Dakhal News
21 November 2024राघवेंद्र सिंह
एक कहावत है अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। इसलिये आदमी बातों से नहीं अपने कर्मों से पहचाना जाता है। यह कहावत राजनैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक से लेकर मीडिया कर्मियों पर भी लागू होती है। यह इसलिये इन बिरादियों के लोगों से भी माफी के साथ आज की बातें। हमारा फोकस फिर सियासत पर है क्योंकि देश को दिशा देने के काम यही सबसे बड़े ठेकेदार हैैं। रावण ने भी सीता जी का हरण साधु बनकर किया था। गुरू का स्थान भी गोविंद के पहले था, डाक्टर को भगवान बाद दूसरा भगवान माना जाता था और मीडिया को महाभारत के संजय और विदुर की तरह सही बात बताने और सच दिखाना वाला माना जाता था। हम यहीं से अपनी बात शुरू कर रहे हैैं।
पिछले दिनों नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की क्षेत्रीय बैठक में जो कुछ कहा गया वह सब बहुत अच्छा था लेकिन कहने वाले और कराने वालों के आचरण पर नजर डालें तो वही निकलकर आता है, अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। हमेशा लोग कामकाज से ही जाने जाते हैैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जल, जंगल और जमीन का जिक्र करते हुये बताया कि बंदर, भालू जंगल छोड़- छोड़ कर बाजार और शहरों में आने लगे हैैं क्योंकि हमने उनके घरों को उजाड़ दिया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी अन्य राज्य को लेकर इसका जिक्र नहीं कर रहे हैैं। उन्हाेंने कि साल एेसा पेड़ जाे पानी छाेड़ता है। अमरकंटक से मंडला तक साल के पेड़ अगर सूख जायें ताे समझाे नर्मद जी संकट में अा जायेंगी। सूख जाएंगी, खत्म हो जाएंगी। यहां साल के पेड़ सूख रहे हैं अाैर किसी काे इसकी चिंता नहीं है। इनको बचाने के लिये कोई शाेध नहीं कर रहा है। जाहिर है कि यह एहतियात उन्होंने मध्यप्रदेश को लेकर बरता होगा क्योंकि एनजीटी के क्षेत्राधिकार में मध्यप्रदेश भी आता है और अक्सर राजधानी भोपाल के केरवा पहाड़ी और कोलार क्षेत्र में शेर, तेंदुए की आमद आम हो गई है। अक्सर शहर और गांव के लोगों से रात तो क्या दिन में भी जंगल महकमा इन इलाकों में जाने से रोकने की एडवाइजरी जारी करता है। यहां हम बता दें कि कोलार और केरवा इलाके में बस्तियों के साथ शिक्षण संस्थान भी खुल गये हैैं। याने अब गाय बैलों के साथ आम आदमी भी शेर, तेदुए की शिकारगाह में आ गया है। मुद्दा यहीं से शुरू होता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भावुक और संवेदनशील स्वभाव के अनुरूप एनजीटी के निर्णयों की जमकर तारीफ की। उन्होंने जो कहा उसका लब्बोलुआब यह है कि ट्रिब्यूनल की सक्रियता से भोपाल हिल स्टेशनों की तरह सुंदर बना हुआ है। यहां जंगल और नदियां एक तरह से सुरक्षित हैैं। इन बातों से अलग दूसरी तस्वीर भी है। मसलन हम भोपाल का ही जिक्र करें तो एनजीटी ने बड़ी झील को बचाने के लिये निर्देश दिये थे। उनके पालन में हफ्तों नहीं महीनों बीत गये हैैं लेकिन सरकार और प्रशासन का काम दीवार धकाने जैसा साबित हुआ है। मिसाल के तौर पर भोपाल के बीचोबीच आये स्लाटर हाउस को हटाने के निर्देश दिये थे लेकिन सरकारी जलेबी नहीं इमरतीनुमा कोशिशों के चलते अभी तक वह टस से मस नहीं हुआ है। जबकि एनजीटी ने नगर निगम, मुख्य सचिव तक को निर्देश दिये थे। मगर समूची कार्यवाही एनजीटी को थकाने वाली साबित हुई। ऐसे ही बड़ी झील को कहते तो भोपाल की लाइफ लाइन हैैं लेकिन इसका दम घोंटने के लिये रिटर्निंग वाल कैचमेंट एरिया में बनाने के बजाय झील की अंदर ही बना दी गई। यह बात पिछले साल बारिश की है। वह तो अच्छा हुआ कि बरसात इतनी हुई कि झील ने खुद अपनी हद तय कर ली। नतीजा यह हुआ कि रिटर्निंग वाल पानी में डूब कई और बड़ी झील कई मीटर दूर तक निकल गई। इस पर खुद मुख्यमंत्री ने झील किनारे घूम कर रिटर्निंग वाल तोडऩे के निर्देश दिये थे। मगर एनजीटी और सीएम के आदेश सुरक्षित स्थान पर रखे हुये हैैं और समस्या का भी बालबांका नहीं हुआ है। ऐसी ही कहानी जो मुनारें झील के बाहर लगनी थी वे भी झील के भीतर लगा दी गईं। उन्हें भी एक साल से ढूंढा जा रहा है। मगर महापौर, चीफ सेक्रेटरी और चीफ मिनिस्टर की बातों के बावजूद उन्हें ढूंढा नहीं जा सका है। यानें झील का गला घोंटने वाली सरहद न तो तोड़ी गई हैैं और न ही मुनारें मिली हैैं। आगे इसकी कोई संभावना भी नजर नहीं आती है।
आगे देखें तो सरकारें गुड गवर्नेंस की बातें करती हैैं। मगर होता उसके उलट है। स्कूल शिक्षा का स्तर उठाने की बात होती है, परिणाम में गिरता हुआ दिखता है। अस्पतालों में मरीज का इलाज और दवा देने की बात होती है लेकिन न डाक्टर होते हैैं न दवाएं मिलती हैैं। इसी तरह खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात होती है और वह बनता है मौत का धंधा। एनजीटी के और आदेश की बातें करें नर्मदा समेत नदियों से रेत निकालने और पहाड़ को खोदने से रोकने की लेकिन होता है इसके खिलाफ। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने कहा था कि रेत की चोरी रोकने के लिये अब नदियों के हरेक घाट पर तो हथियारबंद लोगों की तैनाती नहीं की जा सकती। सरकार ऐलान कर चुकी हैै कि मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों में डाक्टर नहीं मिल रहे हैैं। इसका मतलब अब जिसको जैसे इलाज कराना हो वह खुद तय कर ले।
इसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने भाषणों में अक्सर कहती थीं गरीबी हटायेंगे। बाद में विरोधियों ने इसमें सुधार किया और कहा इंदिरा जी ने गरीबी तो नहीं गरीब को जरूर हटा दिया। ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातें करते हैैं कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में ही देखें तो वहां लोग खा भी रहे हैैं और खाने भी दे रहे हैैं और लोग देख रहे हैैं कि नरेंद्र मोदी के नारे के खिलाफ आचरण करने वालों का कुछ नहीं बिगड़ रहा है। इस तरह की बातें के अनेक उदाहरण मिल सकते हैैं लेकिन बात वही है कि अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैैं। सही मायने में आदमी आचरण, व्यवहार और कर्मों से ही जाना जाता है।[पत्रकार राघवेंद्र सिंह की वॉल से ]
Dakhal News
31 July 2017
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.
Created By: Medha Innovation & Development
|