मनोहर यडवट्टि
बेंगलुरु, 18 मार्च (हि.स.)। वयोवृद्ध पत्रकार एवं राज्यसभा के पूर्व सदस्य पुट्टप्पा सिदालिंगप्पा पाटिल (पापु) अपने सभी पाठकों, प्रशंसकों के लिए सभी क्षेत्रों में महान शख्सियत और अद्वितीय व्यक्तित्व के साथ अपने जीवनकाल में आदर्श रहे। वह सार्वजनिक भाषणों और अपने प्रकाशनों में लिखे गए लेखों से संबंधित विषयों पर एक बहुमुखी संचारक होने के लिए अपने विचारों के लिए जाने जाते थे।
वह कन्नड़ वॉचडॉग समिति के पहले अध्यक्ष और सीमा सलाहकार समिति के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। पुट्टप्पा साप्ताहिक 'प्रपंच' के संस्थापक संपादक थे और उन्होंने पहले कन्नड़ दैनिक समाचार पत्र 'नवयुग' का भी संपादन किया। उन्होंने विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में कॉलम भी लिखे। उन्होंने तत्कालीन बॉम्बे से प्रकाशित कई अंग्रेजी पत्रिकाओं में योगदान दिया था। पुट्टप्पा ने कन्नड़ भाषा में कई किताबें लिखी हैं, जिनमें कवि लेखकरु, नीवु नागबेकु, कर्नाटक संगीता कलारतनारु इत्यादि हैं। पाटिल पुटप्पा को कई पुरस्कार मिले हैं। इसमें नाडोज पुरस्कार, वुडे पुरस्कार और नृपतुंगा पुरस्कार शामिल हैं।
अविभाजित धारवाड़ जिले में 14 जनवरी,1921 को हावेरी तालुक के कुराराबोंडा में जन्मे पुट्टप्पा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा हलगेरी गांव में पूर्ण की और उच्च शिक्षा ब्याडगी, हावेरी और धारवाड़ में की। उन्होंने अपनी कानून की डिग्री बेलगावी लॉ कॉलेज से पूरी कर बॉम्बे में वकालत शुरू की। हालांकि, पत्रकारिता में उनकी गहरी रुचि को देखते हुए सरदार वल्लभभाई पटेल ने उन्हें पत्रकारिता में बने रहने का सुझाव दिया।
उन्होंने कन्नड़ भाषी क्षेत्रों के एकीकरण के लिए चल रहे आंदोलन पर लिखकर फ्री प्रेस जर्नल और बॉम्बे क्रॉनिकल में योगदान देना शुरू किया। फिर फ्री प्रेस जर्नल के तत्कालीन सम्पादक के. सदानंद ने उन्हें फ्री प्रेस जर्नल ज्वाइन करने की पेशकश की। हालांकि उन्होंने हुबली से एक नए अखबार में काम करने का फैसला किया। उनकी वर्ष 1930 के दौरान हुई गिरफ्तारी ने उन्हें बदल दिया और फिर तब से वह जीवन भर खादी के कपड़े पहनने वाले व्यक्ति बन गए। वह जवाहरलाल नेहरू से प्रभावित थे, जिन्होंने बाद में हुबली का दौरा किया था।
वर्ष 1934 में महात्मा गांधी ब्याडगी की यात्रा पर आए और इस युवा स्वयंसेवक पाटिल पुटप्पा की पीठ थपथपाई। संयोग से उन्होंने 1934 में पहले आम चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए भी प्रचार किया। संभवतः वह 1949 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने वाले पहले कन्नडिगा रहे। अपने छात्र दिनों के दौरान उन्होंने विल डुरंट, रॉबर्ट हचिंस, न्यायमूर्ति फेलिक्स फ्रैंकफर्टर, अल्बर्ट आइंस्टीन और कई अन्य लोगों की मेजबानी की। उन्होंने एक ब्रिटिश रूढ़िवादी राजनेता सर एंथनी एडेन का साक्षात्कार लिया था। मार्च 1954 के दौरान घर वापस लौटने पर उन्होंने 'प्रपंच' नामक कन्नड़ साप्ताहिक शुरू किया।
फिर 1956 में उन्होंने पहला कन्नड़ डाइजेस्ट 'संगम' और 1959 में कन्नड़ अखबार विश्ववाणी प्रकाशित करना शुरू किया। 1961 में वह कर्नाटक विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य बने, जबकि उन्हें 1962 में राज्यसभा के लिए चुना गया। वह राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा कन्नडिगों और राज्य के हितों के विपरीत किसी भी कदम के खिलाफ आवाज उठाते थे। किसान आंदोलन के साथ-साथ भाषा आंदोलन आर. गुंडूराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को खत्म करने में एक उत्प्रेरक बना था और इस तरह रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ था। पाटिल पुट्टप्पा कन्नड़ और अंग्रेजी में अपने शानदार लेखन की तरह एक शक्तिशाली वक्ता थे।
1967 में वे धारवाड़ स्थित कर्नाटक विद्यावर्द्धक संघ के अध्यक्ष बने। साल 1915 में कन्नड़ साहित्य परिषद की स्थापना हुई, जो कन्नड़ साहित्य परिषद के अस्तित्व में आने से पहले और अंत तक उसी स्थिति में बनी रही। वह देश की सत्ता की राजनीति में नेहरू और इंदिरा गांधी परिवार की पारिवारिक तानाशाही के खिलाफ मुखर थे।
कर्नाटक विद्यावर्द्धक संघ के पूर्व महासचिव शंकर हलगट्टी कहते हैं कि चाहे कोई सहमत हो या असहमत, कन्नड़ और कन्नड़ भूमि के हितों से संबंधित सभी मुद्दों में पाटिल पुट्टप्पा का अपना एक तरीका था। कन्नड़ के कारण उसकी अखंडता और प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने के बारे में कोई कभी सोच भी नहीं सकता। हालांकि वह आगे बढ़ने में हमेशा अकेले व्यक्ति बन गए थे।