भोपाल के नरेला गांव में हर घर में फौजी
Soldiers in every house in Narela village

राजधानी भोपाल से करीब 25 किलोमीटर दूर रातीबड़ से दाएं तरफ सिकंदराबाद गांव होते हुए एक पक्की सड़क नरेला गांव पहुंचती है। करीब 100 घरों वाले इस गांव में हर घर से कोई ना कोई सैनिक है। कोई सेना में है, कोई CRPF में, तो कोई जिला पुलिस बल में।

ग्रामीणों और गांव के सरपंच प्रतिनिधि का दावा है कि पूरे भोपाल जिले में नरेला एकमात्र गांव है, जहां के हर घर का बेटा सैनिक है। स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ के मौके पर दैनिक भास्कर फौजियों के इस गांव पहुंचा।

नरेला गांव के खेतों में ही कई पक्के मकान बने हुए हैं। गांव के बीच में बने मंदिर पर जब हम पहुंचे, तो कुछ बुजुर्ग बैठे हुए थे। उनसे पूछा तो पता चला कि इस गांव के ओम करण वर्मा CRPF में भर्ती हुए थे, और साल 2000 में श्रीनगर में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे।

ओम की शहादत के बाद गांव के नौजवानों में देश प्रेम का ऐसा जज्बा जगा कि अब इस गांव के हर घर से एक ना एक सदस्य सेना, अर्द्धसैनिक बल, जिला पुलिस बल में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहा है।

भाई के शहीद होने की खबर दो दिन बाद पहुंची

नरेला गांव के शहीद ओम करण वर्मा के घर पहुंचे तो उनकी मां माला जप रहीं थीं। आवाज लगाने पर ओम करण के छोटे भाई श्याम करण वर्मा घर से बाहर आए। उन्होंने बताया कि, 'भाई साहब गांव में सबसे पहले CRPF में भर्ती होने वाले जवान थे। उनके बाद मुझे भी लगा कि मैं भी प्रयास करूं।'

'दो साल बाद मैं भी फौज में भर्ती हो गया। साल 2000 की बात है। भाई साहब आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके शहीद होने की खबर भी दो दिन बाद घर पहुंची। मैं उस समय फौज की ड्यूटी पर था। मेरे पास भी भाई साहब के शहीद होने की खबर 20 दिन बाद पोस्ट कार्ड के जरिए पहुंची।'

'उनके शहीद होने के बाद इस गांव के बच्चों में देशभक्ति की ऐसी अलख जगी, कि अब हमारे गांव में हर घर का बेटा सैनिक के रूप में देश की रक्षा कर रहा है।'

दो भाई, दोनों फौजी...छोटी उम्र से ही तैयारी

आर्मी के पटियाला केंट के EME कोर में पदस्थ आकाश प्रजापति ने कहा, 'हमारे गांव के बच्चे हम लोगों को देखते हैं, या छोटी उम्र में हम लोगों ने किसी और को देखा है। हमारे यहां स्पोर्ट्स एक्टिविटी तो कम होती हैं लेकिन, हमारे यहां के बच्चे पढ़ाई के साथ ही फिजिकल की तैयारी शुरू कर देते हैं।'

'मेरे बडे़ भाई भी दस साल से फौज में हैं। एक और बडे़ भाई भी फौज में रह चुके हैं। चाचा भी सैनिक हैं। उन्हें देखकर हम लोग भी प्रेरित हुए। 10-12वीं के बाद गांव के नौजवान पूरी तरह से फौज में जाने की तैयारी में जुट जाते हैं।'

'पहले से पता है कि कैसे तैयारी करनी है। हमारे यहां के बच्चे 5वीं-6वीं से तैयारी में लग जाते हैं। हमारे यहां का हर बच्चा फिजिकली फिट मिलेगा। यहां पर स्कूल नहीं है। गांव में जो स्कूल था, वो भी 5-6 साल पहले बंद हो गया। अब तीन-चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।'

खुद नहीं बन पाए, भतीजों-इकलौते बेटे को सैनिक बनाया

गांव के शिव प्रसाद वर्मा बताते हैं कि, 'मेरा एक बेटा और तीन बेटियां हैं। बेटा आर्मी में इलाहाबाद में पदस्थ है। अपने जमाने में मैंने खुद फौज में जाने की तैयारी की थी। मैं नहीं जा पाया तो फिर भतीजों को तैयारी कराई। हमारे जमाने में बस नहीं चलती थी, तो टाइम पर नहीं पहुंच पाए। भतीजों को तैयार किया। अब तीन भतीजे भी फौज में हैं।'

जिस घर की तरफ उंगली का इशारा करेंगे, एक फौजी मिलेगा

विष्णु प्रसाद सेन बताते हैं कि, 'मेरे दो बेटे हैं एक पुलिस में हैं और दूसरा नेवी में केरल में पोस्टेड है। बच्चों ने खुद देशसेवा की राह चुनी। मैं पोस्ट ऑफिस में था। दोनों को लेकर जाता था, वापस लाता था। आउट साइडर के तौर पर काम किया और उनको पढ़ाया। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में पोस्ट ऑफिस का योगदान है।'

'अगर पोस्ट ऑफिस नहीं होता तो उनको नहीं पढ़ा पाता। घर की माली हालत कमजोर थी। सुबह 5 बजे देखेंगे तो गांव की सड़क पर बच्चे दौड़ते नजर आएंगे। आप गांव के किसी भी घर की तरफ उंगली का इशारा करेंगे तो आपको फौजी मिलेगा।'

गांव में शहीद का स्मारक बनवाए सरकार

गांव के बाबूलाल मस्ताना कहते हैं, 'यहां हर घर से एक-दो लोग देश की सेवा कर रहे हैं। एक बच्चा शहीद भी हुआ। उसका आज तक स्मारक नहीं बना। हम ये चाहते हैं कि उसका स्मारक बने, ताकि आने वाली पीढ़ी उससे प्रेरणा ले। गांव के बच्चों में बड़ा जुनून है। सुबह 4-5 बजे उठते हैं। रोड पर दौड़ते, व्यायाम करते हैं। एक बच्चा गया तो दूसरे बच्चों में भी उमंग आई।'

'सरकार से मेरी प्रार्थना है कि हमारे गांव का जो बच्चा शहीद हुआ है, उसे इतने साल हो गए। उसका गांव के मैदान में स्मारक बनाया जाए। हमारा गांव भोपाल जिले में पहला गांव है, जहां हर घर से कोई आर्मी में है, कोई CRPF, SAF, पुलिस में हैं। सरकार की तरफ से गांव को कोई सम्मान नहीं मिला। अगर स्मारक बनना है या जमीन चाहिए तो वह सरकार ही देगी।'

एक बेटी भी बनी सेना में अफसर

ग्रामीण बाबूलाल वर्मा बताते हैं कि, 'हमारी एक भतीजी फौज में हैं। एक भतीजा पुलिस में, एक फौज में और एक CRPFमें है। भतीजी फौज में अधिकारी है। हमारी भतीजी गांव की पहली बेटी है जो फौज में गई है।'

गांव की सीमा पर बनवाएंगे सैनिक द्वार

सरपंच प्रतिनिधि राजेश वर्मा कहते हैं कि, 'भोपाल और सीहोर दोनों जिलों में हमारा नरेला गांव एकमात्र ऐसा गांव है, जिसके हर घर में कोई ना कोई सैनिक है। हमारे गांव के बच्चे सुबह शाम प्रैक्टिस करते हैं।'

'मेरा भतीजा खुद फौज में हैं। गांव के जो फौजी रिटायर होते हैं, वे बच्चों को गाइड करते हैं। ऐसे हमारे गांव में परंपरागत रूप से फौजी तैयार हो रहे हैं। अब हम अपने गांव की सीमा पर सैनिक द्वार बनवाने जा रहे हैं।'

Dakhal News 15 August 2024

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