आईसलैंड ज्वालामुखी विस्फोट प्रकृति की चुनौती
आईसलैंड ज्वालामुखी विस्फोट प्रकृति की चुनौती
पंकज चतुर्वेदी १५ अप्रैल गुरूवार को ''अयाजाफजलाजोकुल'' ग्लेशियर के नीचे स्थित ज्वालामुखी ने यूरोप सहित सारे विश्व को चिंता और परेशानी में डाल दिया है । यूरोप में आईसलैंड जैसे छोटे से टापूनुमा देश में स्थित यह ज्वालामुखी एक महीने से कम समय के अंतराल में दूसरी बार फटा है, और इस दूसरे विस्फोट से जो लावा निकला है, उसकी तीव्रता से सभी अचंभित और आश्चर्यचकित हैं । ज्वालामुखी विस्फोट एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है, पर इसके लावे से उत्पन्न परिस्थितियों ने यूरोप सहित दुनिया भर की ईंसानी बिरादरी के सरोकारों को प्रभावित किया तो इस पर चर्चा एवं चिंता शुरू हो गई । पिघलती बर्फ, आसमान तक मुंह उठाए काला स्याह धुंआ जिसके साथ ज्वालामुखी से निकलने वाला द्रव पदार्थ इन सबसे मिलकर आसपास के सैकड़ों लोगों को पलायन के लिए मजबूर तो किया ही, वहीं इस ज्वालामुखी की राख ने अटलांटिक महासागर के इर्द-गिर्द के एक बड़े क्षेत्र के वायु यातायात को प्रभावित किया है । यह प्रभाव इसलिए और व्यापक हो गया कि अटलांटिक महासागर यूरोप को अफ्रीका के साथ-साथ उत्तरी एवं दक्षिण अमेरिका से भी पृथक करने वाली जल राशि है । और पृथ्वी के इन चार बड़े भू-भागों के मध्य के आसमानी रास्ते का अवरूद्ध होना एक बड़ी भारी समस्या थी जिससे जुझने में सब जुटे हुए थे । सम्पूर्ण ब्रिटेन एवं उत्तरी यूरोप में स्थिति सबसे ज्यादा विषम है, फ्रांस, बेल्जियम, हालैंड, आयरलैंड, स्वीडन, फिनलैंड और स्विटजरलैंड जैसे देश इस घटनाक्रम से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं । ज्वालामुखी की इस राख ने वायु यातायात को प्रभावित किया है जिससे आम यात्रियों की तकलीफें तो बढ़ी ही हैं साथ-साथ इस क्षेत्र से होने वाली आयात-निर्यात की व्यापारिक गतिविधियों पर भी बुरा असर पड़ा है । क्योंकि बहुत सा व्यापारिक परिवहन भी वायु मार्ग से भी होता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस राख में उपस्थित सूक्ष्म आकार के कण मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक हैं । जैसे-जैसे यह राख और धुंए का गुबार धरती की सतह के करीब आता जाएगा, यह सूक्ष्म कण सांस के जरिए फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में श्वसन तंत्र पर शीघ्र असर पड़ेगा और अस्थमा एवं श्वांस के अन्य रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह चेतावनी है कि यथा संभव यह प्रयास रखें कि इस समय घर के बाहर न निकलना पड़े अन्यथा नुकसान होने की पूर्ण संभावना है। इस ज्वालामुखी विस्फोट ने सूक्ष्म आकार के कणों की ऐसी परत तैयार करी जो पृथ्वी की सतह से लगभग ६००० मीटर या २०,००० फीट की ऊंचाई तक व्याप्त है और कई-कई जगह तो यह अदृश्य भी है । जैसे-जैसे यह गुबार पृथ्वी की सतह के करीब आता जाएगा तो वह वायु यातायात को तो सुगम बना देगा किंतु स्वास्थ्य संबंधी तमाम परेशानियां उत्पन्न करेगा । आंखों में जलन एवं खुजली, नाक का बहना, सूखा कफ और गले में खराश जैसे लक्ष्ण प्रकट होंगे, वहीं अंडे सड़ने की दुर्गंध भी महसूस होगी जो मूलतः गुबार में शामिल ष्सल्फरष् की होती है । ज्वालामुखी की राख और लावे में मुख्य रूप से पिसे हुई चट्टान और कांच के अंश होते हैं जो इसके फटने से उत्पन्न होते हैं । सामान्यतः इनका व्यास २ मि.मि. से भी कम होता है । ज्वालामुखी की राख निर्माण सामान्यतः तीन प्रकार से होता है, एक तो गैस के रूप से निकले अवयव, ताप के रूप में निकले अवयव व भाप के रूप में निकले अवयव या पदार्थ । इस तरह से बनी राख इंसान की सांस से लेकर मशीन की जान तक को खतरे में डाल देती है । ज्वालामुखी विस्फोट के बाद सतह पर जमी राख को ''ऐशफॉल डिपाजिट'' कहते हैं । जब यह ऐशफॉल डिपाजिट भारी मात्रा में एकत्रित हो जाता है तो यह सीधे-सीधे स्थानीय परिस्थिति तंत्र या जिसे हम इको सिस्टम कहते हैं, को प्रभावित करने लगता है। ज्यादा समय बीते और इस को कोई छोडे नही ंतो यह ऐशफॉल डिपाजिट उपजाऊ भूमि के रूप से लेकर मजबूत चट्टान तक का स्वरूप ले सकता है । यही कारण है कि ज्वालामुखी के आसपास की भूमि सदा उपजाऊ रहती है। यह विस्फोट ग्लेशियर के नीचे हुआ था और इस तरह के विस्फोटों में पिघलती बर्फ का ठंडा पानी ज्वालामुखी के लावे को ठंडा कर देता है, और इस प्रक्रिया में लावा शीघ्र ही कांच के रूप में परिवर्तित हो जाता है और वातावरण में बिखरे यह बारीक कांच के कण सबसे पहले विमान संचालन में बाधा बनते हैं । इसी कारण से तुरंत ही इस क्षेत्र में वायु यातायात बंद कर दिया गया था । इस ज्वालामुखी की राख के बहुत बारीक कण कई बरसों तक वायुमंडल में बने रह सकते हैं । पर वह इतनी ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं कि सामान्य जीवन में बाधा नहीं आती । अपितु यह सूक्ष्म कण सूर्यास्त का सौंदर्य बढ़ाते हैं व यहीं अधिक ऊंचाई की राख वातावरण में ठंडक पैदा करने में भी सक्षम है । इस तरह की घटना का आखरी जिक्र सन् १९९१ में माउंट पिनाटूने ज्वालामुखी विस्फोट में आया था जब इस प्रकार की राख ने वातावरण में ठंडक पैदा कर दी थी । यह सब प्रकृति की इंसानी बिरादरी को खुली चुनौती है कि इंसान विज्ञान और तकनीक की दम पर प्रकृति को जीतने के इरादे छोड़कर उससे सामंजस्य और सद्भाव कायम रखे । इस चुनौती ने विश्व स्वास्थ संगठन और संयुक्त राष्ट्र महासंघ जैसी बड़ी-बड़ी संस्थाओं को विचार विमर्श करने के लिए मजबूर कर दिया कि किस तरह ऐसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने की रणनीति बनायी जाए ताकि आने वाले समय में ऐसे किसी ज्वालामुखी विस्फोट से भारी तादाद में जनजीवन और कामकाज पर प्रभाव ना पड़े साथ ही प्रकृृति ने इस ज्वालामुखी विस्फोट से अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं कि यदि उसके तंत्र से छेड़छाड़ या ज्यादती की जायेगी तो प्रकृति किसी को नहीं बख्शेगी पर शायद स्वार्थी इंसान अपनी आदतानुसार इस घटना को जल्दी भूल फिर प्रकृति से जंग लड़ने के लिये तैयार हो जायेगा ।(दखल) (लेखक एन.डी. सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट एवं रिसर्च के अध्यक्ष हैं |)
Dakhal News 22 April 2016

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