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21 November 2024आक्रामक शैली में लिखने वाले चर्चित पत्रकार अनुराग उपाध्याय एक बेहतरीन कवि भी हैं। उनकी रचनाएँ जिंदगी और प्रकृति के इर्दगिर्द बतियाती हुई प्रतीत होती हैं। ऐसी ही उनकी एक रचना।
संपादक
//धूप //
सुबह सुबह बिन बताये
तुम्हारी तरह
धूप जीने से उतर आई
मेरे अँधेरे कमरे में ।
सुबह की धूप
का मिजाज तुम सा ही है,
एकदम सिंदूरी
तमाम सौम्य लालिमा को खुद में समेटे।
दोपहर में तमतमाती हुई
धूप तुम्हारी तरह
घुस आई मेरे कमरे में,
जैसे हो उसे मुझसे झगड़ना
ठीक तुम जैसा उग्र रूप
मैं समझ ही नहीं पाया
तुम थीं या धूप
अद्भुत है धूप का ये रूप।
विदा हो रही थी धूप
साँझ को मेरे कमरे से
तुम्हारी तरह,
कुछ ठिठकी सी, कुछ अनमनी सी
कुछ कहना चाहती लेकिन चुप सी
कल आने का कुछ कहने का
वादा करके
मेरे कमरे से रुखसत हो गई धूप।
*अनुराग उपाध्याय
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8 July 2017
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