नये लोगों को आगे बढ़ाये कांग्रेस
bhopal,  Congress should lead new people

रमेश सर्राफ धमोरा

 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस सकते में है। दिल्ली के सिंहासन पर वर्षों एकछत्र राज करने वाली पार्टी कांग्रेस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि दिल्ली में उसे इतनी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ेगा। उसके तीन उम्मीदवारों को छोड़ बाकी सभी की जमानत तक जब्त हो जायेगी। पिछली बार की तरह इसबार भी दिल्ली में कांग्रेस अपना खाता खोलने में नाकाम रही। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत पर भी कांग्रेस नेता खुश नजर आ रहे हैं। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा कि `आप की जीत हुई और धोखेबाज हार गये। दिल्ली के लोग जो कि भारत के सभी हिस्सों से ताल्लुक रखते हैं उन्होंने भाजपा के ध्रुवीकरण, विभाजनकारी और खतरनाक एजेंडे को हरा दिया। मैं दिल्ली के लोगों को सेल्यूट करता हूं। जिन्होंने उन राज्यों के लोगों के लिए एक उदाहरण पेश किया है, जहां 2021 और 2022 में चुनाव होने वाले हैं।'

पी. चिदंबरम के ट्वीट पर दिल्ली महिला कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने पी. चिदंबरम पर निशाना साधते हुये दिल्ली में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर नेतृत्व पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने ट्वीट किया-`क्या कांग्रेस ने भाजपा को हराने का काम क्षेत्रीय दलों को आउटसोर्स कर दिया है? यदि ऐसा नहीं है तो हम अपनी करारी हार की चिंता करने के स्थान पर आम आदमी पार्टी की जीत पर खुशी क्यों मना रहे हैं? और अगर इसका जवाब हां में है तो हमें अपनी (प्रदेश कांग्रेस समितियां) दुकान बंद कर देनी चाहिए।' शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा था कि `शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में देरी और एकजुटता की कमी के कारण यह शिकस्त हुई है। हम दिल्ली में फिर हार गए। आत्ममंथन बहुत हुआ, अब कार्रवाई का समय है। उन्होंने सवाल किया कि अगर भाजपा विभाजनकारी राजनीति कर रही है। केजरीवाल स्मार्ट पॉलिटिक्स कर रहे हैं तो हम क्या कर रहे हैं? क्या हम ईमानदारी से कह सकते हैं कि हमने घर को व्यवस्थित रखने के लिए पूरा प्रयास किया?'

शर्मिष्ठा मुखर्जी के बयान के बाद कांग्रेस में कपिल सिब्बल जैसे बयान वीर नेताओं को मानो सांप सूंघ गया। किसी ने भी मुखर्जी की बात काटने की हिम्मत नहीं दिखायी। उलटे मिलिंद देवड़ा, जयराम रमेश ने मुखर्जी के बयान का समर्थन किया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद लगता है कि कांग्रेस के लिए 2020 का साल अच्छा नहीं रहेगा। इसी साल बिहार विधानसभा के भी चुनाव होने हैं, जहां भाजपा जनता दल (यू) का मजबूत गठबंधन सरकार में है। उसके मुकाबले बिहार में कांग्रेस कुछ खास कर पाएगी, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। इसी वर्ष 73 राज्यसभा सीटों के चुनाव भी होने हैं। राज्यसभा सीटों के चुनाव में भी कांग्रेस को लाभ होता नहीं दिख रहा है। राज्यसभा में फिलहाल कांग्रेस के पास 46 सीटें हैं। इस साल राज्यसभा में कांग्रेस की 17 सीटें खाली होंगी उनमें से कांग्रेस 11 सीटें ही जीत पाएगी। इस तरह देखें तो कांग्रेस को राज्यसभा में छह सीटों का नुकसान होने वाला है। हालांकि कांग्रेस को राजस्थान में दो, मध्य प्रदेश में एक, छत्तीसगढ़ में दो व गुजरात में एक सीट का फायदा होगा। लेकिन उसे आंध्र प्रदेश में दो, अरुणाचल प्रदेश में एक, असम में एक, हिमाचल प्रदेश में एक, कर्नाटक में एक, उत्तर प्रदेश में एक, उत्तराखंड में एक, मेघालय में एक, मिजोरम में एक व ओडीशा में एक सीट का घाटा भी होगा।

इस वर्ष के राज्यसभा चुनाव के बाद कांग्रेस आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गोवा, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, ओडीशा, दिल्ली, पुड्डुचेरी सहित 11 प्रदेशों में पूरी तरह साफ हो जाएगी। राज्यसभा में कांग्रेस को मिलने वाली 11 सीटों पर दावेदारों की लंबी कतार लगी हुई है। लोकसभा और विधानसभा में पराजित हुये सभी बड़े नेता राज्यसभा के रास्ते संसद में पहुंचना चाहते हैं। इसीलिए सभी नेता अपने लिये लॉबिंग करने में जुटे हैं। राज्यसभा से रिटायर हो रहे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा, दिग्विजय सिंह, राज बब्बर, कुमारी सैलेजा, टी सुब्बारामी रेड्डी, हुसैन दिलवई, मधुसूदन मिस्त्री फिर से अपनी सीट पक्की करना चाहते हैं। हरियाणा में कांग्रेस एक सीट जीतने की स्थिति में है। जहां से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा में भेजना भेजना चाहते हैं। वही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा की मौजूदा सदस्य कुमारी सैलेजा फिर से टिकट पाने का प्रयास कर रही हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला भी राज्यसभा में जाकर अपनी सुविधाएं बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस दो सीटें जीतने की स्थिति में है। वहां पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एकबार फिर राज्यसभा में जाना चाहते हैं। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव, सुरेश पचौरी, मीनाक्षी नटराजन जैसे दर्जनों नेता हैं, जिनकी नजर राज्यसभा टिकट पर लगी हुई है।

 

कर्नाटक में कांग्रेस अपने दम पर एक सीट जीतने की स्थिति में है। वहां पूर्व केंद्रीय मंत्री मलिकार्जुन खड़गे, वीरप्पा मोइली, बीके हरिप्रसाद, सलीम अहमद जैसे नेताओं की लंबी लाइन लगी हुई है। गुजरात की दो सीटों पर मधुसूदन मिस्त्री, दीपक बावरिया, शक्ति सिंह गोहिल, राजीव शुक्ला, राज बब्बर प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा तारिक अनवर, सुबोधकांत सहाय, जितिन प्रसाद, आरएनपी सिंह, हरीश रावत, के.सी. वेणुगोपाल, भंवर जितेंद्र सिंह, गिरीजा व्यास, रुचि डालमिया, अविनाश पांडे, पृथ्वीराज चौहान, मिलिन्द देवड़ा, सुशील कुमार शिंदे, मुकुल वासनिक, हुसैन दिलवई, राजीव सावंत, डॉ. चन्द्रभान, दुरू मियां, अश्क अली टाक, रामेश्वर डूडी सहित काफी संख्या में कांग्रेस के पुराने व वरिष्ठ नेता राज्यसभा टिकट पाने को प्रयासरत हैं।

 

कांग्रेस को चाहिए कि पूर्व के चुनाव में जनता द्वारा नकारे गए वर्षों से सत्ता व संगठन में काबिज नेताओं के बजाय ऐसे युवा चेहरों को राज्यसभा में मौका देना चाहिए जिनका अपने राज्यों में जमीनी स्तर पर प्रभाव हो और जो पूरी दक्षता से संगठन के कार्य कर रहे हों। कांग्रेस में महासचिवों के अलावा प्रदेशों के प्रभारी, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय संयुक्त सचिव के पदों पर कई उर्जावान नेता काम कर रहे हैं। यदि कांग्रेस उनमें से कुछ लोगों को राज्यसभा में लाकर नया नेतृत्व देती है तो यह कांग्रेस के लिए अच्छी बात होगी। इससे कांग्रेस के प्रति युवाओं का आकर्षक बढ़ेगा। साथ ही संगठन के प्रति समर्पित लोगों को एक संदेश मिलेगा कि जो भी पार्टी पदाधिकारी, कार्यकर्ता पार्टी हित में अच्छा काम करेगा उसे सत्ता में भी भागीदार बनाया जाएगा। नए लोगों के आगे आने से पुरानी हो चुकी कांग्रेस एकबार फिर नए जोश व नई सोच के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करेगी। इससे देश की जनता में भी कांग्रेस एक अच्छा सकारात्मक संदेश देने में कामयाब हो सकेगी।

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Dakhal News 18 February 2020

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