Patrakar Priyanshi Chaturvedi
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वैश्विक संस्थाओं में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि वर्तमान वैश्विक संरचनाएं 21वीं सदी की चुनौतियों का समाधान करने में अक्षम हैं। उन्होंने कहा कि ये संस्थाएं बिना ‘नेटवर्क’ वाली सिम कार्ड जैसी हो गई हैं - मौजूद तो हैं, लेकिन प्रभावहीन।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वैश्विक दक्षिण को हमेशा दोहरे मानकों का शिकार होना पड़ा है — फिर चाहे वह विकास के अवसर हों, संसाधनों का वितरण हो या सुरक्षा संबंधी मसले। उन्होंने कहा, “जलवायु वित्त, सतत विकास और तकनीक की पहुंच जैसे अहम क्षेत्रों में वैश्विक दक्षिण को केवल दिखावटी समर्थन मिला है, जबकि वास्तविक प्राथमिकता नहीं दी गई।”
मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में स्थापित अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आज दुनिया की दो-तिहाई आबादी का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसे संस्थानों में संरचनात्मक सुधारों की मांग करते हुए कहा, “जब हम हर हफ्ते तकनीकी अपडेट स्वीकार करते हैं, तब वैश्विक संस्थाएं 80 वर्षों से बिना किसी बदलाव के कैसे काम कर सकती हैं?” उन्होंने कहा कि 21वीं सदी का सॉफ्टवेयर 20वीं सदी के टाइपराइटर से नहीं चल सकता। इसलिए आधुनिकीकरण वर्तमान की मांग है उसका पूरा होना जरूरी है।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि सुधार केवल प्रतीकात्मक न हों, बल्कि उनके ठोस और वास्तविक परिणाम सामने आएं। उन्होंने बहु-ध्रुवीय, समावेशी और उत्तरदायी वैश्विक व्यवस्था की आवश्यकता को रेखांकित किया, जिसमें नीति निर्माण में वैश्विक दक्षिण की आवाज सुनी जाए।
प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स समूह के विस्तार को वैश्विक सुधार का एक उदाहरण बताया और इसमें इंडोनेशिया जैसे देशों के शामिल होने का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह समूह अब केवल एक मंच नहीं, बल्कि वैश्विक संरचनात्मक परिवर्तन का नेतृत्व करने वाली ताकत बन चुका है।
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