केंद्र-राज्य की उन्मूलन मुहिम और सुरक्षा बलों के डिजिटल नेटवर्क ने नक्सलियों को देश के 18 जिलों में समेटा
jagdalpur,  centre-state eradication ,digital network

जगदलपुर। कभी नक्सली संगठन का लाल गलियारा देश के 180 जिलों से होकर गुजरता था, लेकिन अब यह गलियारा देश के 

केवल 18 जिलों में सिमट कर रह गया है। इस कामयाबी का श्रेय केंद्र व राज्य की नक्सली उन्मूलन मुहिम, उनकी रणनीति और सुरक्षाबलों का 

नक्सलियाें के विरूद्ध डिजिटल नेटवर्क काे माना जा रहा है। इसके साथ ही नक्सलियों के पुनर्वास की विभिन्न योजनाओं को भी जाता है,जिससे न 

केवल बहुत बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसर्पण किया है बल्कि सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में उनको बड़ी संख्या में जान भी गंवानी पड़ी है।    

 
बस्तर आईजी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग के चार जिले बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और कांकेर हैं,जिनमें अभी नक्सलियों का 
प्रभाव है। इसी तरह से झारखंड का पश्चिम सिंहभूमि और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला भी अति नक्सल प्रभावित है। इसके अलावा 6 अन्य जिले जो प्रभावित तो हैं लेकिन उनमें यदाकदा ही वारदातें होती हैं। इनमें छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा, गरियाबंद, झारखंड का मोहला-मानपुर लातेहार, ओडिशा का
 नुवापाड़ा और तेलंगाना का मूलुग जिला शामिल है। इन जिलों को एलडब्ल्यूई श्रेणी में रखा है। वहीं अल्लूरी सीतारामराजू (आंध्रप्रदेश), बालाघाट (मध्यप्रदेश), कालाहांडी, कंधमाल, मलकानगिरी (ओडिशा) और भाद्रादि-कोट्टागुडेम (तेलंगाना) जिलों को केंद्र सरकार ने कंसर्न जिलों की सूची में रखा है।
 
छत्तीसगढ़  े नक्सल सक्रिय जिलों में बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और कांकेर हैं। देश के 180 जिलों से 18 जिलों में सिमटने के पीछे सुरक्षाबलों के द्वारा नक्सलियाें के विरूद्ध डिजिटल नेटवर्क काे माना जा रहा है। वहीं नक्सलियों का सबसे खतरनाक हथियार आईईडी रहा है।उन्होंने 
सड़क पर गड्ढा खोदकर बारूद लगाने से लेकर प्रेशर बम तक उन्होंने सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन अब माइन डिटेक्शन सिस्टम, ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार और रोबोटिक आर्म्स जैसे आधुनिक उपकरणों ने उनकी इस चाल को भी कमजोर कर दिया है।
 

बस्तर जिले के एक आला पुलिस अधिकारी ने बताया कि डिजिटल नेटवर्क से नक्सलियाें के कॉल इंटरसेप्शन, रेडियो फ्रिक्वेंसी ट्रैकिंग और साइबर मॉनिटरिंग ने नक्सलियाें के गुप्त संदेशों को पढ़ लेना आसान बना दिया है। नतीजा यह हुआ कि बड़ी साजिशें समय रहते नाकाम हो रही हैं। डिजिटल तकनीक ने सिर्फ हथियारों और जासूसी तक ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर भी नक्सलियों को कमजोर किया है। सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप्स और डिजिटल कनेक्टिविटी ने जंगल के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ा है। विकास की तस्वीरें और अवसरों की जानकारी अब हर घर तक पहुंच रही है, जिससे नक्सली विचारधारा की पकड़ कमजोर हो रही है।

 
पुलिस अधिकारी ने बताया कि पहले नक्सली घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में छिपकर सुरक्षा बलों पर अचानक हमला कर दिया करते थे। लेकिन अब ड्रोन और सैटेलाइट सर्विलांस की मदद से नक्सलियाें की गतिविधियों पर पल–पल नजर रखी जा रही है। आसमान से मिल रही रीयल-टाइम तस्वीरें उनके ठिकानों, मूवमेंट और हथियार छुपाने के ठिकानों को उजागर कर रही हैं। इसके साथ ही नक्सली संगठन में अब शीर्ष पदाधिकारियों की कमी हो गई है। संगठन की सर्वोच्च राजनीतिक संस्था पोलित ब्यूरो में जहां 12 सदस्य होते हैं। इसमें अब केवल चार सक्रिय सदस्य बचे हैं, मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय, देव कुमार सिंह उर्फ देवजी और मिसिर बेसरा। इसी तरह केंद्रीय कमेटी में जहां 24 सदस्य होते थे, वहां अब 12 ही बचे हैं।
 
सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सल समस्या से मुक्ति का लक्ष्य रखा है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की माने तो सुरक्षाबलों का आक्रामक अभियान, प्रभावित इलाकों में चल रही लक्षित विकास योजनाएं, संगठन में मतभेद और नेतृत्व संकट के चलते नक्सली लगातार कमजोर हो रहे हैं। यही कारण है कि अधिकांश शीर्ष नक्सली नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं।

 

बस्तर आईजी सुन्दरराज पी. का कहना है कि इस कामयाबी का श्रेय केंद्र व राज्य की नक्सली उन्मूलन मुहिम, उनकी रणनीति और सुरक्षाबलों का
नक्सलियों के विरूद्ध डिजिटल नेटवर्क है। उन्होंने कहा कि बस्तर में नक्सलियों का जनाधार खत्म हो गया है, इसी कारण उनका संगठन कमजोर हो चुका है। बड़े नेता या तो मारे जा रहे हैं या फिर अंडरग्राउंड हो गए हैं। मार्च 2026 तक बस्तर नक्सल मुक्त हो जाएगा।
Dakhal News 18 August 2025

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2025 Dakhal News.