Patrakar Priyanshi Chaturvedi
भोपाल में आयोजित लोक मंथन में डॉ. विजय चौथाईवाले, उमेश उपाध्याय, प्रशांत कौल और सुश्री शेफाली वैद्या ने सोशल मीडिया पर विमर्श किया।
सोशल मीडिया के माध्यम से सामूहिक बौद्धिक क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही इससे राजनैतिक, व्यवसायी और मनोवैज्ञानिक व्यवहार प्रभावित हो रहा है। इसके बिना शायद सार्वजनिक जीवन में काम चलना कठिन हो गया है।
खास बात यह है कि इसमें विज्ञापन न होते हुए भी इसे चलाने वालों का उद्देश्य व्यवसायिक है। हमारी निजता को सोशल मीडिया लांघ रहा है। यह सोशल कॉज के लिए नहीं है। यह हमारी कुशलता है कि हम इसका उपयोग कैसे कर लेते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हमें विश्वसनीयता बनाए रखनी है और विरोधियों के झूठ को भी बेनकाब करना है। यह हम लोगों के लिए चुनौती है और अवसर भी।
ट्वीटर ट्रेंड के माध्यम से इलेक्ट्रानिक मीडिया जनमत का रूझान समझकर समाचार प्रसारित करने को विवश है। प्रिंट मीडिया के समाचार-पत्र भी पहले ट्वीटर पर समाचारों को फ्लेश करते हैं तथा उन पर आने वाले हिट्स के अनुसार तय करते हैं कि किसे छापा जाए किसे नहीं। अपने विचार को प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुँचाने के लिए कंटेन्ट आवश्यक है। उसे जनरेट करने की क्षमता हमें अपने अंदर विकसित करती है।
यह निष्कर्ष है विधानसभा भवन के कक्ष क्रं. 6 में राष्ट्रीय विमर्श 'लोक-मंथन' के अंतिम दिन 'सोशल मीडिया एवं नया समाज' सत्र का। सत्र में डॉ. विजय चौथाईवाले, श्री उमेश उपाध्याय, श्री प्रशांत कौल और सुरी शेफाली वैद्या ने विमर्श किया।
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