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बघेली भाषा में कलाकारों की बेहतरीन प्रस्तुति
भोपाल में बघेली नाटक छाहुर का मंचन किया गया छाहुर नाटक में कलाकारों ने बघेली भाषा में संवाद के साथ बेहतरीन प्रस्तुति दी इस नाटक में एक राज्य के अकाल और उसके द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों को दिखाया गया इसके साथ ही नाटक में छाहुर और बबुली के प्रेम प्रसंग को भी दिखाया गया
भोपाल के शहीद भवन में सघन सोसायटी फॉर कल्चरल एवं वेलफेयर ने बघेली भाषा में छाहुर का मंचन किया छाहुर का निर्देशक आनंद मिश्रा ने किया है छाहुर मध्यप्रदेश के बघेलखंड का प्रचलित लोक नाट्य है जो दीपावली से गोपाष्टमी के बीच खेला जाता है यह लोक नाट्य मूल रूप से गायिकी अंदाज में होता है नाटक में दिखाया गया कि एक राज्य में अकाल पड़ता है तब एक गाँव में रह रहे छाहुर ने राजा को लगान देने से मना कर दिया जिस पर नाराज राजा ने छाहुर की गाय भैंसों को अपने कब्जे में ले लिया जिसको छुड़ाने के लिए छाहुर राजा की हवेली पर जाता है जहां उसको राजा की बेटी बबुली से प्यार हो जाता है बाद में छाहुर अपनी गाय भैंसों को वापस लाता है और अपनी प्रेमिका बबुली से शादी करने के लिए राजा से लड़ाई करता है जिसमे गाँव वालों ने उसका साथ दिया नाटक का मंचन बघेली भाषा में किया गया नाटक को लोगों ने खूब पसंद किया
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