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उमेश त्रिवेदी
उप्र विधानसभा चुनाव के आधे सफर के बाद राजनीतिक दल नतीजों को लेकर बेचैन हैं। उप्र की 403 में से 209 सीटों पर मतदान हो चुका है। मतदान के प्रतिशत ने अनुमानों के तेज रफ्तार घोड़ों की लगाम को झटका देकर थमने पर मजबूर कर दिया है। चौदह करोड़ मतदाताओं की खामोशी ने चीखते-चिंघाड़ते नेताओं के मुंह में हताशा की मिर्ची भर दी है कि वो आंए-बांए-सांए बोल रहे हैं। विकास के अमृत-वचनों में विष फूटने लगा है। इसकी हैरतअंगेज बानगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वह भाषण है जिसमें उन्होंने उप्र के विकास को कब्रिस्तान की देहरी से उठाकर श्मशान घाट के चौखट पर रख दिया है। ईद और रमजान की रौनक में दीवाली और होली की रोशनी को जोड़ दिया है।
चुनाव के धोबी-घाट पर नेताओं की धोबी-पछाड़ धुलाई ने मुद्दों को तार-तार कर दिया है। प्रधानमंत्री के स्तर पर शब्दों में हताशा महज लंबे चुनाव अभियान की थकान नहीं, बल्कि मतदाताओं की चुप्पी से उपजी खीज है, जो असमंजस पैदा कर रही हैं। असमंजस की धुंध में नतीजों को भांपने के लिए भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा ने नेताओं के चेहरे पर नतीजों को पढ़ने की नई तकनीक विकसित की है। नेताओं के चेहरों के साथ ’चैटिंग’ करके चुनाव के नतीजों की ’मैपिंग’ करने की तकनीक की शुरुआत सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने की है। अभी तक पार्टियां न्यूज चैनलों के सर्वेक्षणों के आधार पर हार-जीत का आकलन करके रणनीति निर्धारित करती थीं। निजी एजेंसियों के गोपनीय ’एक्जिट-पोल’ के सर्वेक्षणों के आधार पर रणनीतिक संशोधन होते थे।
चेहरों के साथ ’राजनीतिक-चैटिंग’ की नई तकनीक के पहले नेताओं की ’बॉडी-लैंग्वेज’ में आशा-निराशा के ग्राफ को पढ़ने का सिलसिला चलन में जरूर रहा है, लेकिन इस आधार पर निश्चित निष्कर्ष निकालने से नेता हमेशा बचते रहे हैं। उप्र के चुनाव में नेताओं की छह-फुटी कद-काठी की ’बॉडी-लैंग्वेज’ की रिपोर्ट अब सात-आठ इंच व्यास वाले गोलाकार चेहरों तक सिमट गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को फतेहपुर की चुनावी रैली में सपा की हार की घोषणा महज इस आधार पर कर दी कि तीसरे चरण के मतदान में वोट डालने के बाद अखिलेश यादव का चेहरा लटका हुआ है। चेहरे की लटकन सार्वजनिक रूप से उनकी हार का इजहार है। मोदी सपा की हार की तार्किक मीमांसा करते हुए खुलासा करते हैं कि अखिलेश युवा हैं, उनके चेहरे पर चमक होना चाहिए, लेकिन उनका चेहरा उतरा हुआ है। अखिलेश की आवाज में दम भी नहीं दिख रहा है। मोदी पुरावा भी देते हैं कि सबेरे टीवी पर अखिलेश डरे हुए दिख रहे थे, शब्द खोज रहे थे कि जैसे वो बाजी हार चुके हैं।
रविवार को ही झांसी में राहुल और अखिलेश की साझा रैली में राहुल के भाषण में मोदी का उदास चेहरा छलक पड़ा। राहुल ने जताने की कोशिश की कि चेहरे पढ़ने में वो भी मोदी से कम नहीं हैं। भाजपा की हार के सपने पिरोते हुए राहुल ने कहा कि ’सपा-कांग्रेस के गठबंधन के बाद प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का रंग उड़ा हुआ है। जब से मेरी और अखिलेश की दोस्ती हुई है, मोदी का मूड ही बदल गया है। पहले उनके चेहरे पर मुस्कुराहट होती थी, वह मुस्कुराहट गायब हो चुकी है।’
’फेस-रीडिंग’ के मामले में अखिलेश भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि ’जब से मोदी को पता लगा है कि जनता का रुख उनके खिलाफ है, उनके माथे पर ज्यादा पसीना छलकने लगा है। सभाओं में भाषण करते समय उन्हें प्यास भी ज्यादा लगने लगी है। वो ज्यादा पानी पीते हैं। माथे का पसीना कई बार पोंछना पड़ता है।’ मायने साफ हैं कि हार से आशंकित मोदी में कितनी बेचैनी और घबराहट है’ ?
बसपा सुप्रीमो मायावती ने दिसम्बर में मोदी और अमित शाह पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ’मुझे तो लगता है नूर मेरे चेहरे का नहीं, बल्कि मोदी, अमित शाह और भाजपा के अन्य राष्ट्रीय नेताओं के चेहरे का उतर चुका है। नोटबंदी ने लोगों को जबरदस्त तकलीफ दी है। वो बेनूर इसलिए हो रहे हैं कि उन्हें पता है उप्र में बसपा जीत रही है।’
पता नहीं, चेहरों के घमासान में 11 मार्च को किसके होंठ फटेंगे, नाक टेढ़ी होगी, आंखे सूजेंगी, लेकिन ये आत्ममुग्ध नेता फिल्म ’सच्चा-झूठा’ के गीत को भूल रहे हैं - ’दिल को देखो, चेहरा न देखो, चेहरों ने लाखों को लूटा, दिल सच्चा और चेहरा झूठा...।’ नेताओं की ’फेस-रीडिंग’ में तो खुदा भी गफलत में पड़ जाता है...।[ लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।]
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