क्या मोदी के खास दिनेश शर्मा की किस्मत बदलेगी ?
उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण और मुसलमान इस बार नई सरकार बनाने में मुख्य सूत्रधार होंगे. इसे अब सभी दल समझने लगे हैं. अब चलिए शुरूआत करते हैं बीएसपी मुखिया मायावती से.तिलक, तराजू और तलवार...........! ऐसे नारे से अपने दल को स्थापित करने वाली मायावती आज अपने जन्मदिन के अवसर पर अगड़ी जाति को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग की. इससे पहले इस मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री को खत भी लिख चुकी हैं. यह यूं ही नहीं हुआ है. ऐसे सफर की शुरूआत 2007 के चुनाव में ही हो चुकी थी. तिलक, तराजू और तलवार..... का नारा बदल कर 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है' तक पहुंच गया. बहुजन सुखाय से सर्वजन सुखाय के बदलाव से बहन जी बहुमत के साथ सत्ता में पहुंच गईं. एक बार फिर बहन जी उसी को दोहराने की कोशिश में हैं.उधर लोकसभा में भारी बहुमत मिलने से बीजेपी को भी अपने पुराने वोट बैंक पर प्रेम उमड़ रहा है. इसी का असर है कि राज्य में एक बार फिर किसी ब्राह्मण को ही पार्टी की कमान देने का विचार हो रहा है. जनवरी में राज्य को नया मुखिया मिलेगा. सूत्रों के मुताबिक राज्यों के अध्यक्ष चुनने में अमित शाह कम दिलचस्पी ले रहे हैं. इसकी कमान संगठन मंत्री रामलाल और पूर्णकालिक संघ के स्वंयसेवक या यूं कहे संघ में बीजेपी का काम देखने वाले कृष्ण गोपाल देख रहे हैं. सबसे अधिक माथापच्ची यूपी को लेकर है. क्योंकि बिहार के बाद अब सबसे अहम विधानसभा चुनाव यूपी का ही है. कृष्ण गोपाल की इच्छा ये है कि राज्य को ऐसा मुखिया दिया जाए जिसकी पहुंच सभी तक हो और वह लो प्रोफाइल भी हो. वर्तमान में ब्राह्मण होने के बाद अब ये पद किसी पिछड़े को दिया जाए. क्योंकि बिहार चुनाव में बीजेपी पर सवर्णवाद का गहरा धब्बा लग गया है. इसलिए ये पिछड़ा लेकिन मजबूत व्यक्तित्व चाहते हैं. अब इसमें तीन नाम सबसे अहम हैं.पहले नंबर पर दिनेश शर्मा - लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा यूपी के सबसे ताकतवर बीजेपी नेताओं में हैं जिनकी सीधी पकड़ प्रधानमंत्री मोदी तक है. दिल्ली में मोदी के आगमन के बाद ही दिनेश शर्मा का कद बेहद मजबूती के साथ बढ़ा है. उदाहरण के रूप में देख सकते हैं कि मोदी के कहने से ही उन्हें अमित शाह के सहयोगी के तौर पर पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया. वैसे अमित शाह को भी दिनेश शर्मा बेहद पसंद है. अमित शाह-मोदी की जोड़ी इन्हें यूपी में बीजेपी की कमान देने के पक्ष में हैं. लेकिन फिलहाल इनका ब्राह्मण होना इनके लिए रूकावट है. इसी रूकावट की वजह से शाह-मोदी खेमा मनोज सिन्हा का नाम भी आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन उनकी उम्र बाधा बन सकती है.दूसरा धर्मपाल सिंह और तीसरा स्वतंत्र देव सिंह ने नाम पर भी चर्चा हो रही है. इन्हें इनके पिछड़े होने का फायदा मिलता दिख रहा है. इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार का भी नाम तेजी से आगे बढ़ रहा है. क्योंकि इनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर तक है.अब यदि दिनेश शर्मा बीजेपी अध्यक्ष बनते हैं तो ये स्पष्ट हो जाएगा कि मोदी के आगे संघ की नहीं चली. यदि दिनेश शर्मा या मनोज सिन्हा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनते हैं इससे स्पष्ट जो जाएगा कि मोदी के सामने अभी संगठन या संघ में चुनौति खड़ी करना टेढ़ी खीर है. इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में सामुहिक दायित्व और सामुहिक अधिकार वाली रणनीति पर कृष्ण गोपाल और रामलाल मंथन कर रहे हैं. बीजेपी ब्राह्मण मतदाता के साथ गैर यादव पिछड़ों पर ज्यादा फोकस है. राजनाथ सिंह के हिस्से राजपूत मतदाताओं को गोलबंद करने की जिम्मेदारी दी जा रही है.यूपी में मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी इस बार घोषित कर दिया जाएगा. कुल मिलाकर कहा जाए कि मोदी के नाम पर यूपी विधानसभा चुनाव बीजेपी नहीं लड़ेगी. संघ किसी युवा चेहरे की तलाश में है. ऐसा चेहरा जिसे पूरा प्रदेश जानता है और उसकी जाति कभी मुद्दा ना बन पाये. ध्रुवीकरण की भी गुंजाइश बनी रहे.