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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की दोस्ती की गांठ अब खुलने लगी है और अखिलेश यादव का ‘पांचवां’ अलायंस टूटने की कगार पर है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब चुनाव से पहले अखिलेश ने किसी दल के साथ गठबंधन किया और चुनाव बाद वो गठबंधन टूटने जा रहा है. समय के साथ-साथ दोनों के रिश्ते में दरार आती जा रही है. ऐसे कई वाक्ये आम तौर पर अब देखने को मिल रहे हैं जो सपा और कांग्रेस की कैमिस्ट्री को बिगाड़ रहे हैं. आइये जानते हैं इनके बारे में…2017 विधानसभा चुनावों की बात करें तो सपा का कांग्रेस से गठबंधन हुआ था, लेकिन चुनाव बाद ‘यूपी के दो लड़कों की जोड़ी’ अलग हो गई थी. इसके बाद 2018 लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया, पर यह भी लंबा नहीं चल सका.
इसी तरह 2019 लोकसभा चुनाव में सालों पुरानी दुश्मनी भूलकर बसपा सुप्रीमो मायावती से समाजवादी पार्टी का गठबंधन हुआ. उस समय सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी मौजूद थे. मायावती ने बाकायदा मुलायम सिंह यादव के लिए प्रचार भी किया था. यहां तक की उस चुनाव में मायावती ने सपा उम्मीदवार को वोट देने की बात भी कही थी, लेकिन इस गठबंधन की गांठें भी चुनाव के नतीजे आने के बाद खुल गई थी. इसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ आकर सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने चुनाव लड़ा था. अब इंडिया गठबंधन इस तरह से ऐसा पांचवा गठबंधन होगा जो चुनाव से पहले बना और चुनाव के बाद टूटने के कगार पर आ गया है.
लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में बीजेपी की विजयी रथ की हवा निकालने वाले इंडिया गठबंधन में करीब 6 महीने के अंदर ही दरार पड़ती दिख रही है. यह दरार संसद सत्र की शुरुआत के बाद और ज्यादा बढ़ गई है. यहां कांग्रेस और सपा के रिश्ते दिनों दिन बिगड़ रहे हैं. संसद में अखिलेश यादव का थैंक यू कांग्रेस कहकर तंज कसना. रामगोपाल यादव का राहुल गांधी के दौरे को फॉर्मेलिटी करार देना. संसद में विपक्ष की आगे की सीट में से अवधेश प्रसाद की सीट को पीछे कर देना. उसके बाद आजम खान का समाजवादी पार्टी पर जेल से लिखी चिट्ठी के जरिए खुलकर हमला बोल देना और और संभल व हाथरस में राहुल गांधी का मुसलमान और दलितों के बीच जाना. ये ऐसे मामले हैं जो सपा और कांग्रेस की केमिस्ट्री को बिगाड़ रहे हैं.
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