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भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में करीब सौ वर्ष से अधिक समय से चली आ रही परंपरा निभाई जाती है। यहां पर जन्माष्टमी पर रात्रि 12 बजे आरती होने के बाद फिर शयन आरती नहीं की जाती है।
कारण है कि जन्म के बाद कन्हैया के सोने - उठने का समय निर्धारित नहीं होता है। चार दिन तक सेवा पूजा के बाद 30 अगस्त को बछ बारस पर दोपहर 12 बजे शयन आरती होगी। वर्ष में एक बार दोपहर में यहां शयन आरती की जाती है।
शहर के प्राचीन सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के गोपाल मंदिर में राजवंश परंपरा के अनुसार सोमवार को जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई गई। मध्यरात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर आरती के बाद देर रात दो बजे तक दर्शन हुए। रात्रि में ही सीएम डॉ. मोहन यादव ने भी मंदिर पहुंचकर भगवान के दर्शन किए।
मंदिर के पुजारी मधुर शर्मा ने बताया कि जन्माष्टमी पर रात्रि में जन्म आरती के बाद अब चार दिन भगवान की शयन आरती नहीं होगी। 30 अगस्त को बछ बारस पर दोपहर में मंदिर के द्वार पर माखन मटकी फूटने के बाद भगवान की आरती होगी। इसके बाद शयन आरती का क्रम शुरू होगा।
मंदिर की यह परंपरा 100 साल से अधिक समय से चली आ रही है। भगवान गोपाल कृष्ण का जन्म होने के बाद उनके सोने और उठने का समय निर्धारित नहीं होने से शयन आरती नहीं होती है। इन दिनों में बाल गोपाल को दूध, माखन आदि का नियमित भोग लगाया जाता है।
मान्यता के अनुसार, बछ बारस पर भगवान बड़े हो जाते हैं। इस दिन सुबह अभिषेक पूजन के बाद उन्हें चांदी की पादुका पहनाई जाती है। इसके बाद भगवान मंदिर के मुख्य द्वार पर बांधी गई माखन मटकी फोड़ते हैं। इसके पश्चात दोपहर में शयन आरती होती है। साल में एक बार यह अवसर आता है, जब दिन में भगवान की शयन आरती की जाती है।
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