जोडऩे में बेजोड़ नरेंद्र मोदी
राघवेंद्र सिंह bhopal

राघवेंद्र सिंह 

मित्रों.... एक विज्ञापन आया करता था जोडऩे में बेजोड़ फेवीकाल। भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार के बाद जोडऩे में बेजोड़ रहे नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी अमिट है। वोजपेयी जी ने कोई दर्जन भर दलों को जोड़कर एनडीए की सरकार बनाई और उसे सफलतापूर्वक चलाने का चमत्कार भी किया था। तब माया, ममता और स्वर्गीय जयललिता भी उनसे जुड़ी थीं। महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल और बिहार के नीतिश कुमार भी। मगर अब जमाना बदल रहा है और सियासी जोड़ के नये अवतार में प्रकट हो चुके हैैं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी।  इन जोड़ वोटर को जोडऩे में बेजोड़ साबित हो रहे हैैं।  लोकसभा में भाजपा को बहुमत और फिर उत्तरप्रदेश विधासभा चुनाव परिणाम इसका प्रमाण हैैं। फिलवक्त जो माननीय नेताजी यूपी की जीत पर सवाल खड़े कर रहे हैैं वह बिलकुल बेमानी हैैं। मीन-मेख, नुक्ताचीनी के लिये धीरज धरें। प्रतीक्षा ही उनके पास एकमात्र विकल्प है। नहीं तो जनता इसे खंबा नोचना ही मानेगी। पराजित दलों के प्रति हमारी सहानुभूति और उनसे सियासी समझदारी की उम्मीद भी। यूपी की 403 सीटों में सवा तीन सौ जीतना कोई मजाक है क्या.... खुद भाजपा के लिये भी अकल्पनीय। ऐसा कभी नहीं हुआ।

राजनीति के खिलाडिय़ों को टाइमिंग का महत्व बताने की आवश्यकता नहीं है। भला गणेश जी को कौन बुद्धि दे सकता है....? यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इतिहास रच दिया। मोदी अब वहां घर-घर के हो गये हैैं। लोकतंत्र में जब जीत का जश्न जनता मना रही हो  उस समय सियासत कौन पसंद करता है। मायावती रुदाली बन ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े कर रही हैैं। भयंकर हार से  दल के दल सन्निपात में हैैं। अकर-बकर बक रहे हैैं। अरे भाई धीरज रखिए भाजपाई भी आदमी हैैं।  सरकार में काम करने दो। जब वे गलतियां करें तो मुद्दों के आधार पर जनता के हित में संघर्ष करो....विरोधी दलों को  अगली बार सत्ता में वापसी करने से किसने रोका है..? क्षमा करें पराजित दलों के जख्मों पर नमक डालना, नसीहत देना हमारा मकसद नही है। शेष प्रतिपक्ष की मर्जी।

अटल जी के बाद भाजपा के नए मोदी अवतार से सब हक्के-बक्के हैैं। विरोधी ही नहीं भाजपाई भी चकित और बहुत कुछ दबे-सहमे से भी। उन्हें डर है जो मोदी ने कहा था न खाऊंगा न खाने दूंगा। दिल्ली के बाद बिहार में भाजपा की हार के बाद केंद्रीय नेताओं इनमें मंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री-मंत्री  और संगठन भी शामिल है। सांस लेने वाली राहत महसूस कर रहे थे। अब उनके घिग्घी बंध रही होगी। दरअसल उजले दिखने वाले नेताओं की जन्मकुंडली मोदी के पास है। यूपी उत्तराखंड की भूस भरने वाली जीत ने भाजपा के भ्रष्ट नेताओं खासकर मुख्यमंत्रियों की नींद उड़ा दी है। गुजरात चुनाव के पहले कई नेताओं की कुंडलियों में ग्र्रहण योग शुरू हो सकता है। दरअसल अब भाजपा का मतलब मोदी और मोदी के मायने भाजपा होने लगेगा। जैसा कभी कांग्र्रेस में तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था इंदिरा इज इंडिया। बाद में क्या हुआ सबको पता है। मोदी जरूर इतिहास  से सबक लेंगे और उन्हें ईश्वर को तोहफा बताने वाले जुमलों से सावधान रहेंगे। उन्हें अवतार बताने वालों  में होड़ शुरू होने वाली है जो गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद बेशर्मी  की हद तक जायेगी। कई नेता गले में पïट्टे डाले जैसे होंगे और दिखेंगे भी। भाजपा में कहा जाने लगा है कि राजस्थान, म.प्र. और छग जैसे भाजपा शासित राज्यों के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों को वे अपना प्रिय बना कर दिल्ली कूंच करने का हुकुम सुना सकते हैैं। परिवर्तन होने पर जनप्रिय कम मोदी प्रिय नेताओं की सत्ता संगठन में ताजपोशी हो सकती है। जैसा कि हरियाणा और झारखंड के मुख्यमंत्री चयन में सबने देखा। इस किसिम के सियासी अनुमानों को खारिज करना और खिल्ली उड़ाना मोदी जी का शगल रहा है।  सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि मोदी पहले से ज्यादा झुक जायें और सबको साथ लेकर चलें। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। यूपी विजय के बाद महामानव बन कर उभरे हैैं और यह कद अभी औैर भी बड़ा होगा।

मोदी भाजपा ही नहीं पूरे देश में वन मेन आर्मी की तरह हैैं। प्रतिपक्ष नेताओं में जिन्हें वे गम्भीरता नही लेते उनमे राहुल गांधी सबसे ऊपर हैं ।  शेष नेताओं में संघर्ष का माद्दा नहीं दिखता। अरविन्द केजरीवाल अलबत्ता जुबानी जंग करते रहते हैं। ऐसे में महाबली मोदी बेफिक्र हो अपना रथ दौड़ायेंगे। फिर उसके तले भाजपाई दबे या विरोधी कुचले जायें।

चौैंकाने वाले फैसले

जीत के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्साहित मोदी 2018 के मध्य तक कुछ बड़े  और जोखिम भरे फैसले ले सकते हैैं। सर्जिकल स्ट्राईक  और नोटबंदी से भी अधिक हलचल मचाने वाले। मसलन जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का निर्णय कर सबको चौैंका सकते हैैं। इसी तरह कॉमन सिविल कोड लागू करने का फैसला भी आ सकता है। ये मुद्दे भाजपा की सियासत का आधार रहे हैं। इसके बाद 2018 में राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ समयपूर्व लोकसभा चुनाव भी कराये जा सकते हैैं। हजार गलतियों और लाख खामियों पर इस तरह के निर्णाय  ऐसा सुरक्षा कवच बनेंगे कि मोदी समर्थन का तूफान लेकर सत्ता में वापसी कर सकते हैैं । हमेशा उसका कहना रहा है लोकसभा के साथ राज्यसभा में  पर्याप्त बहुमत मिलते ही इन पर अमल किया जाएगा। एक विधानसभा और एक निशान के निकट पहुंच रही है भाजपा। 

चुनावी नतीजों के पहले एग्जिट पोल की तरह यह भी एक हमारा अनुमान है। बाकी तो 2018 तक प्रतीक्षा ही एकमात्र विकल्प है। अभी तो हर हर और घर घर मोदी के बाद चप्पा चप्पा भाजपा है। पंजाब अलबत्ता पंजे की पकड़ में है। गोवा में फिर मनोहर पर्रीकर की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। मणिपुर में भी भाजपा ने  जबरदस्त, अदभुत, अकल्पनीय सफलता पाई और सरकार जोड़तोड़ से बना ही ली है। नोटबंदी के बाद यूपी में कसाब, कब्रिस्तान, श्मशान जैसे जुमलों के बाद  पूरा देश मोदी का मुरीद है और भाजपा उनकी जेब में सुरक्षित....। फेविकाल  के एक विज्ञापन में यह भी आता  था पकड़े रहना, छोडऩा मत।

(लेखक IND 24 न्यूज चैनल समूह के प्रबंध संपादक हैं )

Dakhal News 16 March 2017

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