संतान के लिए रक्षाकवच है यह व्रत
This fast is a protective shield for children

जीवित्पुत्रिका को जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है. विशेषकर यह व्रत बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में रखा जाता है. माताएं जिउतिया व्रत संतान की लंबी आयु और उत्तम सेहत के लिए रखती हैं. इस व्रत को बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जला रखना होता है. इसलिए इसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है.

पंचांग के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस साल जितिया का व्रत बुधवार 25 सितंबर 2024 को रखा जाएगा और अगले दिन यानी 26 सितंबर 2024 को व्रत का पारण किया जाएगा.  

जीवित्पुत्रिका व्रत में होती है जीमूतवाहन की पूजा

जीमूतवाहन गंधर्व राजकुमार थे. लेकिन सारा राजपाट छोड़ वे वन चले गए. एक दिन वन में जीमूतवाहन की मुलाकात एक वृद्ध महिला से हुई, जिसका संबंध नागवंश से था. वह महिला बहुत रो रही थी. जीमूतवाहन ने उनसे रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि पक्षीराज गरुड़ को नागों ने वचन दिया है कि हर रोज उसे आहार के रूप में एक नाग दिया जाएगा. वृद्ध महिला ने कहा कि आज उसके बेटे शंखचूड़ की बारी है.

जीमूतवाहन ने वृद्ध महिला से कहा कि आपके बेटे को कुछ नहीं होगा और वह आज पक्षीराज गरुड़ का आहार नहीं बनेगा, क्योंकि आपके बेटे के बदले आज मैं जाऊंगा. यह कहकर जीमूतवाहन गरुड़ के पास चले गए. लाल कपड़े में लिपटे जीमूतवाहन को गरुड़ पंजे में दबोच कर उड़ गए. दर्द से जीमूतवाहन रोने और कराहने लगे.

उसकी आवाज सुन गरुड़ एक शिखर पर रुक गए, तब जीमूतवाहन ने गरुड़ को सारी बातें बताई, जिससे गरुड़ जीमूतवाहन की दया भावना और साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया और साथ ही वचन दिया कि आज से वह किसी भी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे.

इस तरह से जीमूतवाहन के प्रयासों के कारण नागवंश की रक्षा हुई. मान्यता है कि इसके बाद से ही जीवित्पुत्रिका व्रत में जीमूतवाहन की पूजा होती जाती है. ऐसा माना जाता है कि, जिस तरह जीमूतवाहन ने वृद्ध महिला से संतान शंखचूड़ के जीवन की रक्षा की, उसी प्रकार वे सभी माताओं के संतानों की रक्षा करेंगे और उनकी गोद कभी सूनी नहीं होने देंगे.

संतान के लिए रक्षा कवच है जीवित्पुत्रिका व्रत

जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को कभी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है. साथ ही संतान को दीर्घायु और उत्तम सेहत का वरदान प्राप्त होता है.

महाभारत में ऐसा वर्णन मिलता है कि,अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांच संतानों को मार डाला था. इसके बाद अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर कारावास में डाल दिया और अश्वत्थामा से उसकी दिव्यमणि छीन ली. इसके बाद अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर बदले की भावना से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को गर्भ में ही नष्ट कर दिया.

लेकिन श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे अजन्मे संतान को फिर से जीवित कर दिया. इस तरह के मृत्यु के बाद पुन: जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. इसलिए जीवित्पुत्रिका व्रत को संतान के लिए रक्षा कवच से समान माना जाता है.

 

Dakhal News 10 September 2024

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.