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राघवेंद्र सिंह
सोते हुये को तो कोई भी जगा दे, पर जागते हुये जो सोते हैैं उन्हें कोई नहीं जगा सकता। नौकरशाही की नाफरमानियों के मुद्दे पर सरकार की हालत कमोबेश ऐसी ही है। इस मसले पर हुकूमत और उसके इर्द-गिर्द गुड़ पर मक्खी की तरह भिनभिनाते चम्पू अफसर, नेताओं को ये बात कुछ बुरी लग सकती है मगर चौबीस कैरेट सच यही है कि सवार ढीले होंगे तो बेलगाम जनता को लहूलुहान करते-करते सरकारों को पटखनी देने की नौबत ला देते हैैं। मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही कुछ घटित हो रहा है।
इकतीस बरस की पत्रकारिता में मैैंने पहली दफा सुना कि एक आईएएस मुख्यमंत्री को चुनौती दे रही है तो एक अपने ऊपर मुख्य सचिव स्तर के विभाग प्रमुख के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाने जा रहे हैैं। यह सब कहीं सुदूर देहात में नहीं भोपाल में हो रहा है। घनघोर अराजकता है। सब कुछ तार-तार हो रहा है। भाजपा और उसकी सरकार के लिये अच्छा यह है कि लगातार चुनाव जीत रहे हैैं बस और क्या चाहिये उसे। स्वराज से सुराज लाने के नारे पर अमल की चिंता किसे है। असल में चुनाव जीतना ही एक पैमाना है लोकतंत्र में और भाजपा के लिये यह लबालब है। प्रतिपक्ष कांग्रेस भी जागते हुये सो रही है इसलिये इस गुनाह में वह भी बराबर की हिस्सेदार है। एक तरह से चुनावी रण में भाजपा अकेली दौड़ रही है सो वह जीत भी रही है।
हम ‘न काहू से बैर’ में कई दफा लिख चुके हैैं अफसरों की मनमानी पर। मिसाल के तौर पर एक दो शीर्षक साझा करना चाहते हैैं मसलन, ‘सीएम मरने नहीं देंगे, अफसर जीने नहीं देंगे’, ‘नौकरशाही की नाफरमानी से घटती प्रतिष्ठा’ आदि...आदि... इसी के चलते मैहर विधानसभा उप चुनाव के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था, ‘डंडा लेकर निकला हूं ठीक कर दूंगा...’ मगर डंडा दिखा नहीं। मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र से लेकर राजधानी भोपाल तक बिना मुट्ठी गरम किये काम कम ही होते हैैं। ऐसा इसलिये कि कुछ ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी कर्मचारी भी हैैं जो सरकार की कुछ साख बचाये हुये हैैं। बुधनी होशंगाबाद से लेकर पूरे प्रदेश में मां नर्मदा से पानी और रेत की लूटखसोट सरेआम हो रही है। ऐसे में नर्मदाजी की पूजा भी शुरू हो रही है। नमामि देवी नर्मदे। क्या कहा जाये इसे...? इसे ही कहेंगे न जागते हुये सोना... रिश्वतखोर अफसर बाबू करोड़ों कमा रहे हैैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान में मुख्यमंत्री कहते हैैं, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा।’ इसे क्या जुमला ही कहा जायेगा। ‘अंधा भी देख और बहरा जो सुन लें’ उस हिसाब से एक उदाहरण प्रस्तुत है। इनमें भ्रष्टाचार में लिप्त दो अधिकारी जिनके खिलाफ लोकायुक्त में जांच चल रही है उन्हें हरीशचंद्र मान कलेक्टर जैसी महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी जाती है। लोकायुक्त सरकार के इन कमाऊपूतों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें सही पाता है। इस तरह के अफसरों का खंभ ठोंक कर कलेक्टर बने रहना सरकार की ईमानदारी और मंशा पर संदेह पैदा करता है।
नाफरमानी की बात शुरू तो बहुत पहले हुई थी लेकिन वह मुकाम पर पहुंच रही है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारी के दुस्साहस से। एक तो शशि कर्णावत की मुख्यमंत्री को चेतावनी देने से, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका क्वार्टर (बंगला) गया तो मुख्यमंत्री को 6 श्यामला हिल्स से जाना होगा। एक अधिकारी की मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसे बागी तेवर न तो पहले कभी देखे गये, भविष्य में भी शायद देखे जायें। दूसरे आईएएस रमेश थेटे। इन्होंने तो अपने विभाग प्रमुख एसीएस राधेश्याम जुलानिया के खिलाफ बाकायदा ऐलानिया तौर पर जुलूस की रिपोर्ट दर्ज कराने थाने जा पहुंचे। अधिकारियों की मनमानी के किस्से तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार में खूब देखे सुने जाते थे। मगर भाजपा सरकार में नाफरमानियों का पानी सिर से ऊपर जा रहा है। अफसर की सीएम को चुनौती, ऐसा उदाहरण है जिसका कोई चाह कर भी बचाव नहीं कर सकता। इसलिये चुनौती देने वाली शशि कर्णावत भी उस पर टिक नहीं पाई और बाद में अपनी चुनौती से पलट गईं।
अधिकारियों की मनमानी की आग से पहले आम जनता झुलसी और जली, मंत्रीगण, सांसद, विधायक, संगठन के पदाधिकारी आंच में आड़े-तेड़े हो रहे हैैं। अब खुद उस आग में मुख्यमंत्री पिघल रहे हैैं तब जाकर भ्रष्टाचार के आरोप में चालीस लाख का जुर्माना और पांच साल की सजा पाने वाली अधिकारी के खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई शुरू हुई। थेटे कई महीने से विवादों के कारण सुर्खियों में है और सरकार की भद्द पिटवाने में लगे हैैं। सरकार भ्रष्ट अफसरों को अपना लाड़ला नहीं बनाती और सख्त बातें नहीं कार्रवाई भी करती तो ऐसी नौबत नहीं आती। अफसर सीएम को चुनौती दे रहे हैैं ऐसा काला अध्याय नहीं लिखा जाता। यही कारण है कि विधानसभा में सवाले सच्चे झूठे उत्तर बिना डर के दिये जा रहे हैैं। विधायकों के प्रश्नों में बदलाव की हिमाकत की जा रही है। राजनीतिक और प्रशासनिक मूल्यों को चौतरफा गिरावट का सीन चल रहा है। इससे पूरे सिस्टम में गैर जिम्मेदारी का माहौल है। शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन और राजस्व जैसे महकमों में बुरे हाल हैैं। मगर जब चुनाव जीतना ही सब कुछ ठीक का पैमाना बन जाये तो भोपाल से दिल्ली तक सबकी आंखें बंद और मुंह में स्वार्थ का दही जमा है। हम तो ऐसे में यही कहेंगे ये सत्ता और यहां तक कि ये शरीर भी चला ही जायेगा एक दिन, हो सके तो... जमीर को जिंदा रखना...। मशहूर शायर नजीर अकबरवादी ने कहा है-
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब लाद चलेगा बंजारा... (लेखक IND-24 न्यूज चैनल समूह के प्रबंध संपादक हैैं)
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