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हाटपिपल्या माइक्रो सिंचाई परियोजना को लेकर किसानों और प्रशासन के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। झिकड़ाखेड़ा क्षेत्र के किसान प्रशासन के निर्णय के विरोध में पिछले चार दिनों से बागली में विधायक निवास के बाहर धरना दे रहे हैं। किसानों का मुख्य विरोध नए तालाब के निर्माण को लेकर है। उनका मानना है कि नए तालाब के निर्माण से उनकी जमीनें डूब जाएंगी और उन्हें काफी नुकसान होगा। वे मौजूदा कूप तालाब के विस्तार की मांग कर रहे हैं।
बुधवार को कलेक्टर ऋषभ गुप्ता ने किसानों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि झिकड़ाखेड़ा क्षेत्र में फिलहाल कोई सर्वे नहीं किया जाएगा। हालांकि, किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे अपना आंदोलन और व्यापक बनाएंगे।
यह मुद्दा कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह सीधे किसानों के जीवन को प्रभावित करता है। अगर नए तालाब के निर्माण से किसानों की जमीनें डूबती हैं तो वे बेरोजगार हो जाएंगे। दूसरा, यह विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन का मुद्दा उठाता है। सिंचाई परियोजनाओं का उद्देश्य कृषि उत्पादन बढ़ाना है, लेकिन साथ ही यह पर्यावरण पर भी प्रभाव डालती है। तीसरा, यह प्रशासन और किसानों के बीच संबंधों को प्रभावित करता है।
यह मुद्दा दिखाता है कि विकास के काम करते समय किसानों की भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण है। प्रशासन को किसानों को विकास प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए और उनके सुझावों पर विचार करना चाहिए। दोनों पक्षों को एक साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए और एक ऐसा समाधान ढूंढना चाहिए जिससे सभी पक्षों का हित सुरक्षित रहे।
यह मामला कई सवाल खड़े करता है: क्या प्रशासन ने किसानों की आवाज को सुना है? क्या प्रशासन ने किसानों के साथ पर्याप्त परामर्श किया है? क्या नए तालाब के निर्माण से किसानों को होने वाले नुकसान का कोई वैकल्पिक समाधान है?
यह मामला सिर्फ हाटपिपल्या तक सीमित नहीं है। देश के कई हिस्सों में सिंचाई परियोजनाओं को लेकर किसानों और प्रशासन के बीच विवाद होते रहते हैं। इन विवादों का समाधान ढूंढना बहुत जरूरी है, ताकि किसानों का हित सुरक्षित रहे और साथ ही देश का विकास भी हो सके।
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