Dakhal News
11 October 2024सीहोर जिले के होम स्टे और यहां की आवभगत टूरिस्टों को काफी भा रहे हैं। यहां बने मिट्टी व लकड़ी के घरों में ब्रिटेन, ताईवान, अमेरिका, कनाडा सहित 10 से अधिक देशों के टूरिस्ट आ चुके हैं। इनके अलावा तमिलनाडु, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, उप्र सहित कई राज्यों से एक हजार से ज्यादा लोग स्टे कर चुके हैं।
लोग यहां सुविधाओं के साथ कच्चे घरों में रहकर ग्रामीण जीवन को अनुभव करते हैं। ऑर्गेनिक तरीके उगाई गई सब्जी व फल के साथ स्थानीय भोजन करते हैं। यहां का कल्चर उनको रास आता है। कई लोग दो से तीन बार आ चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हम शहर वालों को गांव का कल्चर सिखा रहे हैं। स्टे से यहां की महिलाओं और ग्रामीणों को घर में ही रोजगार मिल रहा है।
पर्यटन दिवस पर विंध्याचल पर्वत से लगे पर्यटन गांव खारी से रिपोर्ट…
सीहोर का खारी गांव जिले के अन्य गांवाें की तरह ही सामान्य है। यहां के लोग बच्चों की पढ़ाई, नौकरी और मजदूरी के लिए सीहोर, भोपाल और बिलकिसगंज जाते हैं। कई लोग गांव छोड़कर शहर में बस गए हैं। पिछले ड़ेढ़ साल में गांव में बदलाव देखने को मिला है। यहां पांच लोगों ने पर्यटन विभाग और एक संस्था के साथ मिलकर ईंट, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी और खपरैल से यहां अब तक पांच होम स्टे तैयार किए हैं। पांच अभी बन रहे हैं। ये होमस्टे पूरे विलेज इकोसिस्टम को दर्शाते हैं। खपरेल की छत, कच्ची दीवारें और गोबर से लीपा हुआ फर्श ये सभी टूरिस्टों को गांव की ओर खींच रहे हैं।
आने वालों का भजन और तिलक से स्वागत
यहां पहुंचने पर स्टे चलाने वाले पारंपरिक तरीके से रोली-चंदन का तिलक और चावल लगाकर स्वागत करते हैं। 82 साल के भंवर जी गौर यहां आने वालों को रामायण से संबंधित भजन, गांव के किस्से आदि सुनाते हैं। उन्हें लगता था कि गांव में कुछ भी खास नहीं है। अब उनकी ये सोच भी बदली है। वे कहते हैं कि अब ऐसा लगता है कि शबरी के घर आकर राम विश्राम कर रहे हैं। यहां आने वालों को भजन के रूप में सुनाते हैं।
बार-बार में ढूंढू वन में कब आएंगे राम।
दरस बिना मोए आए नहीं आराम।।
आज मेरे घर आए राम पद पांवनियां।
बार-बार में साफ करूं घर-आंगनियां राम।।
दास की कुटिया में आके राम करें विश्राम।
दरस बिना मोए आए नहीं आराम।
होम स्टे की दीवार मिट्टी की बनाई हैं। उस पर गोबर से लिपाई कर पेंटिंग की है।
दीवार पर पेंटिंग और गोबर की लिपाई वाला फर्श
होम स्टे चलाने वाले ओमप्रकाश मारण, मुकेश गौर, कमलेश गौर और हेमराज का कहना है कि हमारा गांव भोपाल से सिर्फ 35 किमी दूर है। होम स्टे तैयार करने में यह पूरी ध्यान रखा है कि रुकने वाले का प्राकृति और गांव के जुड़ाव रहे। इसमें लकड़ी की कुर्सी, खिड़कियां, दरवाजे, मिट्टी की दीवारें, अलमारी, आले, दीवार पर फ्री हेंड पेंटिंग और गोबर की लिपाई वाला फर्श लोगों को गांव का अहसास कराता है। एक स्टे को बनाने में सात से आठ लाख का खर्च आता है। अभी 5 और होम स्टे पर काम चल रहा है। पहले गांव के लोगों का रिस्पॉपन्स नहीं दिखा। अब 20 लोगों ने और आवेदन किया है। हालांकि एक गांव में अधिकतम 12 बनाए जा सकते हैं।
फॉर्म टु प्लेट के लिए ऑर्गेनिक खेती
स्टे संचालन के लिए गांव के सदस्यों ने एक समिति बनाई है। समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश मारण ने बताया कि लोग यहां शहर से दूर गांव का अनुभव करने आते हैं। फॉर्म टु प्लेट यानि लोग भोजन के लिए खेत से खुद सब्जी तोड़ते हैं। इसके लिए स्टे के पास में ही सब्जी लगा रखी है। यहां बिना रासायनिक खाद के सब्जी उगाते हैं। हम चूल्हे पर खाना पकाते हैं। हमारे साथ कई लोग खुद खाना बनाने का अनुभव भी लेते हैं। जून 2023 से अब तक मेरे यहां 107 नाइट स्टे और 160 से अधिक डे स्टे हो चुके हैं।
एक फैमिली से तीन हजार तक की बचत
स्टे के ऑनर और संचालन समिति के सचिव अर्जुन गौर ने बताया कि स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी विलेज ट्रिप के लिए यहां आते रहते हैं। 50 बच्चों के सिंगल डे ट्रिप पर ग्रामीणों को करीब 25 हजार रुपए तक मिल जाते हैं। एक फैमिली सभी एक्टिविटी करती है तो तीन हजार रुपए तक की बचत हो जाती है।
प्रोजेक्ट की शुरुआत में जब विदेशी टूरिस्ट आते थे, तो ग्रामीण घेरा बनाकर उन्हें देखने लगते थे। अब सभी को आदत हो गई है। ज्यादातर विदेशी यहां डे स्टे के लिए पहुंचते हैं। जिले में खारी, बिलकिसगंज और नयापुरा (फंदा) में होम स्टे हैं। हालांकि ग्रामीणों के सहयोग और प्रकृति से परिपूर्ण होने के कारण खारी को अच्छा रिस्पाॅन्स मिला है।
बच्चों के भविष्य की चिंता दूर, घर में मिला काम
यहां रहने वाली प्रार्थना गौर ने बताया कि उन्हें बच्चों के भविष्य की चिंता रहती थी। उन्हें क्या पढ़ाएं, बच्चे शहरी कल्चर कैसे सीखें, ताकि नौकरी आदि में उन्हें किसी प्रकार की झिझक न हो। लोगाें के सामने अपनी बात अच्छे से रख सकें। हमारे गांव में कोई राेजगार नहीं था। कमाई के लिए सीहोर या भोपाल जाकर मजदूरी करते हैं।
खाना बनाने जैसे जो घरेलु काम करते थे। अब इसी काम से कमाई हो रही है। चटाई, खिलौने, पेंटिंग्स और बाघ के फुट प्रिंट आदि बनाकर पर्यटकों को बेच रहे हैं। अब घर में ही राेजगार मिल गया है। घर में जो खाना बनाते थे वही गेस्ट को खिलाते हैं। इससे आय बढ़ी है। भजन गाकर भी कमाई हो रही है। इसके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। बाहर से आने वालों को देखकर बच्चे अच्छे से रहना और बोलना सीख रहे हैं।
बच्चों के भविष्य की चिंता दूर, घर में मिला काम
यहां रहने वाली प्रार्थना गौर ने बताया कि उन्हें बच्चों के भविष्य की चिंता रहती थी। उन्हें क्या पढ़ाएं, बच्चे शहरी कल्चर कैसे सीखें, ताकि नौकरी आदि में उन्हें किसी प्रकार की झिझक न हो। लोगाें के सामने अपनी बात अच्छे से रख सकें। हमारे गांव में कोई राेजगार नहीं था। कमाई के लिए सीहोर या भोपाल जाकर मजदूरी करते हैं।
खाना बनाने जैसे जो घरेलु काम करते थे। अब इसी काम से कमाई हो रही है। चटाई, खिलौने, पेंटिंग्स और बाघ के फुट प्रिंट आदि बनाकर पर्यटकों को बेच रहे हैं। अब घर में ही राेजगार मिल गया है। घर में जो खाना बनाते थे वही गेस्ट को खिलाते हैं। इससे आय बढ़ी है। भजन गाकर भी कमाई हो रही है। इसके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। बाहर से आने वालों को देखकर बच्चे अच्छे से रहना और बोलना सीख रहे हैं।
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27 September 2024
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