गोद में बैठे शिवराज सिंह चौहान की तस्वीर के पंच कर्म
godi me shivraj singh

 

 

पहला विश्लेषण : मध्य प्रदेश के उन दो पुलिसकर्मियों को तहेदिल से बधाई, जिन्होंने अपने मुख्यमंत्री को गोद में उठा रखा है. मुख्यमंत्री की निंदा या इस तस्वीर पर मौज लेने वाले यह न देख पाये कि उस तस्वीर में एक को छोड़ बाकी सब अपना दायित्व निभा रहे हैं, बल्कि मुख्यमंत्री को गोद में उठाने वाले दोनों ही जवान हंस रहे हैं।  दोनों ने मुश्किल से अपनी हंसी रोक रखी है, मानो वे मुख्यमंत्री को गोद से उतारकर खूब हंसना चाहते हों।  उनका पेट फटने वाला हो. बल्कि दोनों सिपाहियों के पीछे सफ़ारी सूट में जो जवान नज़र आ रहे हैं, वो सरकारी तंत्र का यह परफ़ेक्ट पिक्चर प्रस्तुत कर रहे हैं।  जो काम कर रहा है, वह हंस रहा है।  जो काम नहीं कर रहा है, वो ऐसे दम फुलाये है, जैसे वही काम कर रहा है। 

 

दूसरा विश्लेषण : अब आते हैं तस्वीर के मुख्य किरदार यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर. तस्वीर देखकर दो बातें नज़र आईं।  पहला कि मुख्यमंत्री ज़रा भी असहज नहीं हैं, बल्कि अभ्यस्त लग रहे हैं।  दूसरा, अगर पहली बार गोद में बैठे हैं तो उस लिहाज़ से भी उनका परफॉर्मेंस अच्छा है।  हेलिकॉप्टर में बैठकर खिड़की से एकांत उदास धरा पर फैले जल-जीवन को देखने की तस्वीर की जगह यह तस्वीर कितनी अच्छी है।  वे वहां से बाढ़ का मुआयना कर रहे हैं, जहां से बाढ़ में फंसे लोग मुआयना करने वाले हेलिकॉप्टर को आंख पर उंगलियों के छज्जे बनाकर देखा करते हैं। 

 

तीसरा विश्लेषण : पानी का स्तर सभी के घुटने से काफी नीचे दिख रहा है. जहां पर मुख्यमंत्री को गोद में उठाया गया, वहां तो पानी सामान्य है. ख़तरे के निशान से काफी नीचे।  जाच होनी चाहिए कि ऐसी जगह पर गोद में उठाने का निर्देश किसने दिया या सिपाहियों ने अति उत्साह में अपने मुख्यमंत्री को गोद में उठा लिया।  क्या ये सिपाही अपने मुख्यमंत्री को कम गहरे पानी से अधिक गहरे पानी की तरफ ले जा रहे थे? अगर ऐसा है तो मामला ख़तरनाक लगता है।  मैं सिर्फ तस्वीर के आधार पर विश्लेषण पेश कर रहा हूं. सूचना के आधार पर नहीं। 

 

चौथा विश्लेषण : एक और तस्वीर है, जिसमें शिवराज सिंह के पांव पानी में हैं. ऐसा लगता है कि उनके पांव पड़ते ही पानी ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. इस तस्वीर में वे गोद में नहीं हैं, मगर इस बार उनका जूता किसी की गोद में है।  मुख्यमंत्री को गोद में उठाने वाले दोनों सिपाही फ्रेम से बाहर हैं, बल्कि ग़ायब हैं।  राम जाने कहीं निलंबित न हो गए हों! सफ़ारी सूट वाले सुरक्षाकर्मी को जूते उठाने का मौका मिला है।  सुरक्षाकर्मी ने इसलिए जूते उठाए होंगे, क्योंकि मुख्यमंत्री ने अपने दोनों हाथ से पजामे उठा रखे हैं।  उनका हाथ फ्री नहीं है, वर्ना वे अपने जूते आप ही उठाते।  अब एक साथ पजामा भी उठाओ और जूता भी, मेरे ख़्याल से मीडिया यह कभी नहीं समझ पाएगा। 

 

पांचवा विश्लेषण : सीएम के पीछे के सारे लोग अपने जूते में हैं।  वे आराम से उसी पानी में चल रहे हैं, जिसमें सीएम के भाव से ऐसा लग रहा है जैसे वे कमर भर पानी में चले जा रहे हों।  यहां तक कि जिसके कंधे पर मुख्यमंत्री के जूते का भार है, उसने भी अपने जूते नहीं उतारे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उस सुरक्षाकर्मी के पास कई जोड़ी जूते हैं और सीएम के पास एक जोड़ी ही।  इसके अलावा मेरी नज़र मुख्यमंत्री का जूता उठाये सुरक्षाकर्मी के बगल में चल रहे एक खाकीधारी पुलिसकर्मी पर पड़ी।उसके दोनों पांव ख़ाली थे, जूता मुक्त।  तब से सोच रहा हूं कि उसके जूते किसने उठा रखे होंगे!

Dakhal News 21 August 2016

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