Patrakar Priyanshi Chaturvedi
हरदा। मध्य प्रदेश के हरदा जिले के किसानों और आम जनता के लिए इस वर्ष का कृषि सीजन निराशा और मुश्किलों भरा साबित हो रहा है। एक तरफ जहां जिले को पूर्ण सिंचित बताए जाने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों की जीवनरेखा मानी जाने वाली महत्वाकांक्षी मोरन-गंजाल डैम परियोजना वर्षों से केवल स्वीकृति और लोकार्पण के बीच झूल रही है। इस बीच, बिजली विभाग की लापरवाही ने ग्रामीण जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
टेमलवाड़ी के प्रगतिशील किसान मनोज गोदारा ने बताया कि मोरन-गंजाल डैम योजना वर्षों से लंबित है। सिर्फ घोषणाएं हो रही है। उन्होंने बताया कि हरदा जिले की सिंचाई व्यवस्था को मजबूत करने के लिए मोरन-गंजाल डैम परियोजना की कल्पना 1972 में की गई थी और हाल के वर्षों में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी इसका लोकार्पण कर चुके हैं। श्री गोदारा का आरोप है कि वर्तमान विधायक और पूर्व कृषि मंत्री जिले को पूर्ण सिंचित बता रहे हैं, जो कि ज़मीनी हकीकत से परे है।
उन्होंने बताया कि परियोजना की सबसे बड़ी बाधा वन एवं पर्यावरण विभाग ने एनओसी की अनापत्ति प्रमाण पत्र है, जो अभी तक नहीं मिल पाई है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, यह परियोजना 2813 करोड़ रुपये की लागत से हरदा, खंडवा, होशंगाबाद और बैतूल जिलों की 52 हज़ार हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य रखती है। क्षेत्र के किसानों का कहना है कि स्वीकृति के इतने वर्षों बाद भी डैम के वास्तविक स्पॉट पर किसी भी तरह की कार्य योजना शुरू नहीं की गई है, जिससे किसानों में गहरा आक्रोश है। मोरन-गंजाल परियोजना के विरोध में स्थानीय आदिवासियों और ग्रामीणों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाने की खबरें भी सामने आई हैं, क्योंकि इससे बड़ी मात्रा में वन भूमि और अनेक गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं।
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