फूलचंद मानव
कल जो साहित्य पुस्तकाकार संकलित होकर आएगा, आज उससे पत्रिकाएं भरी पड़ी हैं। यह सतत प्रक्रिया जारी रहती है। साहित्य में स्थायी महत्व की सामग्री सहेज, संभालकर रखने योग्य भी आ रही है। साल दो हजार सोलह में तमाम पत्रिकाओं के विशेषांक मेरे सामने हैं। देशभर में हिंदी भाषी प्रांत, अकादमियों और भाषा विभाग ज्ञान, सूचना के साथ रचना-धर्म का निर्वाह करते आ रहे हैं। प्रकाशन घराने भी आज जानकारी देने वाली, रचनात्मक सामग्री के साथ अनेक पत्रिकाएं छपवा रहे हैं।
पल प्रतिपल, कथा समय, सुगंधा, रेल पथ, देस हरियाणा आदि के साथ शब्द सरोकार, साहित्य कलश, शीराजा, काश्मीर संदेश, विकास जागृति, पंजाब सौरभ जैसे दर्जनों साहित्यिक पत्र यहीं आसपास दिखाई देते हैं। कुछ अहिंदी भाषी प्रांतों में भी पत्रिकाएं अब मुखरित हैं। भारत सरकार के विविध उपक्रम भी गगनांचल, आजकल, योजना, समाज कल्याण आदि के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय, सार्थक भूमिका निभा रहे हैं। समकालीन भारतीय साहित्य, कथा बिम्ब, छपते-छपते जैसी पत्रिकाओं की तरह ही उद्भावना, मीडिया-विमर्श, पाखी, अभिनव इमरोज, साहित्य अमृत लमही, जनपथ, नया ज्ञानोदय, शुक्रवार, इंडिया टुडे, पक्षधर, जनसत्ता, समिधा सरीखी दर्जनों पत्रिकाओं के दिवाली विशेषांक, वार्षिक अंक अथवा महाविशेषांक पाठक को बांध रहे हैं। निश्चय ही पत्रिका में संजोया साहित्य ताजगी की ऊर्जा लेकर आता है।
जन्मशताब्दी समारोह के अधीन, भीष्म साहनी पर 386 पृष्ठों का सितंबर-अक्तूबर-16 का उद्भावना, हरियश राय के संपादन में एक पठनीय सौगात है। पठन-पाठन के लिए भी शोध-खोज के लिए भी यहां भरपूर सामग्री संस्मरण, आत्मकथा-आज के अतीत, साक्षात्कार, भीष्म के उपन्यास, नाटक, कहानी कला पर समीक्षा लेख पाठक को बांधते हैं। अजात शत्रु भीष्मजी (अजेय कुमार), अतिथि संपादकीय और संगठनकर्ता प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भीष्म साहनी बहुत कुछ बताते-समझाते या दिखाते हैं। कृष्णा सोबती, नामवर, बलराज साहनी, राजेंद्र यादव, नित्यानंद तिवारी, मैनेजर पांडेय तक ने खुद को भीष्म जी के साथ जोड़कर अपने आलेखों में इनकी चर्चा की है। चित्रों का संकलन विशेषांक को स्मरणीय बना रहा है।
20dcdt3विदेशों में हिंदी कहानियों की गुलदोजी, अभिनव इमरोज में नासिरा शर्मा ने 252 पृष्ठों में दिखाई-बताई है। इनमें विदेश में लिखी जा रही कहानियों का जायजा हम ले सकते हैं। देवेंद्र कुमार बहल के संपादन में आ रही मासिक पत्रिका अभिनव इमरोज में आठ कॉलम का संपादकीय देकर नासिरा शर्मा ने न्याय ही किया है। ‘पाखी’ मन्नू भंडारी पर केंद्रित विशेषांक जनवरी में सचित्र, 578 पन्नों का मिला था। बगैर दस्तक दरवाजा खुलना, प्रेम भारद्वाज का संपादकीय ध्यान चाहता है।
साहित्य अमृत, नया ज्ञानोदय, समकालीन साहित्य समाचार, सामयिक सरस्वती, विभोम समाचार, बया, ज्ञानपीठ समाचार हिंदी प्रचारक पत्रिका आदि हिंदी प्रकाशन, संस्थानों से निकलती ऐसी पत्रिकाएं हैं जहां ताजा प्रकाशनों, किताबों, गतिविधियों के साथ सृजन-साहित्य भी पठनीय रहता है। नया ज्ञानोदय ने जनवरी-16 में साहित्य वार्षिकी-264 पृष्ठों की प्रकाशित की। अनेक गद्य-पद्य रचनाएं संजोयी हैं। कालजयी, नये और बीच के मझौले हस्ताक्षर यहां विद्यमान हैं।
‘पक्षधर’ साल के पूर्वार्द्ध जन-जनांक के तौर पर उपन्यास आलोचना पर महाविशेषांक-2, संपादक विनोद तिवारी के संपादन में आया। दूधनाथ सिंह ने 1975 में पक्षधर पत्रिका शुरू की थी। शोधार्थी, गहन अध्येताओं के लिए यहां 260 पृष्ठों में बीसेक ठोस आलेख छपे हैं।
हिंदी कहानी के 100 वर्ष पर जुलाई में अभिधा ने एक विशेषांक दिया, जिसमें कथालोचन पर आलेख, कथाएं, बातचीत, भाषांतर-सा 186 पृष्ठों में बहुत कुछ संग्रहणीय है। यों ही औपन्यासिक-2 ‘लमही’ वाराणसी से जुलाई-सितंबर में अर्चना वर्मा प्रियम अंकित, ज्योति चावला, प्रांजलधर, मधुर कांकरिया और राकेश कुमार सिंह उपन्यासों पर मुखर हुए हैं। ‘साहित्य अमृत’ प्रभात प्रकाशन ने कई विशेषांक इस साल दिए हैं। स्वतंत्रता अंक में त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी का संपादकीय ध्यान मांगता है। प्रतिस्मृति नाटक, पुस्तक अंश के साथ दर्जनों लेख विषय के आसपास हैं। सेतु (देवेंद्र गुप्ता) शिमला, प्रगतिशील वसुधा संयुक्तांक-98 (राजेंद्र शर्मा) भोपाल, बया पथ (चंचल चौहान) अंबेडकरवाद और मार्क्सवाद : पारम्परकिता के धरातल-दिल्ली, तद्भव (पूर्णांक 33, अखिलेश) लखनऊ, नया प्रतिमान-12 (राजेंद्र मल्होत्रा, श्याम किशोर) इलाहाबाद, वैचारिकी (भारतीय विद्या मंदिर-डॉ. बाबूलाल शर्मा) मुंबई, अकार-44 (प्रियवंद) कानपुर, संप्रेक्षण-162 ग्रीष्म (चंद्रभानु भारद्वाज) जयपुर और सदानीरा (आग्नेय) भोपाल दसेक ऐसी त्रैमासिक पत्रिकाएं हैं जो समकालीन साहित्य धारा को प्रोत्साहित करके छात्रों को भी उपयोगी सामग्री, शोध सिद्धांतों के जरिये प्रदान करती हैं। सदानीरा के हर अंक में विदेशी और भारतीय कवितानुवाद रहते हैं। तद्भव, नया पथ, वसुधा आदि प्रगतिवादी, जनवादी लेखक के लिए भी जानी जाती है।
मुंबई के गांधी मेमोरियल रिसर्च सेंटर से हिंदुस्तानी जवान (सुशीला गुप्ता) और कथा बिंब (अरविंद), मंतव्य (लखनऊ-हरे प्रकाश उपाध्याय) के तीनों विशेष अंक पाठक को प्रभावित भी कर रहे हैं। लंबी कहानियों के अतिरिक्त अंक-6 में पंजाबी के आठ-दस युवा कवियों की कविताएं बांध रही हैं। पहल (ज्ञानरंजन), जबलपुर ने 102 से 105 अंक तक पांच पुस्तकें सदा की तरह संग्रहणीय दी हैं। पहल-105 अंक, नवंबर, 16 में रचनाकार नहीं, यहां रचना को तरजीह है।
उद्भावना इसी तरह जरूरी पत्रिका हो रही है। हर अंक में सामग्री चयन, प्रस्तुति और स्तर पर ध्यान रहता है। राष्ट्रवाद निदा फाजली पर यहां संयुक्तांक 123-24 में पर्याप्त पठनीय रचनाएं शामिल हैं। लालटू, मंगलेश डबराल, सुभाष गाताडे, रोमिला थापर, कृष्णा सोबती, प्रमोद रंजन के साथ हरि मृदुल जानकी प्रसाद शर्मा भी यहां मौजूद हैं। अजेय कुमार एक आंदोलन, मिशन की तरह इसे निकालते आ रहे हैं। कोलकाता से निर्भय देव्यांश के संपादन में मासिक निकलने वाली विवाद व चर्चित सामग्री के लिए मशहूर लहक के संयुक्तांक ही अभी आ रहे हैं।
मासिक पत्रिकाओं में मानो प्रतियोगिता चल रही है। समय पर निकलने, वक्त पर पहुंचने की होड़ के साथ आवरण पृष्ठ की सज्जा, संपादकीय सूझबूझ में ये पत्रिकाएं एक-दूसरे से आगे आने पर उतारू हैं। पत्रिका ककसाड सांस्कृतिक उद्घोष अणुव्रत भावना, प्रेस वाणी, गृहलक्ष्मी, तुलसी, हर्बल हेल्थ, तीसरी दुनिया, शब्द शिल्पी, आसपास, पंजाबी धारा, लाइफ पॉजिटिव से लेकर परिंदे, समाहुत, जनपथ, परिशोध, आधारशिला, परिकथा, रूपरेखा, शेष तक दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, हल्द्वानी, जोधपुर जैसे केंद्रों से विभिन्न क्षेत्रों में छपती रही है। स्वास्थ्य, समाज, संस्कृति, मीडिया, अध्यात्म, आत्मज्ञान से लेकर सूचना, सम्प्रदाय साहित्य तक इनकी पहुंच है। सेहत, मानसिक और शारीरिक पर भी एक बाढ़ आई है पत्रिकाओं की।
‘रूपाम्बरा’ स्वदेश भारती के संपादन में कोलकाता से आ रहा वार्षिक प्रकाशन है। भाषा साहित्य विशेषांक-26 में हिंदी साहित्य अकादमी के इस संकलन में संपादकीय के साथ संस्मरण-निबंध, कविता, कहानी, आलेख, गीत व आलोचना बहुत कुछ है। रचना की परख, चुनाव, बोलता-बतियाता है। मां पर पूरा एक अंक समर्पित करके अप्रैल जून के साहित्य कलश में सागर सूद ने जो दस्तावेजी काम किया है। ‘छपते-छपते’ 444 पृष्ठीय वृहताकार सालाना दीपांक सचित्र, प्राय: हर प्रांत से लेखकों का बेहतर सहयोग लिए हुए है। डॉ. श्रीनिवास शर्मा के चयन में कसाव और प्रतिनिधित्व है। मुंबई से ‘चिंतन दिशा’ के संपादक हृदयेश मयंक ने इसके तिमाही स्तर को बना रखा है। ‘वैचारिकी’ की तरह गहन मगर सुगम पठनीयता इस पत्रिका की खूबी ही है। प्रेम जनमानस दिल्ली से श्रेष्ठ पत्रिका व्यंग्य यात्रा के संपादक हैं। अपनी-अपनी अकादमी से तिमाही, मासिक, साहित्यिक पत्रिकाएं कम मूल्य में निकालती हैं। भाषा, वार्षिकी, समकालीन भारतीय साहित्य, संक्षेप, आलोक मधुमती, साक्षात्कार, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, विपाशा जैसी दर्जनभर पत्रिकाएं महत्वपूर्ण हैं। रणजीत साहा, खुर्शीद आलम, देवेंद्र कुमार देवेश, ये तीनों केंद्रीय साहित्य अकादमी, रवीन्द्रभवन के संपादक, मनोयोग से प्रयासरत हैं।
मधुमती (उदयपुर), साक्षात्कार (भोपाल), पंजाब सौरभ (पटियाला), हरिगंधा, कथा समय (पंचकूला), विपाशा, हिमप्रस्थ (शिमला), उत्तर प्रदेश (लखनऊ) से छपती है। एनवीटी से पुस्तक संस्कृति, हिंदी अकादमी दिल्ली से इंद्रप्रस्थ भारती, दिल्ली सरकार से आजकल हिंदी तीनों ही स्तरीय, उल्लेखनीय पत्रिकाएं हैं।
अहा जिंदगी, पाखी, अक्षर पर्व, हंस, कादम्बिनी, कथादेश, नया ज्ञानोदय के अतिरिक्त समयांतर नवनीत, वागर्थ सहित दर्जनों अन्य मासिक पत्रिकाएं भी उल्लेखनीय हैं। हंस अथवा कादम्बिनी या नवनीत कहीं-कहीं रेलवे बुक स्टाल पर भी इधर देखी जाती हैं। समयांतर, वागर्थ, अक्षर पर्व, पाखी प्राय: आदेश, आर्डर पर पहुंचती हैं। सामान्य पाठक तक छोटे शहरों में इनकी जानकारी भी नहीं रखते।
साप्ताहिक पत्रकारिता में पापुलर मैगजीन आउटलुक, इंडिया टुडे, शुक्रवार, तहलका, यथावत, रविवार, उदय इंडिया जैसे पाक्षिक नाम भी बाजार का हिस्सा हैं। ‘बदल गयी दुनिया’ सालाना अंक, पृष्ठ 240 वाला, इंडिया टुडे उम्दा कागज पर अनेक व्यक्तित्व को रेखांकित मुखर कर पाया है। व्यावसायिक स्तंभकारों के कालम साप्ताहिक पत्रिकाओं में विधिवत हाजिर रहते हैं। रविवार दिल्ली, नवंबर में प्रवेशांक के साथ उतरा है, पर कलकत्ता के सुपरिचित रविवार से बिल्कुल अलग आउटलुक ने फिल्मों से जगमग 2016, जनवरी प्रथमांकेय संग्रहणीय-स्मरणीय सामग्री देकर गया है।
‘समावर्तन’ निरंजन क्षोत्रिय के संपादन में रंगीन मासिक शुद्ध ताजा साहित्य की मासिकी पत्रिका रही। समीक्षा, त्रैमासिक का गोपालराय स्मृति अंक मुंह बोलता संकलन है। छोटी-मोटी, बड़ी महत्वपूर्ण और सामान्य साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन 2016 में नया, ताजा, दस्तावेजी साहित्य भी दे पाया है। गत वर्ष 2015 की अपेक्षा साल 2016 में गुणवत्ता स्तर और गंभीरता की दिशा में सराहनीय कहा जा सकता है।