सनातन हिंदू एकता पदयात्रा: समाजिक और धार्मिक एकता का प्रतीक
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा नेतृत्व की जा रही सनातन हिंदू एकता पदयात्रा इस समय देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। यह पदयात्रा 160 किलोमीटर की यात्रा तय करती हुई बागेश्वर धाम से शुरू होकर रामराजा मंदिर, ओरछा तक पहुंचेगी। इस यात्रा का उद्देश्य केवल सनातन हिंदू समाज को एकजुट करना नहीं है, बल्कि यह जात-पात, भेदभाव और सामाजिक बुराइयों को खत्म करने का संदेश भी दे रही है।

यात्रा का आरंभ बागेश्वर धाम से हुआ था, और जैसे-जैसे यह यात्रा आगे बढ़ी, इसमें देशभर से संतोंकलाकारों, और प्रसिद्ध हस्तियों का सम्मिलन हुआ। पदयात्रा के दौरान न केवल हिंदू समाज की एकता का प्रतीक दिखाई दिया, बल्कि यह एक ऐसा मंच बना, जहां हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्भुत दृश्य भी देखने को मिला। मुस्लिम समाज के लोगों ने खुले दिल से पदयात्रा का स्वागत किया, जो साम्प्रदायिक सौहार्द का एक बेहतरीन उदाहरण है।

यात्रा के दौरान मुस्लिम समाज के लोगों ने धीरेंद्र शास्त्री और उनके अनुयायियों पर पुष्प वर्षा की, जो उनके प्रति सम्मान और भाईचारे का प्रतीक था। धीरेंद्र शास्त्री ने इसे सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बताते हुए मुस्लिम समाज को धन्यवाद दिया। उनका मानना है कि यह यात्रा किसी भी प्रकार की कट्टरता फैलाने के लिए नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म को मजबूती देने, विचार की ताकत से जागरूकता फैलाने और सामाजिक एकता की दिशा में एक कदम बढ़ाने के लिए है।

यात्रा के दौरान धीरेंद्र शास्त्री ने यह स्पष्ट किया कि इस यात्रा का उद्देश्य समाज में बुराइयों और घृणा की जगह पर अहिंसासमाजिक सौहार्द और धार्मिक एकता को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा किसी भी प्रकार की हिंसा या नफरत फैलाने के उद्देश्य से नहीं की जा रही है, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य है लोगों को जागरूक करना और सनातन धर्म की ताकत को एकजुट करना। उनका कहना था, “हमारा संदेश साफ है — यह हिंदू हिंसावादी नहीं, बल्कि अहिंसावादी है। हम अपनी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता फैलाने आए हैं।”

यात्रा के माध्यम से शास्त्री जी ने यह भी बताया कि सनातन धर्म और हिंदू समाज को एकजुट करने का उद्देश्य है लोगों को उनके अधिकारों और संस्कृति के प्रति जागरूक करना। उन्होंने आगे कहा कि आज के समय में समाज में कई प्रकार की भेदभाव की भावना फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं, और इस यात्रा के माध्यम से उनका यह संदेश है कि धर्म और संस्कृति को एकजुट किया जाए और इन बुराइयों को समाप्त किया जाए।

धीरेंद्र शास्त्री का कहना था, “समाज में जाति-धर्म की दीवारें तोड़ने का वक्त आ चुका है। हमें एक-दूसरे के धर्म और संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए। हमारे पास जो शक्ति है, वह एकता में है। जब हम एकजुट होंगे, तभी हम अपने अधिकारों की रक्षा कर पाएंगे।”

9 दिनों में 8 पड़ाव पार करते हुए यह यात्रा न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक बनी है, बल्कि यह समाजिक समानताधार्मिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता को भी मजबूत कर रही है। यात्रा के हर पड़ाव पर लोगों ने धर्म, संस्कृति और एकता की बातें सुनी और उन्हें अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।

यात्रा के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता के दृश्य ने सभी को यह समझने का अवसर दिया कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रह सकते हैं, और सभी को अपनी संस्कृति और धर्म का सम्मान करते हुए एकजुट रहना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता और समाजिक समानता की यह मिसाल दर्शाती है कि हम सभी एक-दूसरे के धर्म का आदर करें, और साथ मिलकर राष्ट्र की एकता को मजबूत करें।

पदयात्रा के समापन के साथ एक संदेश साफ तौर पर सबके सामने आया कि सनातन हिंदू धर्म का मूल उद्देश्य केवल धार्मिक प्रथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवतासमाजिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए है। धीरेंद्र शास्त्री का यह प्रयास एक बड़े सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत कर रहा है, जहां धर्म, जाति और भेदभाव से ऊपर उठकर समाज एकजुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा करता है।

यह यात्रा भविष्य में भी धार्मिक एकता और सामाजिक सौहार्द की मिसाल बनेगी, जो समाज को एक सकारात्मक दिशा दिखाएगी।

Dakhal News 23 November 2024

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