रिसर्चर्स बोले- चंद्रयान-3 चंद्रमा के सबसे पुराने क्रेटर पर उतरा
Researchers said – Chandrayaan-3

चंद्र मिशन और सैटलाइट्स की तस्वीरों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि चंद्रयान-3 चंद्रमा के सबसे पुराने क्रेटर्स में से एक मेंउतरा। वैज्ञानिकों की टीम में अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी एंड इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के रिसर्चर्स भी शामिल हैं।

फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी के प्लैनेटरी साइंस डिवीजन में एसोसिएट प्रोफेसर एस विजयन ने बताया कि यह क्रेटर 3.85 अरब साल पहले​​ नेक्टेरियन काल के दौरान बना था। नेक्टेरियन काल चंद्रमा के इतिहास में सबसे पुराने समय काल में से एक है।

एस विजयन ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया कि चंद्रयान-3 लैंडिंग साइट एक यूनिक जियोलॉजिकल सेटिंग है। वहां इससे पहले कोई दूसरा मिशन नहीं गया है। चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर की तस्वीरें इस लैटिट्यूड पर चंद्रमा की पहली तस्वीरें हैं। तस्वीरें से पता चलता है कि चंद्रमा समय के साथ कैसे बदला है।

भारत ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई, 2023 को 3 बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। 22 दिन बाद 5 अगस्त को यह चंद्रमा के ऑर्बिट में पहुंचा था। चंद्रयान-3 ने लॉन्च होने के 41वें 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंडिंग की। इसी के साथ भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन गया।

क्रेटर क्या है और कैसे बनता है

किसी भी ग्रह, उपग्रह या अन्य खगोलीय वस्तु पर बड़े गड्ढे को क्रेटर कहा जाता है। ये क्रेटर ज्वालामुखी विस्फोट से बनते हैं। इसके अलावा किसी उल्का पिंड के किसी अन्य पिंड से टकराने से भी क्रेटर बनते हैं। गड्ढे से बाहर निकले सामान को इजेक्टा कहते हैं।

एस विजयन ने कहा कि इजेक्टा का बनना उसी तरह है जब आप एक गेंद को रेत पर फेंकते हैं और उसमें से कुछ रेत वहां से खाली हो जाता है। वह रेत बाहर की ओर एक छोटे ढेर में बदल जाता है।

चंद्रयान-3 से भेजी तस्वीरों से पता चला कि क्रेटर का आधा हिस्सा चंद्रमा पर सबसे बड़े और सबसे नामी बेसिन साउथ पोल-एटकेन बेसिन से बाहर फेंकी गई या निकली सामग्री के नीचे दबा हुआ था।

 

Dakhal News 29 September 2024

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