आम आदमी नहीं है अब हमारे सिनेमा में
vivek agnihotri

 

भारतीय सिनेमा ने देश के उन प्रेरणादायी पुरूषों का फिल्मांकन नहीं किया है जिनको किया जाना चाहिये था। 90 के दशक तक भारतीय सिनेमा में नायक के रूप में आम आदमी की छवि दिखाई देती थी लेकिन अब यह आम आदमी सिनेमा से गायब हो गया है। वास्तविकता पर आधारित फिल्में नहीं बनती हैं। यह बात फिल्म निर्माता और लेखक श्री विवेक अग्निहोत्री ने 'लोक-मंथन'' के तीसरे दिन 'भारतीय फिल्मों का बदलता परिदृश्य'' पर आधारित समानान्तर सत्र में कही।

श्री अग्निहोत्री ने कहा कि जीसस पर विदेशी मीडिया ने 1400 छोटी-बड़ी फिल्में अब तक बनाई हैं। हमारे देश के सिनेमा ने गुरू नानक, गौतम बुद्ध, महावीर और गाँधी जैसे महापुरूषों को सिनेमा से दूर रखा। इन लोगों को केटलॉग किया जाना आवश्यक है।

श्री विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि फिल्मों के बदलते परिदृश्य को समझने के पहले फिल्म निर्माताओं में आए बदलाव को देखा जाना चाहिये। पहले फिल्म निर्माता और नायक-नायिकाएँ देश के संकट के समय लोगों की मदद के लिये स्वयं आगे आते थे। लेकिन आज ऐसी स्थिति बन गई है कि उरी हमले के बाद फिल्म निर्माताओं को यह कहने में एक महीना लग जाता है कि वह देश से प्यार करते हैं। उन्होंने कहा कि फिल्मों ने हमेशा वंचित वर्ग और शोषक के बीच की लड़ाई को चित्रित किया है, जिसमें नायक हिंदुस्तान का आम आदमी है। वर्तमान में बन रही फिल्मों में आम आदमी का चेहरा नज़र नहीं आता।

अभिनेत्री और राज्यसभा सदस्य सुश्री रूपा गांगुली ने कहा कि इतिहास से हमेशा हमें अच्छाई लेना चाहिये। फिल्में सच्चाई को बताती हैं। भारत में हम सब तरह के विचारों का सम्मान करते हैं । यहाँ प्रतिबंध लगाने की संस्कृति नहीं रही है। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माता और कुछ नायक-नायिकाएँ प्रचार के लिये इस तरह की बाते कहते हैं जिससे विवाद पैदा हो। इसे हमें समझना चाहिये और तवज्जो नहीं देना चाहिये। उन्होंने कहा कि एनएफडीसी को छोटे और युवा फिल्मकारों और लेखकों को प्रोत्साहित करना चाहिये। काले धन पर केन्द्र सरकार के निर्णय का उल्लेख करते हुए सुश्री गांगुली ने कहा कि इससे फिल्म उद्योग पर अवश्य ही फर्क पड़ेगा, लेकिन देश हित में यह आवश्यक है। इस निर्णय से देश 10 साल आगे चला गया है। उन्होंने कहा कि इस निर्णय के बाद लोग 10, 20 और 50 के नोट की इज्जत करने लगे हैं।

दक्षिण भारतीय फिल्मों के निर्माता श्री टी. एस. नागभर्ण ने कहा कि फिल्मों में पिछले एक दशक में नई तरीके की राष्ट्रीयता देखने में आई है। पहले आज़ादी से जुड़े आंदोलन पर आधारित देश-प्रेम की फिल्में बनाई जाती थीं। आज चक दे इंडिया, लगान और भाग मिल्‍खा भाग जैसी फिल्में बनाई गई हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग अंतरराष्ट्रीय एरीना से जुड़ गया है। वर्तमान काल संक्रमण से गुज़र रहे फिल्म उद्योग का स्वर्णिम काल है।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए फिल्म निर्माता  मधुर भंडारकर ने कहा कि उन्होंने वास्तविकता पर आधारित फिल्में बनाई। आगे वह अपातकाल पर इन्दू सरकार फिल्म बना रहे हैं। उन्होंने 9/11 और 26/11 की घटनाओं का उदहारण देते हुए कहा कि कई बार वास्तविक जीवन में ऐसी घटनाएँ होती हैं, जो कभी फिल्मों में नहीं देखी गईं।

 

Dakhal News 15 November 2016

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