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शिव की नगरी उज्जैन में श्रावण मास का प्रारंभ 22 जुलाई से हो रहा है। इस दिन सोमवार भी है और शाम 4 बजे भगवान महाकाल नगर भ्रमण यात्रा पर निकलेंगे। सवारी के चार दिन पहले से ही भगवान की प्रतिमा पर श्रृंगार का दौर शुरू हो गया है। प्रतिमा को विभिन्न से स्वरूप निखारने के बाद पुजारी-पुरोहितों द्वारा सवारी के लिए भगवान को शृंगारित करना शुरू कर दिया है श्री महाकालेश्वर मंदिर में भगवान महाकाल की सवारी के लिए तैयारी जोर-शोर से प्रारंभ हो गई है। बाबा महाकाल चांदी की पालकी में विराजित होकर निकलेगें उस स्वरूप को सजाने, संवारने का काम गुरूवार से प्रारंभ हुआ है। इस दौरान भगवान के चांदी के मुखौटे मनमहेश और चंद्रमोलेश्वर की प्रतिमा पर पालिश करने के बाद आंख, मुंह, तिलक आदि को पेंट के माध्यम से उकेरा गया प्रतिमा पर रंग-रोगन होने के बाद पुजारी व पुरोहितों द्वारा भगवान को साफा, वस्त्र, आभूषण से श्रृंगार करने का क्रम भी शुरू हो गया है। श्रावण महीने की पहली सवारी में भगवान मनमहेश स्वरूप चांदी की पालकी में विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकलेंगे।
तीन पीढ़ी से पाठक परिवार संवार रहा मुखौटे
भगवान महाकाल की चांदी की प्रतिमाओं का रंगों के माध्यम से श्रृंगार करने वाले मंदिर के कलाकार राजेंद्र पाठक ने बताया कि भगवान का श्रृंगार करने का कार्य तीन पीढ़ियों से कर रहे हैं। पिता स्व. चंद्रकात पाठक के निधन के बाद उन्होंने यह कार्य संभाला है। सवारी के पहले चांदी के मुखौटे को खजाने से निकालकर कोटितीर्थ कुंड में स्नान कराने के बाद पॉलिश की जाती है पॉलिश का कार्य पूर्ण होने के बाद आइल पेंट के माध्यम से प्रतिमा की साज-सज्जा होती है। वहीं, भगवान जिस चांदी की पालकी में विराजित होकर निकलेंगे, उस पालकी को भी पॉलिश कर साज-सज्जा की गई है। प्रतिमाओं के अलावा सवारी में शामिल होने वाले रथ और नंदी, गरुड़ की प्रतिमाओं को भी रंग रोगन कर सजाया जाता है।
वर्ष में पांच बार मुखौटों के होते हैं दर्शन
श्री महाकालेश्वर मंदिर के खजाने में चंद्रमौलेश्वर, मनमहेश, उमा-महेश, शिवतांडव, सप्तधान्य, जटाशंकर मुखौटे के सवारी और अन्य पर्व व त्यौहार के अवसरों पर दर्शन होते हैं। भगवान के इन स्वरूपों को श्रावण-भादौ, कार्तिक, दशहरा पर्व, वैकुंठ चतुर्दशी पर्व की सवारियों के दौरान तथा उमा-सांझी उत्सव व शिवरात्रि पर्व पर दर्शन होते हैं।
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