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21 November 2024योगेश कुमार गोयल
17 जनवरी की सुबह 2.35 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस साल के अपने पहले मिशन के तहत दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट पर फ्रैंच गुयाना के कोरोऊ प्रक्षेपण केन्द्र से यूरोपियन रॉकेट ‘एरियन 5-वीए 251’ की मदद से अपना संचार उपग्रह ‘जीसैट-30’ लॉन्च किया। ‘एरियन स्पेस सेंटर’ से एरियन 5 रॉकेट का पहली बार पिछले वर्ष ही इस्तेमाल हुआ था और उस समय भी इसी रॉकेट के जरिये भारतीय सैटेलाइट लॉन्च किया गया था। एरियन 5 के जरिये इसरो के जीसैट-30 के अलावा यूटेलसैट के यूटेलसैट कनेक्ट उपग्रह को भी भूस्थिर अंतरण कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। सी तथा केयू बैंड की कवरेज क्षमता बढ़ाने के लिए आने वाले दिनों में जीसैट-30 को भूमध्य रेखा से 36 हजार किमी की ऊंचाई पर स्थित जियोस्टेशनरी (भू-स्थैतिक) कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। कक्षा उठाने के अंतिम चरण में दो सौर सारणियों तथा एंटीना रिफ्लेक्टर को इसमें तैनात किया जाएगा, जिसके बाद इसे अंतिम कक्षा में स्थापित किया जाएगा। परीक्षणों के पश्चात् यह कार्य शुरू करेगा।
हालांकि भारत के पास चार टन वजनी क्षमता का रॉकेट, जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल एमके-3 (जीएसएलवी-एमके-3) है लेकिन अगर इसरो ने अपने करीब 3.3 टन वजनी जीसैट-30 को अंतरिक्ष में भेजने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी ‘एरियन स्पेस’ की मदद ली है तो उसकी वजह जानना भी जरूरी है। दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ एक उपग्रह की लॉन्चिंग के लिए पूरी जीएसएलवी-एमके-3 तकनीक को अपनाने में लंबा समय लगता है और इसी कारण उन देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों से सम्पर्क किया जाता है, जो इस तरह की तकनीक के जरिये उपग्रह लॉन्च कर रही हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ तथा यूरोपियन एजेंसी ‘एरियन स्पेस’ दूसरे देशों के मिशन को अपने स्पेस सेंटर से अंजाम देती हैं। ‘एरियन स्पेस’ यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) की वाणिज्यिक शाखा है, जो भारत की पुरानी साझेदार है। इसी स्पेस एजेंसी की मदद से अब तक कई भारतीय उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा चुके हैं। इस स्पेस एजेंसी द्वारा सबसे पहले वर्ष 1981 में भारत के एक छोटे प्रयोगात्मक उपग्रह ‘एप्पल’ को लांच किया गया था और इसी एजेंसी के एरियन लांचर से प्रक्षेपित किया गया जीसैट-30 भारत का 24वां उपग्रह है। एरियन स्पेस से 23 उपग्रहों की परिक्रमा चल रही है और भारत ने उसके साथ 24 उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए करार किया है। गुआना के एरियन स्पेस सेंटर से ही 6 फरवरी 2019 को भारत के संचार उपग्रह जी-सैट 31 को लॉन्च किया गया था और उससे पहले देशभर में इंटरनेट पहुंचाने के लिए 5 दिसम्बर 2018 को भी 5854 किलोग्राम वजनी इसरो द्वारा निर्मित सबसे भारी उपग्रह जी-सैट-11 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक पी. कुन्हीकृष्णन के अनुसार एरियन 5 एक बेहद भरोसेमंद लांचर है, जिसके जरिये भारत ने जीसैट-30 को लॉन्च किया है। इसरो ने डिजिटल सिग्नल के लगातार बढ़ते प्रयोग और देश को इस कारोबार में नई दिशा देने के लिए ही संचार उपग्रह जीसैट-30 प्रक्षेपित किया है।
बहरहाल, इसरो को 3357 किलोग्राम वजनी उपग्रह ‘जीसैट-30’ के लॉन्च के करीब 38 मिनट 25 सेकेंड बाद कक्षा में स्थापित करने में बहुत बड़ी सफलता मिली है। इसे इसरो के संवर्धित ‘आई-2के बस’ में संरूपित किया गया है, जो भू-स्थिर कक्षा में सी और केयू बैंड क्षमता बढ़ाएगा। जीसैट-30 अंतरिक्ष में अगले 15 वर्षों तक कार्य करेगा और यह इनसैट-4ए की जगह लेगा, जिसे साल 2005 में लॉन्च किया गया था। दरअसल इस संचार उपग्रह की उम्र पूरी हो रही है, इसीलिए इसकी जगह अब जीसैट-30 को जियो-इलिप्टिकल ऑर्बिट में स्थापित किया गया है। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन का कहना है कि जीसैट-30 कई फ्रीक्वेंसी में काम करने में सक्षम है और साथ ही इसके सफल प्रक्षेपण से कवरेज में वृद्धि होगी। इस संचार उपग्रह से राज्य संचालित तथा निजी सेवा प्रदाता कम्पनियों के संचार लिंक देने की क्षमता बढ़ सकती है। अभी जीसैट सीरीज के 14 उपग्रह काम कर रहे हैं, जिनकी बदौलत देश में संचार व्यवस्था कायम है और अब प्रक्षेपित किया गया ‘जीसैट-30’ जीसैट सीरीज का बेहद ताकतवर और महत्वपूर्ण संचार उपग्रह है, जिसकी मदद से देश की संचार प्रणाली में और इजाफा होगा।
जीसैट-30 डीटीएच, टेलीविजन अपलिंक, टेलीपोर्ट सेवाओं, डिजिटल सैटेलाइट खबर संग्रहण (डीएसएनजी), ई-गवर्नेंस, शेयर बाजार तथा वीसैट सेवाओं के लिए एक क्रियाशील संचार उपग्रह है। देश की संचार व्यवस्था को मजबूत बनाने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी क्योंकि इसकी मदद से मोबाइल नेटवर्क तथा डीटीएच सेवाओं का भी विस्तार होगा। यह संचार उपग्रह पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन को समझने तथा भविष्यवाणी करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ‘जीसैट-30’ लॉन्च मिशन की सफलता से उत्साहित इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक पी कुन्हीकृष्णन का कहना है कि वर्ष 2020 की शुरुआत एक शानदार लॉन्च के साथ हुई है। इस सैटेलाइट की मदद से जहां इंटरनेट की स्पीड बढ़ेगी, वहीं देश में जिन स्थानों में अभीतक मोबाइल नेटवर्क नहीं है, वहां मोबाइल नेटवर्क का विस्तार किया जा सकेगा।
दुनिया भर में इस समय 5जी इंटरनेट पर तेज गति से कार्य चल रहा है और भारत में भी इंटरनेट की नई तकनीक आ रही है, ऑप्टिकल फाइबर बिछाए जा रहे हैं। ऐसे में देश को पहले के मुकाबले ज्यादा ताकतवर संचार उपग्रह की आवश्यकता थी और जीसैट-30 को भारत का अभीतक का सबसे ताकतवर संचार उपग्रह माना जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इन्हीं सब जरूरतों को यह उपग्रह बखूबी पूरा करेगा। जीसैट-30 उपग्रह की जरूरत के बारे में इसरो का कहना है कि जिस तरह देश और दुनिया में संचार व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, उस तरह हमें भी बड़े सुधारों की जरूरत है। इसरो द्वारा डिजाइन किए और बनाए गए इस दूरसंचार उपग्रह से राज्य-संचालित और निजी सेवा प्रदाताओं की संचार लिंक प्रदान करने की क्षमता बढ़ेगी और माना जा रहा है कि इस उपग्रह की बदौलत इंटरनेट की दुनिया में क्रांति आ सकती है क्योंकि इसकी मदद से देश में नई इंटरनेट टेक्नोलॉजी लाए जाने की उम्मीदों को बल मिला है। इस उपग्रह के जरिये देश की संचार प्रणाली, टेलीविजन प्रसारण, समाचार प्रबंधन, भू-आकाशीय सुविधाओं, आपदाओं की पूर्व सूचना और खोजबीन, मौसम संबंधी जानकारी व भविष्यवाणी तथा रेस्क्यू ऑपरेशन में भी बहुत मदद मिलेगी। यह उपग्रह उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविजन, दूरसंचार एवं प्रसारण सेवाएं उपलब्ध कराएगा।
इसरो के अनुसार जीसैट-30 के संचार पेलोड को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है और अंतरिक्ष यान की बस में ट्रांसपॉन्डर की संख्या को अधिकतम करने के लिए अनुकूलित किया गया है। 12 सी तथा 12 केयू बैंड ट्रांस्पॉन्डरों से लैस जीसैट-30 इनसैट जीसैट उपग्रह श्रृंखला का उपग्रह है, जो छह हजार वॉट ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। इसे ऊर्जा प्रदान करने के लिए इसमें दो सोलर पैनल और बैटरी लगाई गई हैं। 12 केयू ट्रांसपॉन्डर से यह उपग्रह भारतीय भूमि और द्वीपों को जबकि 12 सी ट्रांसपॉन्डर से खाड़ी देशों, कई एशियाई देशों तथा ऑस्ट्रेलिया में उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविजन, डीटीएच, दूसरसंचार व इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएगा। केयू बैंड सिग्नल से पृथ्वी पर चल रही गतिविधियों को पकड़ा जा सकता है। इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद केयू बैंड तथा सी-बैंड कवरेज में बढ़ोतरी होने से भारतीय क्षेत्र व द्वीपों के साथ बड़ी संख्या में खाड़ी और एशियाई देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया में भी पहुंच बढ़ेगी। दरअसल इसरो ने इस उपग्रह को 1-3 केबस मॉडल में तैयार किया है, जो जियोस्टेशनरी ऑर्बिट के सी तथा केयू बैंड से संचार सेवाओं में मदद करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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20 January 2020
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