पितृपक्ष में पैसे न हों तो श्रद्धाभाव से ऐसे करें श्राद्ध, पितृ होंगे प्रसन्न
If there is no money in Pitru Paksha

पितृपक्ष का समय पितरों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. मृत पितरों के निमित्त श्राद्ध करना प्रचीन हिंदू परंपरा है. श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है. पितरों के निमित्त श्राद्ध. पिंडदान (Pind Daan) या तर्पण (Tarpan) करने के लिए पितृपक्ष के समय को सबसे उत्तम माना जाता है.

पितृपक्ष की शुरुआत होते ही लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए और उन्हें तृप्त करने के लिए तीर्थस्थलों जैसे गया जी, हरिद्वार, काशी, ऋषिकेश और प्रयादराज आदि जैसे जगहों पर पहुंचने लगते हैं. मान्यता है कि तीर्थस्थलों में किए गए श्राद्ध से पितृ तृप्त और प्रसन्न होते हैं.

लेकिन अगर आप किसी तीर्थस्थल जाने के लिए आर्थिक रूप से समर्थ नहीं हैं तो चिंता न करें. आप कुछ विशेष विधि का पालन कर घर पर भी पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म कर सकते हैं. हमारे सनातन धर्म की यही खूबसूरती है कि इसमें प्रत्येक वर्ग की हर परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए नियम और व्यवस्थाओं का निर्धारण किया गया है. ज्योतिषाचार्य और भविष्यवक्ता अनीष व्यास से जानते हैं, धन के अभाव या विपन्नता पर कैसे करें पितृरों का श्राद्धकर्म-

“तस्माच्छ्राद्धं नरो भक्त्या शाकैरपि यथाविधि।”

शास्त्रों के अनुसार, अन्न-वस्त्र के लिए धन का अभाव होने पर शाक यानी हरी सब्जियों से भी श्राद्ध किया जा सकता है. लेकिन सब्जियों द्वारा भी श्राद्ध करने में असमर्थ हों तो दक्षिणामुखी होकर दोनों भुजाओं को ऊपर ऊठाकर ये प्रार्थना कर लें...

प्रार्थना-

“न मेस्ति वित्तं धनं च नान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्न्तो स्मि।

तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वत्र्मनि मारुतस्य।।” (विष्णु पुराण)

अर्थ है:- हे मेरे पितृरों! मेरे पास श्राद्ध कर्म के लिए न हो उपयुक्त धन है और न धान्य. लेकिन मेरे पास आपके लिए अपार श्रद्धा-भक्ति है. इसलिए मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं. मैंने शास्त्रानुसार दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है.

 

 

Dakhal News 27 September 2024

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