वे मुझसे असहमत रहे, आज मैं उनसे असहमत हूं
balkavi baeragi

 डॉ. बालकवि बैरागी

राजनीति की शुरुआत से लेकर जीवन के अंत तक कोई आपका राजनीतिक रूप से विरोधी रहे और वो यूं अचानक चला जाए, तो अच्छा नहीं लगता। पटवाजी और मैं हमेशा राजनीतिक विरोधी रहे, लेकिन विचार, गृहनगर व जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण में हम हमेशा साझा रहे। वे मुझसे बड़े थे, इसलिए तमाम विरोधों के बावजूद मैं उन्हें सम्मानपूर्वक 'दादा भाई" कहता और उनके पांव छूता था, बदले में निजी तौर पर वे मुझे प्रेम करते रहे।

मुझे याद आता है 1967 का वो विधानसभा चुनाव जो मैंने सुंदरलाल पटवा जैसे दो बार विधायक चुने जा चुके नेता के खिलाफ लड़ा था। इससे पहले वे मनासा विधानसभा क्षेत्र से 1957 और 62 के चुनाव जीत चुके थे। मगर तीसरे चुनाव में कांग्रेस ने मुझे आगे किया और मैं 747 वोटों से जीता। मगर राजनीतिक विरोध के बावजूद हमारे बीच कभी कोई कड़वाहट नहीं रही। हमारे बीच की राजनीतिक शुचिता इस कदर स्पष्ट थी कि जब तक वे मुख्यमंत्री या अन्य किसी पद पर रहे, मैं कभी उनके दफ्तर नहीं गया, कभी किसी काम के लिए उनसे अनुरोध नहीं किया। मैं उनसे और वे मुझसे हमेशा ही असहमत रहे। मैं आज भी उनसे असहमत हूं कि उन्हें आज नहीं जाना था, अभी उन्हें और जीना था क्योंकि आज की राजनीति को उनके जैसे मार्गदर्शक की जरूरत है। उन्होंने राजनीति को हमेशा गंभीरता से समझने की कोशिश की। उनमें वो कूवत थी कि वे राष्ट्रीय राजनीति में छवि बना सकते थे, लेकिन वे हमेशा मध्यप्रदेश के प्रति समर्पित रहे। पटवाजी के रूप में आज एक ऐसा राजनेता चला गया, जिनकी वर्तमान समय में सत्ता से लेकर विरोध तक, दोनों जगह आवश्यकता थी। उनके पास लंबा अनुभव था।

वे विनोदी स्वभाव के थे। मैंने हमेशा उन्हें धोती-कुर्ते में ही देखा और राजनीति में यही उनका परिधान रहा। हालांकि नीमच, कुकड़ेश्वर में वे पतलून पहन लेते थे। वे प्राकृतिक उपचार के लिए अक्सर केरल जाते तो मैं कहा करता कि कुकड़ेश्वर की मिट्टी में ही उपचार मिल जाएगा, केरल क्यूं जाते हैं। जब उन्हें पैरालिसिस अटैक हुआ, तब लोक-जीवन के तीर्थ भादवा माता में वे एक माह रहे। मान्यता है कि वहां का पानी लकवा ठीक कर देता है। बाद में जब हम दोनों राज्यसभा (1998-2004) में थे, तब उन्होंने मुझे फोन कर कहा कि भादवा माता की सड़क के लिए 10 लाख मैं देता हूं, 10 लाख तुम दे दो। तब सड़क उनकी व पुलियाएं मेरी निधि से बनीं। राजनीतिक विरोधियों के सहकार का ये अनूठा उदाहरण था। (लेखक पूर्व मंत्री व साहित्यकार हैं)

 

Dakhal News 29 December 2016

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