धाक जमाता हरिभूमि
haribhumi newspaper
 
 
महेश दीक्षित 
यदि, बेहतर कंटेंट और लीक से अलग हटकर खबरों को देखें तो हरिभूमि पाठकों के बीच स्थापित अखबारों से अलग अपनी पहचान बना रहा है। अपने इसी तेवर के बूते अखबार ने पिछले एक साल में परंपरागत और गैर परंपरागत पाठकों के बीच अपनी पकड़ बनाई है। साल भर पहले किसी भी स्कीम के साथ अखबार लिया तो जाता था पर ठहर नहीं पाता था। टूट जाता था। जैसे-जैसे अखबार ने खबरों के तेवर तेज किए, कंटेंट की जबरदस्त पैकेजिंग की और रिपोर्टिंग के कुछ ऐसे अनकवर्ड, अन-एक्सप्लोर क्षेत्रों को छुआ, वैसे ही अखबार अपनी धाक जमाता गया। प्रसार के मोर्चे पर भी यह साबित हुआ कि अच्छा अखबार दिया जाए तो पाठक उससे जुड़ते चले जाते हैं। भले ही ये बहुत धीमी प्रक्रिया होती है पर जो पाठक इस रीति से जुड़ते हैं, वे फिर पूरे पक्के पाठक ही होते हैं। हरिभूमि ने एक बेहतर अखबार देकर पक्के पाठक ही जोड़ें हैं। इसी तरह, हरिभूमि पाठकों की आदत भी बदल रहा है। खबरों का विश्लेषण किया जाए तो साफ देखा जा सकता है कि अखबार ने किसी किस्म की सनसनी क्रिएट नहीं की। खबरों को उसी अंदाज में रखा, जिस अंदाज में वे रखी जाना चाहिए। अति-उत्साह और हड़बड़ी में और आगे निकलने की होड़ में अखबार ने कभी किसी खबर में मिर्च-मसाले का इस्तेमाल नहीं किया। एक गंभीर और सधी हुई रिपोर्टिंग का अखबार ने प्रदर्शन किया। ये सब संभव हो सका प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के विजन-कुशल मार्गदर्शन, युवाओं की ऊर्जा से भरी कमाल की रिपोर्टिंग और डेस्क की टीम और उसके कैप्टन-स्थानीय संपादक प्रमोद भारद्वाज की प्रयोगधर्मिता और खबर को अलग नजरिए से देखने की उनकी विशेषज्ञता से। वे हमेशा एक नई सोच के साथ खबर में उतरते दिखतेे हैं। अखबार में हरिभूमि की सारी टीम की काम करने की धारावाहिकता और वक्त के साथ चुनौती लेने की क्षमता का भी पता चलता है। हरिभूमि में कई खबरें ऐसी रहीं, जिनसे उसने प्रतिस्पद्र्धी अखबारों की तुलना में पाठकों में अलग जगह बनाई। चाहे देर रात सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आंतकी को फांसी देने वाला एपिसोड हो या फिर हरदा में रात में ट्रेन एक्सीडेंड हो या फिर पुराने भोपाल में आधी रात के बाद पुल गिरने की घटना हो। हरिभूमि ने रातों-रात सारी टीम को लगाकर कवरेज कराया और नंबर एक माने जा रहे राजधानी के अखबारों को जबरदस्त चुनौती दी। अब तो हालत ये है कि अपराध की खबरों में ये अखबार नंबर वन तो है ही, अलग खबरों में भी बाजी मार रहा है। हरिभूमि की कई खबरों को, दूसरेे या तीसरे दिन स्थापित अखबार बाइलाइन तक ठोक दे रहे हैं। यही किसी भी नए अखबार की सफलता का पैमाना है। राजधानी के अखबार के बाजार की यही खासियत है कि पहले छोटा जानकर नजरअंदाज करते हैं, फिर जब बराबरी पर आ जाता है तो अकड़ ढीली करते हैं और जब बाजार का नेतृत्व धीरे-धीरे आने लगता है तो स्थापित अखबार दो कदम पीछे हटने लगते हैं। अभी तीसरी स्टेज नहीं आई है पर स्थापित अखबारों की अकड़ हरिभूमि ने जरूर ढीली कर दी है। हालांकि, लड़ाई अभी लंबी है, क्योंकि, दो साल और खास तौर से इस एक साल में हरिभूमि ने जो छलांग लगाई है, वह काबिले-तारीफ है, क्योंकि, राजधानी में उसका महा-मुकाबला तो पचास साल पुराने अखबारों से है और उनके अकूत संसाधनों से भी है। ऐसे में हरिभूमि का प्रकाश की गति से आना, एक अच्छे अखबार के आने की उम्मीद पाले बैठे प्रदेश के पाठकों के लिए भरोसे जैसा है कि जब एक आम आदमी की खबरें सिर्फ बड़े अखबारों में इसलिए जगह नहीं बना पा रही हैं, वह टारगेट रीडर के लिए नहीं हैं, तब हरिभूमि उनके लिए इस अकेलेपन और अंधेरे में कंदील जैसी भूमिका में है। साथ भी देगा और लड़ेगा भी। फर्जी, तथ्यहीन, मैनेज्ड और बोगस रिपोर्टिंग के इस दौर में हरिभूमि ने जिस प्रामाणिकता और जनसरोकारों की पक्षधरता साबित की है, वह निश्चय ही एक अलग लकीर तो है ही, और उन अखबारों के लिए एक सीख भी कि सिर्फ बड़े होकर खूब इतराएं पर पाठकों से तो दूरी न बनाएं।
Dakhal News 12 July 2016

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