Dakhal News
18 March 2024रवि प्रकाश-
आप पत्रकारिता में हमारे हीरो थे। लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ते थे। ईमानदार थे। शानदार पत्रकारिता करते थे। ‘जनता’ और ‘सरकार’ में आप हमेशा जनता के पक्ष में खड़े हुए। आपको इतना मज़बूर (?) पहले कभी नहीं देखा। अब आप अच्छे मौसम वैज्ञानिक हैं। आपको दीर्घ जीवन और सुंदर स्वास्थ्य की शुभकामनाएँ सर। आप और तरक़्क़ी करें। हमारे बॉस रहते हुए आपने हर शिकायत पर दोनों पक्षों को साथ बैठाकर हमारी बातें सुनी। हर फ़ैसला न्यायोचित किया। आज आपने एक पक्ष को सुना ही नहीं, जबकि उसको सुनना आपकी जवाबदेही थी।
आप ऐसा कैसे कर गए सर?
यक़ीन नहीं हो रहा कि आपने लोकतंत्र के बुनियादी नियमों की अवहेलना की।
क़रीब दस साल पहले एक बड़े अख़बार के मालिक से रुबरू था। इंटरव्यू के वास्ते। उन्होंने पूछा कि आप क्या बनना चाहते हैं। जवाब में मैंने आपका नाम लिया। वे झल्ला गए। उन्होने मुझे डिप्टी एडिटर की नौकरी तो दे दी, लेकिन वह साथ कम दिनों का रहा। क्योंकि, हम आपकी तरह बनना चाहते थे। लेकिन आज…!
एक बार झारखंड के एक मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लाने के लिए सरकारी हेलिकॉप्टर भेजा। आपने पहले पन्ने पर खबर छापी। बाद में उसी पार्टी के एक और मुख्यमंत्री हर सप्ताहांत पर सरकारी हेलिकॉप्टर से ‘घर’ जाते रहे। आपका अख़बार चुप रहा।
हमें तभी समझना चाहिए था।
आपके बहुत एहसान हैं। हम मिडिल क्लास लोग एहसान नहीं भूलते। कैसे भूलेंगे कि पहली बार संपादक आपने ही बनाया था। लेकिन, यह भी नहीं भूल सकते कि आपके अख़बार ने बिहार में उस मुख्यमंत्री की तुलना चंद्रगुप्त मौर्य से की, जिसने बाद में आपको राज्यसभा भेजकर उपकृत किया।
आपकी कहानियाँ हममें जोश भरती थीं। हम लोग गिफ़्ट नहीं लेते थे। (कलम-डायरी छोड़कर) यह हमारी आचार संहिता थी। लेकिन, आपकी नाक के नीचे से एक सज्जन सूचना आयोग चले गए। आपने फिर भी उन्हें दफ़्तर में बैठने की छूट दी। जबकि आपको उन पर कार्रवाई करनी थी। यह आपकी आचार संहिता के विपरीत कृत्य था।
बाद में आप खुद राज्यसभा गए। यह आपकी आचार संहिता के खिलाफ बात थी।
ख़ैर, आपके प्रति मन में बहुत आदर है। लेकिन, आज आपने संसदीय नियमों को ताक पर रखा।
भारत के इतिहास में अब आप गलत वजहों के लिए याद किए जाएँगे सर। शायद आपको भी इसका भान हो। संसद की कार्यवाही की रिकार्डिंग फिर से देखिएगा। आप नज़रें ‘झुकाकर’ बिल से संबंधित दस्तावेज़ पढ़ते रहे। सामने देखा भी नहीं और उसे ध्वनिमत से पारित कर दिया।
संसदीय इतिहास में ‘पाल’ ‘बरुआ’ और ‘त्रिपाठी’ जैसे लोग भी हुए हैं। आप भी अब उसी क़तार में खड़े हैं। आपको वहाँ देखकर ठीक नहीं लग रहा है सर। हो सके तो हमारे हीरो बने रहने की वजहें तलाशिए। शुभ रात्रि सर।
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21 September 2020
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