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महाराष्ट्र के चंद्रपुर का 19 साल का अनुराग बोरकर : होनहार, मेहनती और उज्ज्वल भविष्य वाला छात्र :उसने लगातार दो साल NEET की तैयारी की और इस बार 99.99% अंक लाकर 1475वीं रैंक हासिल की : गोरखपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में MBBS की सीट भी मिल गई थी : परिवार खुश था, रिश्तेदारों में गर्व की लहर थी : लेकिन जिस दिन उसे एडमिशन के लिए जाना था : उसी सुबह अनुराग ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली : और सुसाइड नोट ने सबको अंदर तक हिला गया : उसमें लिखा था : मुझे डॉक्टर नहीं बनना है : पांच साल की पढ़ाई : उसके बाद MD : ये सब मुझे नहीं करना है :जितना एक डॉक्टर कमाता है, उतना एक बिज़नेसमैन भी कमा सकता है : सोचिए, वो बच्चा जिसने इतनी मेहनत कर के टॉप रैंक लाई : उसकी असली इच्छा ही डॉक्टर बनने की नहीं थी : लेकिन परिवार की उम्मीदों और समाज के दबाव ने उसे वो रास्ता चुनने पर मजबूर कर दिया, जो उसके दिल का रास्ता ही नहीं था : यही दबाव उसकी जान ले गया : ये सिर्फ अनुराग की कहानी नहीं है : ये हर उस बच्चे की कहानी है जिसे अपने सपनों के बजाय दूसरों की उम्मीदों का बोझ उठाना पड़ता है : माँ-बाप का सपना ज़रूरी है, लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरी है बच्चों के दिल की आवाज़ सुनना : उन्हें वो बनने देना जो वो सच में बनना चाहते हैं : और युवाओं को भी ये समझना होगा ; जिंदगी आसान नहीं है : संघर्ष आएंगे, कठिनाइयाँ आएंगी : लेकिन आत्महत्या कभी समाधान नहीं है : हार मानना विकल्प नहीं है : अगर रास्ता पसंद न आए, तो नया रास्ता चुनो : लेकिन जिंदगी मत छोड़ो : अनुराग का जाना हमें यही सिखाता है : कि बच्चों की पढ़ाई, करियर और सपनों में दबाव नहीं, समझदारी और सहारा होना चाहिए : और जिंदगी चाहे जितनी कठिन क्यों न लगे उसे जीना ही सबसे बड़ी जीत है
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