर सकें । जॉइंट वेंचर :- टॉप हाउसिंग एवं गोदरेज प्रॉपर्टीज जैसे ब्रांड भी मिलियन प्लस आबादी वाले शहरों में तेजी से जॉइंट वेंचर वाले प्रोजेक्ट तलाश रहे हैं । लैंड बैक वाले लोकल प्लेयर्स एवं इन्वेस्टर भी नेशनल एवं इंटरनेशनल ब्रांड्स में जुड़कर काम करना चाहते हैं, ताकि प्रोजेक्ट की एक्जीक्यूशन एवं डिलीवरी समय पर हो सके और तकनीकी एवं आधुनिक एमिनिटीज पर उसकी विशेषता व अनुभव का लाभ मिले । आर्थिक तेजी के चलते निम्न आय वर्ग तेजी से मध्यम आय वर्ग में शामिल हो रहा है, मध्यम आय वर्ग उच्च आय वर्ग के मुहाने पर खड़ा है और उच्च आय वर्ग के बाद एक और वर्ग का उदय हुआ है, जिसे अपर सर्किल में अल्ट्रा हाई इनकम ग्रुप के नाम से संबोधित किया जाता है । रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को सबसे बड़ा बाजार इन्हीं निचले दोनों वर्ग में समाहित है । (दखल)( श्री मनोज सिंह मीक, शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)
Dakhal News 22 April 2016

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