अखबार ढूंढे पाठक और विज्ञापन
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बीसवीं सदी में पाठक अखबार तलाशते थे , इक्कीसवीं सदी में अखबार पाठक को  ढूंढ रहे हैं। ऐसे में नया पाठक अखबार से दूरी बनाकर वेब मीडिया में जा पहुंच है। बीसवीं सदी में विज्ञापनदाता आते थे अखबार के दफ्तर, इक्कीसवीं सदी में अखबार जा रहे हैं विज्ञापनदाता के पास। पूरा माहौल बदल गया है ,अखबारी दुनिया में सब कुछ ठीक नहीं है। 

ये दो संकेत यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि प्रिंट मीडिया के भविष्य की दशा और दिशा कौनसी है? प्रिंट मीडिया पर पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो अब वेब मीडिया की तलवार लटक रही। 

यह कोई प्रिंट मीडिया की कमजोरी नहीं है बल्कि तकनीकी विकास से उत्पन्न संकट है जिस पर गंभीरता से सोचने और उसके सापेक्ष बदलाव लाने की जरूरत है. तर्क-कुतर्क करनेवाले, आंकड़ों की बाजीगरी दिखानेवाले, हो सकता है इस वक्त इसे हवा में उड़ा दें लेकिन आंख बंद करने से सच्चाई नहीं बदल सकती है। 

ऐसा ही दौर मनोरंजन जगत देख चुका है जब टीवी ने सिनेमाघरों पर ताले लगवा दिए थे।  तब बड़े बड़े फिल्मी सितारे टीवी को बहुत छोटा मानते थे लेकिन बाद में ये सिर के बल टीवी में घूस गए।  यदि कोई ऐसा बड़ा बदलाव प्रिंट मीडिया में आता है तो प्रिंटिंग यूनिट का क्या अच्छा उपयोग हो सकता है? इस पर अभी से सोचने की जरूरत है।  दूसरी बड़ी समस्या मेनपावर को लेकर है, ये सभी पूरी तरह से अखबार पर निर्भर हैं।  इनकी प्रतिभा का कहां और क्या उपयोग हो सकता है, इस पर विचार करने की जरूरत है। 

इन कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है।  अखबार का विज्ञापन टीवी ले गया जो बचा उसे वेब मीडिया ने झटक लिया ,तो बड़े मीडिया ने छोटे अखबारों का विज्ञापन लेकर अपनी कमी पूरी कर ली, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रिंट मीडिया के विज्ञापन में लगातार कमी हो रही है जिसका असर पहले छोटे अखबारों पर और फिर बड़े अखबारों पर नजर आएगा।  एक बड़ा बदलाव सरकारी विज्ञापन को लेकर है।  जहां सरकार अखबारों पर विज्ञापन के लिए नए नए नियम लाद रही है वहीं विज्ञापन लगातार कम भी हो रहे हैं।  वैसे भी दुर्भाग्य से सरकारी विज्ञापन का पैमाना कभी भी अच्छा अखबार नहीं रहा है, वह तो सर्कूलेशन पर और कागजों पर आधारित रहा है इसलिए कई अच्छे अखबार और संपादक तो अखबार की दुनिया को पहले ही अलविदा कह चुके हैं। 

सोचनेवाली बात यह है कि अब किसी को अखबार का बेसब्री से इंतजार नहीं रहता है और युवा तो इस ओर से एकदम बेपरवाह हैं तो नया पाठक कहां से पैदा होगा? नया विज्ञापनदाता कहां से आएगा?जिसे हम नया पाठक मानते हैं वो अपने काम और ज्ञान की ख़बरें वेब मीडिया पर ढूंढ कर पढ़ लेता है। 

इस दीपावली से पहले ही कई अखबार विज्ञापन की कमी को लेकर परेशान हैं तो जाहिर है कि इस दीपावली के बाद उन्हें कोई ना कोई कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे।

 

Dakhal News 24 October 2016

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