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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर प्रिंसिपल पीठ ने एक मामले की सुनवाई में बेहद अहम फैसला सुनाते हुये स्पष्ट किया है कि आरटीआई अधिनियम के तहत लोक सेवकों के वेतन की जानकारी देना अनिवार्य है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने लोक सेवकों के वेतन की सूचना देने से इंकार करने के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया।
हाई कोर्ट ने कहा कि लोकसेवकों के वेतन की जानकारी सार्वजनिक महत्व की है, जिसे गोपनीय नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने सूचना आयोग और लोक सूचना अधिकारी के पूर्व में पारित उन आदेशों को भी निरस्त कर दिया, जिसमें वेतन की जानकारी को गोपनीय बताते हुये नहीं दिये जाने का जिक्र था। हाईकोर्ट (Jabalpur High Court News) ने याची को जानकारी एक माह में जानकारी प्रदान करने के निर्देश दिए है।
छिंदवाड़ा के आरटीआई एक्टिविस्ट ने मांगी थी जानकारी
दरअसल छिंदवाड़ा वन परिक्षेत्र में कार्यरत दो कर्मचारियों के वेतन भुगतान की जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट एम. एम. शर्मा ने आरटीआई दायर कर मांगी थी। लोक सूचना अधिकारी ने इस जानकारी को निजी और तृतीय पक्ष की सूचना बताते हुए देने से इंकार कर दिया था। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1) (जे) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि संबंधित कर्मचारियों से सहमति मांगी गई थी, लेकिन कोई उत्तर न मिलने के कारण जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती।
कोर्ट ने कहा, लोक सेवकों को वेतन सार्वजनिक धन से मिलता है
आरटीआई पर दिए गए इस जवाब को एमएम शर्मा की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट की जबपलुर प्रिंसिपल पीठ (Jabalpur High Court News) में न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई की। सुनवाी के दौरान याची की ओर से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने कोर्ट में दलील दी कि लोक सेवकों के वेतन की जानकारी सार्वजनिक है। इसे आरटीआइ अधिनियम की धारा 4 के तहत प्रदान किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा कि लोक सेवकों को वेतन सार्वजनिक धन से दिया जाता है, लिहाजा इसे गोपनीय बताकर छिपाना गलत है। हाईकोर्ट ने याची को जानकारी एक माह में जानकारी प्रदान करने के निर्देश दिए है।
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