भोपाल। देश में जहां देशी गोवंश को बचाने की जद्दोजहद हो रही है, वहीं मध्यप्रदेश में देशी गोवंश तेजी से घट रहा है। देसी गायों में मालवी, निमाड़ी व केनकाथा पर संगट गहराता जा रहा है। प्रदेश की इन तीनों प्रजातियों की गायों को न केवल किसानों ने उनके हाल पर छोड़ दिया है, बल्कि सरकार ने भी उनके संरक्षण की दिशा में अब तक कोई प्रयास नहीं किया है। लिहाजा इन गायों की नस्ल अब खत्म होने की कगार पर है।
हाल ही में की गई नई पशुगणना के आंकड़ों से भी चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। वर्ष 2012 की पशुगणना के मुकाबले प्रदेश में गोवंश चार फीसदी घट गया है। प्रदेश में गायों की देशी नस्लों को बचाने के लिए शासन ने संरक्षण केंद्र खोल रखे हैं। मध्यप्रदेश पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम के एमडी एचबीएस भदौरिया बताते हैं कि गौवंश घटा है, लेकिन हम प्रदेश की देशी नस्ल सुधार का काम कर रहे हैं। अच्छी बात यह भी है कि मध्यप्रदेश के किसान गिर, साहीवाल जैसी देशी नस्लों को भी प्राथमिकता दे रहे हैं।
इसलिए बिगड़ रही देशी नस्ल
शासकीय पशु चिकित्सा महाविद्यालय के जेनेटिक विभाग के प्रमुख और राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ. एसएस तोमर के अनुसार गाय और भैंसों की जैव विविधता खत्म हो रही है। इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे पास देशी सांडों की संख्या कम है। बताया जाता है कि प्रदेश में जरूरत के आधे सांड ही हैं। लंबे समय से एक गांव में एक ही सांड से गायें गाभन होने से वहां अंत:प्रजनन शुरू हो गया। इस कारण देशी नस्ल भी बिगड़ रही है।