महाकाल की शाही सवारी के 5 किरदार:भगवान चंद्रमौलेश्वर में प्राण डालते हैं पुजारी
5 characters of Mahakal

भगवान महाकाल की आज शाही और भादो महीने की आखिरी सवारी निकाली जाएगी। इसका स्वरूप बाकी सवारियों से भव्य रहता है। करीब दो किलोमीटर लंबी सवारी में 70 भजन मंडलियां, चार बैंड, झांकियां, जनजातीय लोक कलाकारों के दल, महाकाल के पांचों स्वरूप, CISF की सशस्त्र टुकड़ी समेत अन्य लोग नाचते-गाते चलेंगे।

असल में, इस भव्यता के पीछे महाकाल के प्रति भक्तों का समर्पण, भक्ति भाव और मेहनत होती है। इनमें भी पांच मैनेजर ऐसे हैं, जिनके ऊपर सवारी का पूरा दारोमदार होता है। मंदिर से सवारी निकलने से लेकर वापस आने तक नियम, परंपरा, प्रोटोकाॅल और राजशाही वैभव का ख्याल रखा जाता है।

दैनिक भास्कर ने इन्हीं किरदारों से बात की। जाना कि सवारी की तैयारी कब से और कैसे की जाती है? किसकी, क्या जिम्मेदारी होती है? वे इसे किस तरह निभाते हैं? क्या चुनौतियां आती हैं?

सबसे पहले मंदिर के सभा मंडप में लय-विलय पूजन होता है। महाकाल से निवेदन किया जाता है कि आप इस मूर्ति में विराजमान हो जाइए। इसके बाद पुजारी चंद्रमौलेश्वर भगवान की मूर्ति गोद में लेकर पालकी में विराजित कर देते हैं।सवारी नगर भ्रमण कर जब वापस मंदिर लौटती है, दोबारा यही पूजन होता है।

इस बार चंद्रमौलेश्वर भगवान की मूर्ति से इसी तरह निवेदन कर महाकाल को प्राण अर्पित कर दिए जाते हैं। इसे बाणलिंग पूजन भी कहते हैं। मंदिर के आशीष पुजारी बताते हैं कि सभा मंडप में पूजन मंदिर समिति के मुख्य पुजारी के परिवार की ओर से किया जाता है। इसमें बाबा महाकाल के प्राण को चंद्रमौलेश्वर की मूर्ति में डालना और फिर सवारी लौटने पर फिर से महाकाल में प्राण वापस करने की प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

आशीष पुजारी ने बताया कि सवारी के दौरान पुजारी, पुरोहित और उनके प्रतिनिधि पालकी के साथ चलते हैं। शिप्रा नदी पर पूजन के बाद मंदिर में सवारी लौटने तक साथ रहते हैं। यहां सभा मंडप में फिर से पूजन होता है। गर्भगृह के पट बंद होने से पहले, लय और विलय की परंपरा होती है।

सवारी में पालकी आने से पहले धमाका सुनाई देता है। ये कड़ाबीन चलाने वाले पांच लोग पीढ़ियों से सेवा देते आ रहे हैं। रमेश कहार, प्रकाश कहार, सुभाष रिजवानिया, नीलेश बैरागी, नंदू मालवीय पालकी के आगे चलते हैं। इन्हीं के कड़ाबीन से निकलने वाली धमाके की आवाज से श्रद्धालुओं को पता चलता है कि बाबा महाकाल की पालकी आ रही है।

जिस तरह राजा के लिए तोपों की सलामी दी जाती थी, उसी तरह भगवान महाकाल की पालकी का वैभव परंपरा के अनुसार उसके आगे कड़ाबीन आगाज करते चलते हैं कि बाबा नगर भ्रमण पर हैं।

प्रकाश कहार ने बताया कि कड़ाबीन चलाने के लिए हर बार 100 ग्राम बारूद लगता है। सभी को एक-एक किलो बारूद मंदिर समिति की ओर से मिलता था। अभी इस बार से सवारी के लिए 400 ग्राम मिलने लगा है। इसके लिए बाकायदा लाइसेंस ले रखा है। सारा काम छोड़कर मुफ्त सेवा देते हैं।

शाही सवारी में एक श्रीफल और साफा बांधा जाता है। रूट लंबा होने से कुल 20 किलो बारूद लगेगा। कड़ाबीन से निकलने वाली आवाज करीब एक किमी दूर तक सुनाई देती है, जिससे पता चल जाता है कि बाबा की पालकी आ रही है।

शाही सवारी में अहम भूमिका होती है रस्सा पार्टी की। इसका काम पालकी के आसपास भीड़ को नियंत्रित कर सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना होता है। करीब 100 किलो के 100 फीट के रस्से को खींचने के लिए 60 पुलिसकर्मी तैनात होते हैं। इस रस्से के लिए ताकत और टेक्नीक दोनों लगती है।

खास बात ये है कि रस्सा चलाने वाले एक टीआई नरेंद्र सिंह परिहार करीब 32 साल से सवारी में सेवा देने आ रहे हैं। वे भले ही प्रदेश में कहीं भी तैनात हों, लेकिन विशेष डिमांड पर उनकी सेवा ली जाती है।

इसी तरह, महाकाल थाने के ASI चंद्रभान सिंह भी 21 साल से रस्सा पार्टी और पालकी की सुरक्षा में तैनात हैं। चंद्रभान कहीं भी पोस्टेड हों, सवारी के दौरान उन्हें बुलाया जाता है। चंद्रभान सिंह ने बताया, ‘बाबा की सेवा से बड़ा कुछ नहीं हो सकता। पालकी के आसपास चलने वाले रस्से को तालमेल से गोलाई से चलाया जाता है।'

रस्सा खींचने के लिए 15 अनुभवी अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें हर बार महाकाल की सेवा के लिए बुलाया जाता है। इनमें DSP किरण शर्मा, ASI लोकेन्द्र सिंह, कॉन्स्टेबल इंद्र विक्रम सिंह, रानी कौशिक जैसे पुलिसकर्मी सेवा देने आते हैं। शाही सवारी के बाद उज्जैन रेंज IG रस्सा पार्टी को इनाम भी देते हैं।

Dakhal News 2 September 2024

Comments

Be First To Comment....

Video
x
This website is using cookies. More info. Accept
All Rights Reserved © 2024 Dakhal News.