Patrakar Priyanshi Chaturvedi
भारत ने साल 2025 में समुद्र की अंधेरी और खतरनाक गहराइयों में बड़ी कामयाबी हासिल की है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत NIOT ने खुले समुद्र में 5,270 मीटर की गहराई पर डीप-सी माइनिंग सिस्टम का सफल परीक्षण किया. इस गहराई पर अत्यधिक दबाव, अंधकार और संचार की चुनौतियों के बावजूद भारत ने पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स की पहचान, संग्रह और सुरक्षित वापसी कर यह साबित कर दिया कि वह अब गहरे समुद्र की तकनीक में चुनिंदा देशों की कतार में खड़ा है.
डीप-सी माइनिंग सिस्टम समुद्र तल से निकलने वाले पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स—जिनमें निकेल, कोबाल्ट, कॉपर और मैंगनीज़ जैसे अहम खनिज होते हैं—को सतह तक लाने में सक्षम है. ये खनिज इलेक्ट्रिक व्हीकल, रक्षा उपकरण, सेमीकंडक्टर और आधुनिक तकनीक के लिए बेहद जरूरी हैं. इस सफलता से भारत आयात पर निर्भरता कम करने और समुद्री क्षेत्र में रणनीतिक आत्मनिर्भरता मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ा है. सरकार ने साफ किया है कि आगे बढ़ने के साथ पर्यावरणीय संतुलन और इकोलॉजिकल स्टडी को प्राथमिकता दी जाएगी.
इस तकनीकी उपलब्धि के साथ भारत अब अगला कदम उठाने को तैयार है. मानव-संचालित डीप-सी सबमर्सिबल MATSYA-6000 के ज़रिए वैज्ञानिकों को 6,000 मीटर की गहराई तक भेजने की तैयारी चल रही है. तीन लोगों की क्षमता वाला यह सबमर्सिबल उन्नत लाइफ-सपोर्ट सिस्टम और टाइटेनियम प्रेशर स्फियर से लैस है. 2025 में इसके अहम परीक्षण सफल रहे हैं, जिससे संकेत मिलता है कि भारत जल्द ही अमेरिका, फ्रांस, रूस और चीन जैसे देशों के विशेष क्लब में शामिल हो सकता है. अंतरिक्ष में ISRO की तरह अब महासागर की गहराइयों में समुद्रयान और MATSYA-6000 भारत की नई पहचान बनने की ओर बढ़ रहे हैं.
Patrakar Priyanshi Chaturvedi
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