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उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि सभी महिलाओं को सुरक्षित और वैध रूप से गर्भपात का अधिकार है और इस मामले में विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेद करना असंवैधानिक है।शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को भी सहमति से बनाए गए संबंधों से उत्पन्न 20 से 24 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने का अधिकार है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी फैसला दिया कि चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम के तहत दुष्कर्म की व्याख्या में वैवाहिक दुष्कर्म को भी शामिल किया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि एक वैवाहिक महिला को गर्भपात के अधिकार का इस्तेमाल करने से इंकार नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अविवाहित महिला को 24 सप्ताह के भीतर अनचाहे गर्भ को समाप्त करने का अधिकार है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक महिला को गर्भपात कराने के अधिकार से वंचित करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पीठ ने 23 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था।25 वर्षीय अविवाहित महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर 23 सप्ताह और पांच दिन के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी। उसका कहना था कि वह सहमति से बनाये गए संबंधों से गर्भवती हुई हैं। उसने यह भी कहा था कि वह बच्चे को जन्म दे नहीं सकती क्योंकि उसके साथी ने उससे विवाह करने से इंकार कर दिया है। दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उस महिला को कोई अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया था।
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