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संत समीर-
मुझे लग रहा था कि बात हल्की-फुल्की होगी, जल्दी सुलझ जाएगी, इसलिए इस मसले पर अब तक कोई पोस्ट नहीं लिखी, लेकिन अब लग रहा है कि मामला गम्भीर है। बीते दिनों इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार मित्र श्यामलाल यादव जी का फ़ोन आया तो चिन्ता और बढ़ी। पुलिस विभाग की ओर से तो ख़ैर पहले ही फ़ोन आ गया था। दिल्ली के सूचना और प्रचार निदेशालय के उपनिदेशक नलिन चौहान क़रीब दो महीने पहले 10 दिसम्बर से लापता हैं या जानबूझकर कहीं गए हैं, कुछ भी अन्दाज़ लगाना मुश्किल हो रहा है।
नवम्बर में उनका पूरा परिवार कोरोना-ग्रस्त हुआ था। लोगों ने ले जाकर अस्पताल में भर्ती करा दिया तो वहीं से उन्होंने मुझे फ़ोन किया था। मैंने कुछ चिकित्सकीय सुझाव दिए थे और अच्छी बात थी कि वे जल्दी ही स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर भी आ गए थे। जहाँ तक मुझे याद है, 8 दिसम्बर को नलिन जी ने फिर से मुझे फ़ोन किया था और लिखने की एक बड़ी योजना पर मेरे साथ मिलकर काम करना चाहते थे। हमने हफ़्ते भर के भीतर आमने-सामने बैठकर चर्चा करने का भी तय कर लिया था, लेकिन 10 दिसम्बर को एक पारिवारिक समारोह के दौरान जाने क्या हुआ कि शाम को फ़ोन घर पर ही छोड़कर टहलते हुए बाहर निकले और अब तक वापस नहीं लौटे।
घर के भीतर आपस में कोई कहा-सुनी हुई थी या घर के बाहर अपहरण जैसी कोई घटना हुई, कुछ भी कहना मुश्किल है। मैं यही मानकर चलता हूँ कि हल्की-फुल्की कोई नाराज़गी होगी और वे जल्दी ही वापस आ जाएँगे, लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो नलिन जी को तलाशने की हमें कुछ बड़ी कोशिश करने की ज़रूरत है। नलिन जी बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं, दुनिया-जहान की चिन्ता करते हैं। ऐसे लोगों के आसपास होने से हमारे जैसे लोगों को भी हौसला मिलता है।
नलिन जी, अगर आप सचमुच किसी नाराज़गी की वजह से अपनों से दूर गए हों और इस पोस्ट को पढ़ रहे हों, तो ध्यान रखिए कि परिवार के बाहर भी आपके अपने हैं। मुझे लगता है कि आप एक अच्छे परिवार के मुखिया हैं, फिर भी अगर परिवार से नाराज़गी हो तो परिवार को भी छोड़िए और सामने आइए। हम सब तो हैं ही। परिवार समर्थ है अपने हिसाब से रह लेगा, आपके सोच-विचार की ज़रूरत समाज को ज़्यादा है।
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