कौन है कालहांड़ी का सच सामने लाने वाला पत्रकार
ajit singh patrkar kalahandi

अजीत ने पहले निभाया मानवीय धर्म फिर की पत्रकारिता 

कालाहांडी का कला चेहरा उजागर करने वाले पत्रकार अजीत  सिंह को उनकी दुनिया को झकझोरने वाली रिपोर्ट पर सोशल मीडिया के  कॉपी पेस्ट समुदाय के साथ कुछ कथित बुद्धिजीवी जमकर कोस रहें है कि  उन्होनेे दाना मांझी की किसी प्रकार की मदद नहीं की। जबकि सच्चाई यह है कि अगर अजीत प्रयास नहीं करते तो दान मांझी को अपने गंतव्य पर पहुँचने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता और दाना के साथ हुए सरकारी अमानवीय व्यव्हार का सच सामने ही नहीं आ पाता। 

 

सबकुछ जानें अजीत सिंह की जुबानी  ... 

अजीत कहते हैं, “मुझे कालाहांडी अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि एक आदमी अपनी पत्नी के शव को लेकर पैदल अपने गांव जा रहा है , जन्माष्टमी का दिन था और फ़ोन सुबह पांच बजे आया...  मैंने पता किया कि वो किस ओर जा रहा है और मैं शागड़ा गांव वाली सड़क पर तेज़ी से बाइक से निकल पड़ा। मांझी अजीत को शागड़ा गांव के पास नज़र आ गए।  सुबह सात बज रहे थे...  कालाहांडी अस्पताल के टीबी वार्ड से शागड़ा गांव क़रीब 12-13 किलोमीटर दूर है। 

 

अजीत कहते हैं, “मैंने मांझी से पूरी बात पूछी ...  उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की मौत रात में 2 बजे हो गई थी और अस्पताल वाले बार बार शव ले जाने को कह रहे थे...  लेकिन उनके पास महज़ 200-250 रुपये ही थे , उन्हें कोई एंबुलेंस नहीं मिल पाई तो वे अपनी पत्नी के शव को किसी तरह ले जाने की कोशिश कर रहे हैं  ... 

 

इसके बाद मैने [अजीत] मांझी के लिए एंबुलेंस की कोशिश शुरू कर दी ,सबसे पहले जिला अधिकारी बृंदा डी को फ़ोन किया। जिलाधिकारी ने  कहा, “  सीडीएमओ से एंबुलेंस का प्रबंधन करने को कहती हूं.... 

कालाहांडी की जिलाधिकारी बृंदा डी बताती हैं, "अजीत का फ़ोन आया था. इसके बाद कुछ स्थानीय लोगों के भी फ़ोन आए , मैंने अस्पताल के अधिकारी, सीडीएमओ को एंबुलेस की व्यवस्था कराने को कहा भी। "

 

अजीत बताते हैं -लेकिन इन सबमें वक्त लग रहा था और दिन चढ़ने लगा था, मांझी की 12 साल की बेटी चौला का सुबकना जारी था... तब मैने  लांजीगढ़ के स्थानीय विधायक बलभद्र मांझी को भी फ़ोन किया, वे भुवनेश्वर में थे ,उन्होंने अपना आदमी भेजने की बात कही ... लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

 

मगर अंत में अजीत ने एक स्थानीय संस्था से मदद मांगी ... और उन लोगों को बताया कि दाना का घर क़रीब 60 किलोमीटर दूर है , जिसके बाद एंबुलेंस उपलब्ध हो पाई... एंबुलेंस की मदद से ही दाना की पत्नी का शव मेलाघर गांव पहुंच पाया। 

 

लेकिन क्या अजीत को एहसास था कि ये कहानी देश भर को झकझोर देगी?

वो कहते हैं, “मुझे दाना मांझी के लिए अच्छा नहीं लग रहा था. ..  हमारे इलाके में बहुत गरीबी है , मैं उसकी मदद करना चाहता था।  लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी दो घंटे में जब सिस्टम से कोई मदद नहीं मिली, तो मुझे लगा कि कहानी करनी चाहिए।  मुझे उस वक्त ये बिलकुल एहसास नहीं हुआ था कि ये इतनी बड़ी बन जाएगी। 

अजीत कहते हैं 14 साल की पत्रकारिता के सफ़र में मुझे न तो ऐसी कहानी पहले कभी मिली, ना दिखी और ना ही कभी सुना था। 

 

Dakhal News 30 August 2016

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